अवधेश कुमार का ब्लॉग: सब्र का इम्तहान लेती पत्थरबाजी 

By अवधेश कुमार | Published: October 29, 2018 02:39 PM2018-10-29T14:39:07+5:302018-10-29T14:39:07+5:30

आतंकवादियों द्वारा पुलिस वालों का अपहरण और हत्या की प्रवृत्ति से भी पुलिस के अंदर गुस्सा है। बावजूद इसके क्या पुलिस पत्थरबाजों की गिरफ्तारी एवं उनको कानून के तहत सजा दिलवाने में सही भूमिका निभा पाएगी?

Awadhesh kumar's blog: jammu and kashmir Patience is examined by stone | अवधेश कुमार का ब्लॉग: सब्र का इम्तहान लेती पत्थरबाजी 

अवधेश कुमार का ब्लॉग: सब्र का इम्तहान लेती पत्थरबाजी 

कश्मीर घाटी में पत्थरबाजों द्वारा एक जवान की हत्या ने पूरे देश में गुस्से और गम की स्थिति पैदा की है। जम्मू कश्मीर में जवानों की शहादत लगातार हो रही है। लेकिन यह पहली बार है जब कोई जवान पत्थरबाजी में शहीद हुआ है। पत्थरबाजी सुरक्षा बलों के काफिलों पर होती रही है और इनसे निपटना घाटी में चुनौती रहा है। कई बार गाड़ियां क्षतिग्रस्त होती हैं, इनसे आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन करना चुनौती बनता है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक हाल के टीवी साक्षात्कारों में यह दावा कर रहे थे कि उनकी नीतियों से घाटी में पत्थरबाजी कम हुई है। उन्होंने नौजवानों को शिक्षा से लेकर खेलकूद आदि में भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया है। इस घटना के बाद वे क्या कहेंगे?


आखिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के जवान राजेंद्र सिंह का दोष क्या था? वे कश्मीरियों के लिए दुर्गम स्थानों पर सड़क, पुल आदि बनाने वाले सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के काफिले को सुरक्षा प्रदान कर रहे थे। जब काफिला एनएच 44 के पास अनंतनाग बाइपास तिराहे से गुजर रहा था, अचानक पत्थरबाजों का समूह पथराव करने लगा। सिर पर पत्थर लगने से राजेंद्र घायल हो गए थे। उनको 92 बेस अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।

सीमा सड़क संगठन के लोग उन क्षेत्नों में सड़कें, पुल बनाते हैं जहां सिविल विभाग ऐसा करने में सक्षम नहीं होता। पूर्व से उत्तर तक दुर्गम क्षेत्नों में उन्होंने जान जोखिम में डालकर सड़क-पुल बनाए हैं जिनका लाभ वहां के लोगों को मिल रहा है। इनमें कश्मीरी भी शामिल हैं। जो आंकड़ा है उसके अनुसार सड़क बनाने में ही बीआरओ का एक जवान प्रतिदिन शहीद होता है।

इस तरह हमला करने वालों को क्या यह कहकर क्षमा कर दिया जाएगा कि युवकों से गलतियां हो गईं? प्राथमिकी दर्ज करा दी गई है। प्रश्न है कि क्या प्राथमिकी पर कार्रवाई भी होगी? कानूनी प्रक्रिया का अधिकार केवल पुलिस को है। पिछले काफी समय से खासकर ऑपरेशन ऑल आउट आरंभ होने के बाद से सुरक्षा बलों एवं पुलिस के बीच बेहतर तालमेल है।

आतंकवादियों द्वारा पुलिस वालों का अपहरण और हत्या की प्रवृत्ति से भी पुलिस के अंदर गुस्सा है। बावजूद इसके क्या पुलिस पत्थरबाजों की गिरफ्तारी एवं उनको कानून के तहत सजा दिलवाने में सही भूमिका निभा पाएगी? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब पूरे देश को चाहिए।  राज्यपाल को भी कठोरता एवं उदारता दोनों के बीच समन्वय बिठाना होगा। 

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