8-9 साल पहले देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो माहौल था, कुछ कुछ वैसा ही आजकल बंगाल में दिख रहा है। उस समय अन्ना हजारे की अगुवाई में जंग लड़ी गई थी, पर बंगाल में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज अभिजीत गांगुली में अन्ना का अक्स देखा जा रहा है। हाईकोर्ट के 20 मई के आदेश का पालन नहीं करने पर 24 जून को जज गांगुली ने ऐसा आदेश दिया, जिसकी मिसाल खोजना मुश्किल है।
मेधा सूची में आने के बावजूद चार साल से शिक्षक बनने के लिए सड़क से अदालत तक चक्कर लगा रही बंगाल की बेरोजगार युवती बबिता को न्याय मिला तो छप्पर फाड़ के। स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) की परीक्षा में बबिता को 77 अंक मिले थे और उसका रैंक 20 वां था, पर शिक्षा राज्य मंत्री परेश अधिकारी ने अपनी बेटी अंकिता को उस पर बहाल करवा दिया। न्यायमूर्ति अभिजीत गांगुली के आदेश पर नवंबर 2018 से उत्तर बंगाल के मेखलीगंज इंदिरा बालिका विद्यालय की शिक्षिका अंकिता को नौकरी से बर्खास्त किया गया। जज ने 24 जून को वह नौकरी बबिता को देने व अंकिता से वसूली गई लगभग 5 लाख की राशि भी बबिता को देने का आदेश दिया।
बंगाल में पहली कक्षा से लेकर कॉलेज लेवल की नियुक्तियों तक में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और ज्यादातर आरोपों की जांच अदालत के आदेश पर सीबीआई कर रही है। इसके पहले हुई एक सुनवाई में जस्टिस गांगुली ने कहा था कि लंबे समय से नौकरी न मिलने पर योग्य उम्मीदवार आंसू बहा रहे हैं, इसलिए उनके दुखों को दूर करने के लिए जो भी करना होगा, मैं करूंगा। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है। यही नहीं, जज ने एसएससी की सलाहकार समिति के चार सदस्यों-आलोक कुमार सरकार, प्रबीर कुमार बंद्योपाध्याय, तापस पांजा और सुकांत आचार्य को अपनी संपत्ति का लेखा-जोखा जमा करने का आदेश दिया है। इस सलाहकार समिति ने 96 उम्मीदवारों की कथित तौर पर अवैध रूप से भर्ती की सिफारिश की। अब उनसे सीबीआई पूछताछ कर रही है। पैसे का लेनदेन हुआ है तो ईडी कहां पीछे रहने वाली?
यहां यह बताना जरूरी है कि कई सौ छात्र ऐसे हैं, जो 2011 में ममता सरकार के आने से पहले शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर चुके हैं और उन्हें अब तक नौकरी नहीं मिली है। सरकार को नियम से हर साल स्कूल सर्विस कमीशन की परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, पर पिछले 10 साल में ऐसी परीक्षा सिर्फ दो बार हुई है और नियुक्तियां अदालती मामलों के कारण लटकती रही हैं।अदालत को भी राज्य सरकार की जांच एजेंसियों पर भरोसा नहीं है। जब एसएससी का मामला अदालत ने सीबीआई को सौंपा तो इस एजेंसी को सीआरपीएफ के जवानों को लेकर आधी रात को कमीशन के कार्यालय में जाना पड़ा और सर्वर रूम की बिजली काटनी पड़ी। बताया जाता है कि पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के कार्यकाल में सबसे ज्यादा घपला हुआ। इनके काल में स्कूल सर्विस कमीशन की जो सलाहकार समिति थी, वह कार्यकाल के बाद भी सालों तक काम करती रही। सिफारिशें आती रहीं और नियुक्तियां होती रहीं।
ममता बनर्जी ने भी मान लिया है कि गड़बड़ियां हुई हैं। 20 जून को विधानसभा में सीएम ने कहा कि एक लाख नौकरी देने में सौ गलतियां हो सकती हैं। इसे सुधारना होगा, समय देना होगा। इधर, विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया है कि ग्रुप सी और डी में लगभग 1700 लोगों की नियुक्ति हुई है। इस पर ममता बिफर गईं और हाल में विधानसभा में कहा कि मैं किसी की नौकरी नहीं जाने दूंगी। हाल में 269 लोगों की नियुक्ति रद्द करने का हाईकोर्ट आदेश दे चुका है। हाईकोर्ट के आदेश पर बनी सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजीत बाग समिति के मुताबिक 381 लोगों को एसएससी की कमेटी ने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी नियुक्ति की सिफारिश के पत्र जारी किए। इन 381 में से 222 लोगों के नाम किसी पैनल या प्रतीक्षा सूची में नहीं थे। इनमें से किसी ने भी लिखित परीक्षा पास नहीं की और न इंटरव्यू में भाग लिया। भ्रष्टाचार में कथित संलिप्तता के कारण कुल 11 अधिकारियों को हाईकोर्ट ने पद से हटाया है। बंगाल शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मानिक सरकार बर्खास्त हुए हैं।