अवधेश कुमार का ब्लॉग: आर्थिक चुनौतियों का प्राथमिकता से सामना करना होगा सरकार को
By अवधेश कुमार | Published: June 2, 2019 05:53 AM2019-06-02T05:53:12+5:302019-06-02T05:53:12+5:30
पूंजीवाद की अर्थव्यवस्था में किसी देश की आर्थिक स्थिति को मापने के कई पैमाने होते हैं. इनमें एक है शेयर बाजार. हालांकि आजकल शेयर बाजार इतना ज्यादा संवेदनशील हो गया है कि सुदूर अमेरिका में कोई घटना इसमें उथल-पुथल मचा सकती है और उससे उबरने के लिए वित्त मंत्नालय को अनेक बार नाकों चने चबाने पड़ते हैं.
चुनाव में विजय के बाद प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कई बार कहा है कि जितना बड़ा भरोसा जनता ने हमें दिया है उससे हमारी जिम्मेदारियां बढ़ गईं हैं. उसके बाद उन्होंने देश से वादा किया कि उनके जीवन का क्षण-क्षण और कण-कण देश को समर्पित रहेगा. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने अपनी अगली सरकार का एक लक्ष्य दिया था. वह यह था कि अभी तक हमने आपकी यानी समाज के आम आदमी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम किया है, आगे उसे जारी रखते हुए आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए काम करना है.
सरकार के इस लक्ष्य का मतलब है आवश्यकता तथा आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए समानांतर गति के साथ आगे बढ़ना. यह कोई साधारण लक्ष्य नहीं है. किंतु इनका सबसे बड़ा पहलू है, सामाजिक-आर्थिक विकास. हालांकि विश्व संस्थाओं के अनेक आंकड़े भारत के लिए आशाजनक तस्वीर पेश करते हैं. मसलन, वर्ल्ड डाटा लैब एवं संयुक्त राष्ट्र कह रहा है कि भारत की कल्याणकारी आर्थिक नीतियों के कारण हर मिनट 44 लोग गरीबी की सीमा से बाहर आ रहे हैं और अगले 11 वर्ष आते-आते गरीबी लगभग खत्म हो जाएगी.
इसी तरह अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर भी किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने नकारात्मक तस्वीर पेश नहीं की है. किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि भारत में सब कुछ स्वर्णिम ही है. ये जो तस्वीरें हैं, उनको बनाए रखना भी अपने-आपमें चुनौती है.
पूंजीवाद की अर्थव्यवस्था में किसी देश की आर्थिक स्थिति को मापने के कई पैमाने होते हैं. इनमें एक है शेयर बाजार. हालांकि आजकल शेयर बाजार इतना ज्यादा संवेदनशील हो गया है कि सुदूर अमेरिका में कोई घटना इसमें उथल-पुथल मचा सकती है और उससे उबरने के लिए वित्त मंत्नालय को अनेक बार नाकों चने चबाने पड़ते हैं.
इस समय हमारा दोनों सूचकांक ऐतिहासिक उंचाई पर है और निवेशक निश्चिंत होकर धन लगा रहे हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था के मूल स्तंभों को लेकर देश के अंदर और बाहर के निवेशकों को कोई आशंका नहीं है. यह मोदी सरकार के लिए राहत की बात है. पर जिस तरह ईरान पर अमेरिकी शिकंजा कस गया है, तेल सहित उसके सारे निर्यात को प्रतिबंधित करने की कोशिश है तथा सऊदी अरब के तेल संस्थानों पर विद्रोहियों की ओर से हमले हो रहे हैं उनका असर होना निश्चित है.
ईरान से हम 26 प्रतिशत तेल आयात करते थे. अगर तेल बाजार में उथल पुथल हुआ तो फिर इसके दाम बढ़ेंगे, उससे महंगाई बढ़ेगी, रुपए के मूल्य पर असर होगा तथा सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी. इसमें शेयर बाजार का मौजूदा सकारात्मक मानस कायम नहीं रह सकता, इसे ध्यान में रखना होगा.