Blog: तिलक और आजाद के आदर्शों को अपनाएं, स्वराज्य के जन्मसिद्ध अधिकार से सुराज्य की ओर बढ़ें

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 22, 2018 04:39 AM2018-07-22T04:39:56+5:302018-07-23T00:08:11+5:30

अपनी मातृभूमि के इन महान पुत्रों के हम बहुत आभारी हैं, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अटूट प्रतिबद्धता दिखाई. दोनों ही हमारी आजादी की लड़ाई के नायक हैं

Bal gangadhar tilak and chandra shekhar azad birth anniversary special story | Blog: तिलक और आजाद के आदर्शों को अपनाएं, स्वराज्य के जन्मसिद्ध अधिकार से सुराज्य की ओर बढ़ें

Blog: तिलक और आजाद के आदर्शों को अपनाएं, स्वराज्य के जन्मसिद्ध अधिकार से सुराज्य की ओर बढ़ें

एम. वेंकैया नायडू

23 जुलाई का दिन विशेष होता है क्योंकि इस दिन हमारे सबसे शानदार स्वतंत्रता सेनानियों - बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद की जयंती पड़ती है. यह हमारा पवित्र कर्तव्य है कि हम उनकी जयंती पर उन्हें याद करें और श्रद्धांजलि स्वरूप अपना सिर झुकाएं. अपनी मातृभूमि के इन महान पुत्रों के हम बहुत आभारी हैं, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अटूट प्रतिबद्धता दिखाई. दोनों ही हमारी आजादी की लड़ाई के नायक हैं और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उनका नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. सभी भारतीयों को न केवल इन महान देशभक्तों से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए, बल्कि आज के युवाओं को उनसे स्वदेशानुराग की भावना भी सीखनी चाहिए, जो उनके विजन में समाई हुई थी. एक नये भारत के निर्माण के लिए युवाओं को ऐसे आदर्शो को अपनाना चाहिए और उनका अनुकरण करना चाहिए. 

तिलक एक ओजस्वी देशभक्त थे, जिन्होंने अपने भाषणों, लेखों और कार्यो के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना जागृत की थी. उनका दृढ़ विश्वास था कि एकता और राष्ट्रीय गौरव के अभाव के कारण ही देश औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन हुआ है. इसी प्रकार, चंद्रशेखर आजाद का जीवन देश की आजादी की एक महागाथा है और इसके लिए सर्वोच्च बलिदान करने की इच्छा को प्रदर्शित करता है.

जब हम देश के स्वाधीनता संघर्ष पर नजर डालते हैं, तो कई प्रसिद्ध प्रतीकों को पाते हैं, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण रखते थे. लेकिन जो बात उनके बीच आम थी, वह थी देश के प्रति अदम्य प्रतिबद्धता, देश की  पहचान बनाने के लिए असाधारण उत्साह और राष्ट्रीय गौरव तथा आत्मविश्वास पैदा करने की भावना. यह वह भावना ही है जिसके बल पर हम सफलतापूर्वक एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरे हैं और जो देश में सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है.

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शायद हर भारतीय के लिए, विशेष रूप से युवाओं के लिए, जिनका आज की जनसंख्या में महत्वपूर्ण हिस्सा है,  समय आ गया है कि वे आजाद की तरह ही एक निडर क्रांतिकारी का जोश अपने भीतर लाएं और देश के विभिन्न मोर्चो पर चुनौतियों का सामना करने के लिए तिलक की तरह ही एक राष्ट्रवादी के उत्साह तथा प्रतिबद्धता की भावना अपने भीतर पैदा करें, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य हर नागरिक को मुहैया हो, किसानों के जीवन से तनाव दूर हो, शहरों की झोपड़पट्टियों की तकलीफें कम की जा सकें, हर जगह आवश्यक बुनियादी जरूरतें प्रदान की जा सकें और धर्म, क्षेत्र, जाति या समुदाय के आधार पर होने वाला हर तरह का भेदभाव दूर किया जा सके. 

लाखों भारतीयों ने नि:स्वार्थ भाव से आजादी के संघर्ष में भाग लिया और चंद्रशेखर आजाद जैसे साहसी तथा बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने उनका नेतृत्व किया. आजाद, जो कि अदम्य साहस के प्रतीक थे, अपनी किशोरावस्था से ही आजादी की लड़ाई में डूब गए थे और जब वे अन्य लड़कों के साथ गिरफ्तार हुए तो बहादुरी के साथ बनारस में मजिस्ट्रेट के सामने कहा था कि उनका नाम ‘आजाद’ है, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ है और उनका पता जेल है. तब उन्हें 15 कोड़े मारने की कठोर सजा दी गई थी. 

आजाद का एकमात्र ध्येय मातृभूमि की स्वतंत्रता थी. वे एक गरीब परिवार से थे और उनके जीवन में कभी कोई अन्य चीज महत्वपूर्ण नहीं रही. अपने मूल में क्रांतिकारी रहते हुए आजाद ने एक अनुशासित जीवन जिया और अपने सिद्धांतों तथा मूल्यों के प्रति निर्विवाद रूप से अंत तक ईमानदार रहे. 

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बाल गंगाधर तिलक के मशहूर नारे, ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया. वे एक विद्वान और समाज सुधारक थे, जो दहेज प्रथा, 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के विवाह के खिलाफ खड़े हुए.  वे स्वेदशी के कट्टर समर्थक थे और आजादी के संघर्ष के दौरान राजनीतिक जनजागृति के लिए गणोशोत्सव की तरह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का इस्तेमाल किया. वे देश के उस विशाल वृक्ष की तरह थे जिसका मूल तना स्वराज था और स्वदेशी तथा बहिष्कार उसकी शाखाएं थीं. 

यह एक दर्दनाक सच्चाई है कि आजादी के बाद 70 साल के लंबे समय के बावजूद, देश अभी भी गरीबी, निरक्षरता, पेयजल, बिजली, मकानों की कमी, स्वच्छता का अभाव, लैंगिक भेदभाव और शहरी-ग्रामीण विभाजन की समस्या से जूझ रहा है. अगर इस खाई को शीघ्र ही नहीं पाटा गया तो जल्द ही यह भारत की प्रगति में बाधक बन जाएगी. देश के विकास की कहानी में हम किसी भी पूर्णविराम को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं.

यह वास्तव में उस समय की विडंबना है जिसमें हम रह रहे हैं.  एक तरफ वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति हमारे जीवन में क्रांति ला रही है और दुनिया सिमट कर एक वैश्विक गांव में तब्दील हो गई है, वहीं निहित स्वार्थो द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में नई बाधाएं पैदा की जा रही हैं. कई साल पहले, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने चेतावनी देते हुए कहा था कि दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारें खंडित कर रही हैं और ‘तर्क की स्पष्ट धारा’ मृत रेगिस्तान में खोती जा रही है.

अभी भी हम देख रहे हैं कि लोग जातीयता, सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और भाई-भतीजावाद से विभाजित हो रहे हैं. भ्रष्टाचार और आतंकवाद भारत की तरक्की की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बने हुए हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत उतनी तरक्की नहीं कर सका है जितनी वह पिछले 70 वर्षो में कर सकता था. इसका मकसद किसी की ओर उंगली उठाने का नहीं है. 

जैसा कि भारत के दुश्मन चाहते हैं, देश के सामाजिक, सांप्रदायिक या क्षेत्रीय असंतोष के वजह से टुकड़े नहीं होने दिए जा सकते. सभी भारतीय, चाहे वे किसी भी जाति या पंथ के हों,  उनके एक साथ मिलकर इस तरह की खतरनाक प्रवृत्तियों से लड़ने की आवश्यकता है. हम बेफिक्र तमाशाई की तरह बनकर नहीं रह सकते और मैं देश के युवाओं से विशेष रूप से अपील करना चाहता हूं कि वे नये भारत के निर्माण के लिए आगे आएं.

आज, भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और विकसित देश बनने तथा अगले 15-20 वर्षो में शीर्ष अर्थव्यवस्था में से एक बनने की क्षमता रखता है. यदि हम सामूहिक रूप से गरीबी, अशिक्षा, शहरी-ग्रामीण विभाजन को खत्म करें और कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा उद्योग की सर्वोच्च प्राथमिकता सुनिश्चित करें तथा कमजोर वर्गो को सशक्त बनाएं तो लक्ष्य हासिल कर सकते हैं. 

अर्थव्यवस्था के ऊंचाई की ओर बढ़ने के साथ ही, देश को आगे की ओर ले जाने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरा फायदा उठाएं. हमें शासन को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए राजनीति से लेकर शिक्षा तक विभिन्न क्षेत्रों में सुधार करने, भारत को एक ज्ञान-केंद्रित नवाचार और उत्कृष्टता का वैश्विक केंद्र बनाने की जरूरत है, जहां सभी वर्गो के लोग सौहाद्र्रपूर्ण सहअस्तित्व के साथ रह सकें. बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद जैसे अपने आजादी के नायकों से हमें यह सारी प्रेरणाएं ग्रहण करने की जरूरत है. यदि हम इस तथ्य को भुला दें कि उन्होंने हमारे कंधे से गुलामी का जुआ उतार फेंकने के लिए अपना खून और पसीना बहाया था तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा. उन्होंने अपना बलिदान दिया ताकि हम आजादी और समानता की खुली हवा में सांस ले सकें. हमारी यह नैतिक जिम्मेदारी है कि जैसे भारत का निर्माण वे करना चाहते थे, हम उन आदर्शो को हासिल करने के लिए प्रयास करें.

स्वराज्य के अपने जन्मसिद्ध अधिकार से हम सुराज्य की ओर बढ़ें जो कि मौलिक अधिकार है - यही हमारी अपने महान स्वतंत्रता सेनानियों को वास्तविक श्रद्धांजलि होगी. 

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Web Title: Bal gangadhar tilak and chandra shekhar azad birth anniversary special story

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