अवधेश कुमार
देश जिस अवस्था में जा रहा है उसमें अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले, इस विचार के लिए खुशी-खुशी अपनी बलि चढ़ा देने वाले महापुरुषों की जीवन गाथा और उनके विचार लोगों तक पहुंचाना पहले से ज्यादा जरूरी हो गया है।
इससे निहित स्वार्थो से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचने और काम करने की प्रेरणा मिलेगी। स्वतंत्रता संघर्ष के सिपाहियों में भगत सिंह ऐसा नाम है जिनकी जीवन गाथा अगर रोमांचित करती है तो देश के लिए कर गुजरने के लिए प्रेरित भी।
हालांकि भगत सिंह के बलिदान के सामने सिर झुकाने वाले भी कई बार यह कहते हुए मिल जाते हैं कि जो व्यक्ति 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन की आयु में ही विदा हो गया उसके अंदर विचारों की गहराई नहीं हो सकती।
वास्तव में ऐसा सोचने वाले भगत सिंह के प्रति अन्याय करते हैं। किसी व्यक्ति के अंदर विचार अध्ययन, चिंतन, उसे व्यवहार में उतारने के अनुभवों तथा उन विचारों के दूसरे देशों में हो रहे क्रियान्वयनों के उदाहरणों से सुदृढ़ होता है।
विचार विकसित होने की प्रक्रिया है। दुनिया के जितने भी विचारक और योद्धा हुए हैं सब इन्हीं प्रक्रिया से निकले हैं।
भगत सिंह की चिंता अंग्रेजों को भगाने तक सीमित नहीं थी। आजादी के बाद भारत के निर्माण पर भी वे विचार करते रहे। वे लिखते हैं कि आजादी तो मिलेगी लेकिन विचार करना होगा कि हम भारत में किस तरह का समाज बनाएंगे।
ऐसा न हो कि गोरे साहब चले जाएं और उनकी जगह काले साहब आकर हमारे ऊपर बैठ जाएं।
इंकलाब जिंदाबाद पर भगत सिंह का पत्र
इंकलाब जिंदाबाद पर कोलकाता से प्रकाशित मॉडर्न रिव्यू के संपादक रामानंद चटर्जी को लिखा गया उनका पत्र स्मरणीय है।
चटर्जी ने इस नारे की आलोचना करते हुए लिखा था कि इंकलाब जिंदाबाद यानी इंकलाब को जिंदा रखने के लिए तो हर घंटे, हर दिन, हर महीने, पूरे वर्ष यही काम करते रहेंगे। क्या यह संभव है? भगत सिंह ने जवाब में पत्र लिखा।
उन्होंने साफ किया कि इंकलाब जिंदाबाद का अर्थ यह नहीं कि सशस्त्र संघर्ष सदैव चलता रहेगा। इंकलाब का अर्थ है कभी पराजय न स्वीकार करने वाली भावना। हमारी सोच है कि इस नारे के साथ हम अपने आदर्शो की भावना को जीवित रखें। केवल बगावत को इंकलाब नहीं कहते।
फांसी से पहले उनके वकील प्राणनाथ मेहता के मिलने का प्रसंग यहां उल्लेखनीय है। मेहता ने पूछा था कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे?
भगत सिंह ने उन्हें साम्राज्यवाद खत्म हो तथा इंकलाब जिंदाबाद जैसे दो नारे लोगों तक पहुंचाने का अनुरोध किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)