Assembly Elections 2023: मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में बीजेपी गठबंधन सरकार!, भाजपा को राहत और कांग्रेस पर आफत, जानें असर

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 4, 2023 04:49 PM2023-03-04T16:49:27+5:302023-03-04T16:50:41+5:30

Assembly Elections 2023: त्रिपुरा में कांग्रेस वामपंथी गठबंधन तथा स्थानीय पार्टी टिपरा मोथा पार्टी से कड़ी टक्कर मिलने के बावजूद भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने में सफल रही है.

Assembly Elections 2023 Meghalaya, Nagaland and Tripura BJP coalition government Relief BJP trouble for Congress no interest in Adani case | Assembly Elections 2023: मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में बीजेपी गठबंधन सरकार!, भाजपा को राहत और कांग्रेस पर आफत, जानें असर

नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और शानदार सफलता हासिल की.

Highlightsभाजपा की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं.पूर्वोत्तर में कांग्रेस हाशिये पर पहुंच गई है.नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और शानदार सफलता हासिल की.

Assembly Elections 2023: मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा विधानसभा के चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए राहत भरे हैैं तो कांग्रेस के लिए जबर्दस्त आघात के समान हैैं. चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि पूर्वोत्तर में कांग्रेस हाशिये पर पहुंच गई है जबकि भाजपा की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं.

त्रिपुरा में कांग्रेस वामपंथी गठबंधन तथा स्थानीय पार्टी टिपरा मोथा पार्टी से कड़ी टक्कर मिलने के बावजूद भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल करने में सफल रही है. नगालैंड में उसने स्थानीय दल नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और शानदार सफलता हासिल की.

महंगाई और भ्रष्टाचार तथा बेरोजगारी का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था

मेघालय में कोनराड संगमा की एनपीपी बहुमत से दूर रही है. मेघालय में एनपीपी के साथ मिलकर सरकार चलाने के बाद चुनाव से पहले भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा ने अलग राह अपना ली थी. उसने अकेले तकदीर आजमाने के बावजूद 10 प्रश वोट हासिल कर दिखा दिया कि मेघालय में भी उसकी जड़ें धीरे-धीरे फैल रही हैं.

सबसे बड़ा झटका पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लगा है. पूर्वोत्तर राज्यों में सत्तारूढ़ दलों का विकल्प बनाने के ममता के सपनों पर फिलहाल पानी फिर गया है. ममता की तृणमूल कांग्रेस को त्रिपुरा में मुंह की खानी पड़ी है. पूर्वोत्तर की तीन विधानसभाओं के चुनाव में विपक्षी दलों ने महंगाई और भ्रष्टाचार तथा बेरोजगारी का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था.

भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मोर्चा संभाला था. भाजपा के चुनाव प्रचार में विकास के लिए वोट मांगा गया था और विकास का मंत्र पूर्वोत्तर की जनता को लुभा गया.

नगालैंड में उसने एनडीपीपी के साथ गठबंधन किया था

त्रिपुरा में भाजपा के सामने सबसे कठिन चुनौती थी सत्ता विरोधी माहौल होने के साथ-साथ आदिवासियों की अलग राज्य की आकांक्षा को हवा देने वाली स्थानीय टिपरा मोथा पार्टी भाजपा के आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगा रही थी. भाजपा नेताओं ने त्रिपुरा में स्थानीय चुनौतियों और जमीनी हकीकत को गंभीरता से लिया और विकास को अपना मूलमंत्र बनाया.

त्रिपुरा में उसकी जीत जरूर हुई लेकिन नतीजों से साफ है कि अगर मोदी के नेतृत्व में पार्टी पूरी ताकत नहीं झोंकती तो चुनाव परिणाम कुछ और हो सकते थे. चुनाव के कुछ महीने पूर्व भाजपा ने त्रिपुरा में नेतृत्व परिवर्तन कर अपनी सरकार के विरुद्ध मतदाताओं में पनप रहे असंतोष को कुछ हद तक कम कर दिया.

मेघालय में पार्टी ने अकेले ताल ठोंकी लेकिन 10 प्रश वोट हासिल कर राज्य में अपने बढ़ते प्रभाव का संकेत दे दिया. नगालैंड में उसने एनडीपीपी के साथ गठबंधन किया था और उसे सफलता मिली. नगालैंड में भाजपा को दर्जन भर सीटें पाने में कामयाबी मिली.

2021 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी मोर्चे के साथ गठबंधन कर पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ा था

हिंदुत्व पर जोर देने वाली भाजपा के लिए नगालैंड जैसे इसाई बहुल राज्य में इतनी सीटें जीतना इस बात का प्रमाण है कि राज्य में उसका संगठन मजबूत है तथा जनाधार बढ़ाने की पार्टी की वर्षों की मेहनत रंग लाने लगी है. जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह पूर्वोत्तर में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है. 2021 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी मोर्चे के साथ गठबंधन कर उसने पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ा था.

उस चुनाव में उसका और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का खाता तक नहीं खुला था. उस गलती से कांग्रेस ने सबक नहीं लिया और त्रिपुरा में वामपंथी मोर्चे से हाथ मिला लिया. पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन अब वहां उसका अस्तित्व खतरे में नजर आता है.

अदानी मामले में पूर्वोत्तर के मतदाताओं को कोई दिलचस्पी नजर नहीं आई

पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की बहुचर्चित ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद कांग्रेस पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रही थी लेकिन कमजोर संगठन, सुस्त प्रचार तथा रणनीतिक गलतियों के कारण उसकी बुरी हालत हो गई. कांग्रेस अदानी को निशाना बनाकर चुनाव मैदान में उतरी. अदानी मामले में पूर्वोत्तर के मतदाताओं को कोई दिलचस्पी नजर नहीं आई.

कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद इन राज्यों में न तो संगठन को मजबूत बनाया और न ही नया नेतृत्व उभारा. सिर्फ चुनाव के समय प्रचार कर लेने से खोई जमीन हासिल नहीं की जा सकती. उसके लिए भाजपा की तरह योजनाबद्ध एवं आक्रामक रणनीति अपनाकर जुटे रहना पड़ता है. एक नेता पर आश्रित रहने से पार्टी की तकदीर बदल नहीं सकती. चुनाव से यह भी साबित हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी का जादू अभी भी मतदाताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है.

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