जम्हूरियत और इंसानियत की मिसाल थे अटलजी

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 17, 2018 04:34 AM2018-08-17T04:34:26+5:302018-08-17T04:34:26+5:30

वाजपेयीजी की कविताएं, उनके साहसिक निर्णय, उनकी संवेदनशीलता, उनकी कश्मीर नीति, सरकार चलाने की काबिलियत

Atalji was the example of mobility and humor. | जम्हूरियत और इंसानियत की मिसाल थे अटलजी

जम्हूरियत और इंसानियत की मिसाल थे अटलजी

(लेखक-पुण्य प्रसून वाजपेयी)

वाजपेयीजी की कविताएं, उनके साहसिक निर्णय, उनकी संवेदनशीलता, उनकी कश्मीर नीति, सरकार चलाने की काबिलियत. अटल बिहारी वाजपेयी को कैसे याद करें या किन-किन खांचों में बांटे? ये सवाल भी है और शायद जवाब भी  कि उनको किसी एक फ्रेम में माला पहनाकर याद करते हुए भुलाया नहीं जा सकता. क्योंकि यादों की परतें वाजपेयी के सरोकार से खुलेंगी तो फिर नेहरू से लेकर मोदी तक के दौर को प्रभावित करने वाले शख्स के तौर पर रेखाएं खिंचने लगेंगी. जिक्र  नेहरू  की कश्मीर नीति पर संसद के भीतर पिछली बेंच पर बैठे युवा अटल बिहारी वाजपेयी के उस आक्रोश से भी छलक जाएगा जो श्यामाप्रसाद मुखर्जी की सोच तले नेहरू को खारिज करने से नहीं चूकते. पर अगले ही क्षण नेहरू के इस एहसास के साथ भी जुड़ जाते हैं कि राष्ट्र निर्माण में पक्ष-विपक्ष की सोच तले हालात को बांटा नहीं जा सकता बल्किसामूहिकता का निचोड़ ही राष्ट्र निर्माण की दिशा में ले जाता है.  

ये वाजपेयी का ही कैनवास था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर जनसंघ की उम्र पूरी होने के बाद जब 1980 में भाजपा बनी तो वाजपेयी ने अपने पहले ही भाषण में गांधीवादी समाजवाद का मॉडल अपनी पार्टी के लिए रखा. यानी नेहरू की छाप वाजपेयी पर धुर-विरोधी होने के बावजूद कितनी रही ये महत्वपूर्ण नहीं है बल्किविचारों का समावेश कर कैसे भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की जड़ों को और मजबूत किया जा सकता है, इस दिशा में बढ़ते वाजपेयी के कदम ने ही उन्हें जीवित रहते वक्त ही एक ऐसे लीजेंड स्टेट्समैन के तौर पर मान्यता दिला दी कि देश में किसी भी प्रांत में किसी भी पार्टी की सरकार हो या फिर देश में उनके बाद मनमोहन सिंह की सरकार बनी या अब नरेंद्र मोदी अगुवाई कर रहे हैं, लेकिन हर मुद्दे को लेकर वाजपेयी डॉक्ट्रिन का जिक्र  हर किसी ने किया. कल्पना कीजिए कश्मीर के अलगाववादी नेता भी वाजपेयी की कश्मीर नीति के मुरीद हो गए और लाहौर यात्ना के दौरान वाजपेयी ने जब पाकिस्तान की जनता को संबोधित किया तो नवाज शरीफ ये बोलने से नहीं चूके कि ‘‘वाजपेयीजी आप तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं.’’ यूं वाजपेयी के बहुमुखी व्यक्तित्व की ये सिर्फ खासियत भर नहीं रही कि आज शिवसेना को भी वाजपेयी वाली भाजपा चाहिए. और ममता बनर्जी से लेकर चंद्रबाबू नायडू और नवीन पटनायक से लेकर डीएमके-एआईडीएमके दोनों ही वाजपेयी के मुरीद रहे और हैं. बल्किभाजपा की धुर-विरोधी कांग्रेस को भी वाजपेयी अपने करीब पाते रहे. इसीलिए तेरह दिन की सरकार गिरी तो अपने भाषण में वाजपेयी ने बेहद सरलता से कहा, विपक्ष कहता है वाजपेयी तो ठीक है पर पार्टी ठीक नहीं. यानी मैं सही हूं और भाजपा सही नहीं है. तो मैं क्या करूं. पर मेरी पार्टी मेरी विचारधारा भाजपा से जुड़ी है.

सहमति बनाकर सत्ता कैसे चलनी चाहिए और सत्ता चलानी पड़े तो सहमति कैसे बनाई जानी चाहिए, इस सोच को जिस तरह वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक जिंदगी में उतारा उसी का असर रहा कि नेहरू ने जीते-जी युवा वाजपेयी की पीठ ठोंकी. इंदिरा गांधी भी अपने समकक्ष वाजपेयी की शख्सियत को नकार नहीं पाईं. सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी वाजपेयी के मुरीद रहे बिना राजनीति साध नहीं पाए. और इन सबके पीछे जो सबसे मजबूत विचार वाजपेयी के साथ रहा वह उनकी मानवीयता के गुण थे. और इसकी जीती-जागती तस्वीर लेखक यानी मेरे सामने 2003 में तब उभरी जब वाजपेयी आतंकवाद से प्रभावित कश्मीर पहुंचे और वहां उन्होंने अपने भाषण में संविधान के दायरे का जिक्र न कर जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत का जिक्र  किया. और भाषण के ठीक श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब मैंने अपना नाम और संस्थान का नाम बताकर सवाल किया, ‘‘कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए जम्हूरियत, कश्मीरियत तो ठीक है पर इंसानियत के जिक्र  की जरूरत उन्हें क्यों पड़ी’’ तो देश के प्रधानमंत्नी वाजपेयी ने बेहद सरलता से जवाब दिया, ‘‘क्या एक वाजपेयी काफी नहीं है.’’ और फिर जोर से ठहाका लगाकर बोले, ‘‘इंसानियत यही है.’’

Web Title: Atalji was the example of mobility and humor.

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