ब्लॉग: उत्तर प्रदेश में हिंदू एकता की नई चुनौती

By अभय कुमार दुबे | Published: January 18, 2022 09:50 AM2022-01-18T09:50:09+5:302022-01-18T09:50:09+5:30

भाजपा के समर्थकों का भी मानना है कि चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने की दृष्टि से अब पार्टी को अतिरिक्त परिश्रम करना होगा।

Assembly Election 2022 New Challenge of Hindu Unity in Uttar Pradesh | ब्लॉग: उत्तर प्रदेश में हिंदू एकता की नई चुनौती

यूपी चुनाव: उत्तर प्रदेश में हिंदू एकता की नई चुनौती (फाइल फोटो)

क्या 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर पहले से भी बड़ी हिंदू एकता बना सकती है? उत्तरप्रदेश की राजनीति के समीक्षकों का एक हिस्सा इस प्रश्न का नकारात्मक उत्तर दे रहा है. उनका तर्क स्पष्ट है. वे कहते हैं कि योगी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपने सामाजिक वायदे पर खरी उतरने में पूरी तरह से विफल रही है. न केवल छोटी और कमजोर जातियां उससे नाराज हैं (क्योंकि चुनाव जीतने के बाद उन्हें शासन-प्रशासन में कुछ नहीं मिला), बल्कि ब्राह्मण और वैश्य जैसी द्विज जातियां भी योगी शासन में ठगा सा महसूस कर रही हैं (क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप  में योगी मूलत: ठाकुर अजय सिंह बिष्ट होने की अपनी राजपूत पहचान से ऊपर नहीं उठ पाए हैं). 

ऊंची जातियों को मिले दस फीसदी आरक्षण के कारण हो सकता है कि भाजपा का पारंपरिक द्विज वोट बैंक एक बार फिर पुरानी नाराजगी भूल कर ताजे मानसिक उछाल का परिचय दे दे. इस तरह गठजोड़ के मुकाबले भाजपा ऊंची जातियों का ध्रुवीकरण अवश्य कर सकती है. लेकिन, उसके साथ हाल ही में जुड़ी निचली और कमजोर जातियों के पास उसका साथ देते रहने की ऐसी कोई वजह नहीं है. वे तो यह देख रही हैं कि जो पार्टी अपर कास्ट के ठप्पे से छुटकारा पाती दिख रही थी, वह व्यावहारिक जमीन पर एक बार फिर अपने पुराने संस्करण में जा चुकी है.

सतही दृष्टि से देखने पर यह तर्क सही लगता है. लेकिन यह उन खामोश प्रक्रियाओं की अनदेखी करता है जो पिछले पांच सालों में कमजोर जातियों के मतदातामंडल के भीतर चली हैं. हुआ यह है कि संघ परिवार और भाजपा ने इन बिरादरियों में एक अलग धरातल  पर अपनी पैठ बनाई है. अभी तक इन समुदायों के राजनीतिक प्रतिनिधियों के रुझान केवल और केवल आंबेडकरवादी राजनीति के तहत ही पनपते थे. 

2017 के दौरान बहुजन समाज पार्टी छोड़कर जो तत्व भाजपा में आए थे, और योगी मंत्रिमंडल में भागीदारी कर रहे थे, वे कांशीराम की बहुजनवादी पाठशाला से निकले थे. न तो भाजपा को इन पर भरोसा था, और न ही इन्हें भाजपा पर. ये तत्व देख रहे थे कि भाजपा उनकी बिरादरियों में उन्हें चुनौती देने वाला नेतृत्व तैयार करने की योजना चला रही है. 

भाजपा ने जहां और जब भी मौका मिला, इन जातियों में हिंदुत्व की विचारधारा में दीक्षित लोगों को राज्यसभा की सदस्यता द्वारा, संगठन में  पदाधिकारी बनाकर, केंद्रीय मंत्रिमंमडल में जगह देकर और अन्य जगहों पर बैठाकर प्रोत्साहित करने का एक सिलसिला चलाया.

आज जब बहुजन समाज पार्टी से आए लोग भाजपा छोड़कर अखिलेश यादव की पार्टी में चले गए हैं, भाजपा को भरोसा है कि वह कुछ न कुछ गैर-यादव पिछड़ों के वोट इन नए हिंदुत्ववादी तत्वों के जरिये प्राप्त करने में सफल हो जाएगी. दरअसल, उत्तर प्रदेश का यह चुनाव हिंदुत्व की विचारधारा की असली परीक्षा है. चुनाव परिणाम दिखाएंगे कि जिन नए तत्वों को संघ परिवार ने तैयार किया है, वे राजनीतिक दृष्टि से कितने काम
के हैं.

उत्तरप्रदेश की राजनीति हिंदुत्व के दीर्घकालीन प्रोजेक्ट के लिए हमेशा से बेहद महत्वपूर्ण रही है. हिंदू मतदाताओं की विशाल राजनीतिक एकता गढ़कर यह पार्टी मुसलमान वोटों की प्रभावकारिता तकरीबन समाप्त करने के अपने प्रयोग को इसी प्रदेश की जमीन पर अंजाम देने में लगी हुई है. यह प्रयोग 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में और 2017 के विधानसभा चुनाव में कमोबेश सफल हो चुका है. 

2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा इसे एक बार फिर दोहराना चाहती है. लेकिन इस बार परिस्थितियां पहले की तरह अनुकूल नहीं हैं. पहली बात तो यह है कि भाजपा को इस बार न कांग्रेस के खिलाफ एंटीइनकमबेंसी का लाभ होगा, न ही समाजवादी  पार्टी के खिलाफ. पिछले पांच साल से  प्रदेश में उसी की सरकार है, और आठ साल से केंद्र में भी वही हुकूमत कर रही है. जनता को जो कुछ नाराजगी है, वह भाजपा से ही होगी. सांप्रदायिक राजनीति का भाजपाई कार्ड भी तभी चलता है, जब किसी अन्य पार्टी की सरकार होती है. 

दूसरे, जो मतदाता समूह पिछले चुनावों में अपनी मतदान- प्राथमिकताएं बदल कर भाजपा के पाले में गए थे, वे एक बार फिर उन प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने के मूड में हैं. इनमें गैर-यादव पिछड़े मतदाता तो हैं ही, ऊंची जातियों के मतदाता (खासकर ब्राह्मण) भी हैं. पिछले एक हफ्ते में भाजपा के पाले से गैर-यादव पिछड़ी जातियों के कुछ राजनीतिक प्रतिनिधियों ने मंत्री पद छोड़ने का साहस करके समाजवादी पार्टी का दामन थामा है. 

इससे भाजपा की राजनीतिक योजनाओं को धक्का लगना स्वाभाविक है. भाजपा के समर्थकों का भी मानना है कि चुनावी माहौल को भाजपा के पक्ष में करने की दृष्टि से अब पार्टी को अतिरिक्त परिश्रम करना होगा.

Web Title: Assembly Election 2022 New Challenge of Hindu Unity in Uttar Pradesh

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे