अवधेश कुमार का ब्लॉग: समाज से मानवीय संवेदना का गायब होते जाना चिंताजनक
By अवधेश कुमार | Published: May 19, 2019 06:27 AM2019-05-19T06:27:11+5:302019-05-19T06:27:11+5:30
2009 से अप्रैल 2019 तक एक लड़की दो बार मात्न 10-10 हजार में बिकी और लगातार बलात्कार का शिकार होती रही किंतु कोई उसे बचाने वाला नहीं मिला. उसने पुलिस के पास भी गुहार लगाई लेकिन कोई राहत नहीं.
यह घटना केवल सन्न करने वाली ही नहीं है, हम सबके मुंह पर एक करारा तमाचा है. महिला सुरक्षा के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली सरकारों और पुलिस प्रशासन के लिए शर्म से डूब मरने का मामला है. उत्तर प्रदेश का सिंभावली क्षेत्न राजधानी दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है. 2009 से अप्रैल 2019 तक एक लड़की दो बार मात्न 10-10 हजार में बिकी और लगातार बलात्कार का शिकार होती रही किंतु कोई उसे बचाने वाला नहीं मिला. उसने पुलिस के पास भी गुहार लगाई लेकिन कोई राहत नहीं.
पुलिस में 10 वर्षो तक प्राथमिकी भी दर्ज नहीं हुई. ध्यान दीजिए, इस पूरे दस वर्ष में पहले बसपा की सरकार थी, उसके बाद सपा की सरकार रही. आज दो वर्षो से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है. हम किसे दोषी कहें? अगर उस लड़की ने बलात्कारियों से तंग आकर अपने को आग के हवाले नहीं किया होता तथा उसका वीडियो सोशल मीडिया पर नहीं आता तो शायद वह मर भी जाती और उसके साथ हुई यौन क्रूरताओं का अध्याय भी बंद हो जाता.
यह है हमारे देश में महिला सुरक्षा की स्थिति. आज वह 75-80 प्रतिशत जली हालत में दिल्ली के एक अस्पताल में जीवन और मौत से जूझ रही है. वह दर्द से कराहते हुए कह रही है कि ‘काश मैं मर जाती. कोई भी इस तरह के जख्मों को नहीं झेलना चाहता. लेकिन, अब जबकि मैं जल चुकी हूं, तो लोग कम से कम मेरा रेप तो नहीं करेंगे.’ आखिर किस मानसिक स्थिति में ऐसा वक्तव्य निकल रहा होगा?
जरा सोचिए, जब 14 वर्ष की उम्र में 10 हजार रुपए लेकर उम्रदराज व्यक्ति से उसकी शादी की जा रही थी तो समाज के किसी व्यक्ति ने इसका विरोध क्यों नहीं किया? पूरे गांव को मालूम था कि क्या हो रहा है. 14 वर्ष में शादी गैरकानूनी है और ऐसा करने वालों को सजा हो सकती है. पंचायत की भी इस संबंध में जिम्मेवारी है, पर सभी खामोश रहे.
इससे पता चलता है कि शिक्षा के विस्तार, मीडिया एवं सोशल मीडिया के प्रभाव से जनजागरूकता की चाहे जितनी बातें करें, हमारे समाज का सामूहिक व्यवहार अभी भी मुंहफेर कर बच निकलने की बेशर्मी का ही सामने आता है. दूसरी बार भी उसे बेचा गया. उसका पिता और चाची भी इसी समाज के अंग हैं जो अपनी पुत्नी और भतीजी की इस तरह चंद रुपए के लिए बिक्री कर देते हैं.
यह प्रश्न तो हमें अपने-आपसे पूछना चाहिए कि हमने कैसा समाज बना लिया है? ऐसा कोई गांव नहीं होगा जहां राजनीतिक पार्टी के कुछ कार्यकर्ता नहीं होंगे. क्या उनका दायित्व नहीं था आगे आने का? एक चैतन्यशील और नैतिक समाज कभी इस तरह लड़की की बिक्री व उसके साथ यौनाचार होने नहीं दे सकता. ऐसा चैतन्यशील समाज कैसे बने, इसके लिए हम सबको प्रयास करना होगा.