आलोक मेहता का ब्लॉग: विश्व बाजार में मजबूती से पांव जमाने की नई चुनौती

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 4, 2020 05:09 PM2020-05-04T17:09:49+5:302020-05-04T17:09:49+5:30

यूरोपीय देश और अमेरिका ही नहीं खाड़ी के देश भी ‘गुड एग्रिकल्चर प्रैक्टिस’ के सरकारी प्रमाण पत्न होने पर ही भारतीय कृषि उत्पादों का आयात होने देते हैं. मतलब पिछले दशकों में उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिकाधिक केमिकल खाद, कीटनाशक दवाइयों से कई देशी-विदेशी कंपनियों और उनके एजेंट बन गए अधिकारी और नेताओं को जरूर लाभ मिला, लेकिन उससे भारतीय कृषि उत्पादों के निर्यात में गंभीर कठिनाइयां पैदा हुई हैं.

Alok Mehta blog: The new challenge to gain a foothold in the world market | आलोक मेहता का ब्लॉग: विश्व बाजार में मजबूती से पांव जमाने की नई चुनौती

सवाल उठेगा कि अब ऐसा चमत्कार कैसे होगा? क्या दुनिया बदल गई है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)

Highlightsकोरोना वायरस फैलाने के गंभीर अपराध और उसके उत्पादों के प्रति व्यापक शंकाएं विश्व भर में बढ़ गई हैं. औद्योगिक या इलेक्ट्रॉनिक सामान के साथ कृषि उत्पादों के सुनियोजित उत्पादन, वितरण और निर्यात का लाभ उसने उठाया है.

लंदन से आस्था ने फोन कर आग्रह किया कि जरा पता लगाइए कि भारत से आम और लीची आदि कब तक आना शुरू हो जाएगा? इन दिनों यहां पेरू का बेस्वाद आम मिल रहा है. हमने कुछ अधिकारियों से बात की तो पता लगा कि वैसे पिछले दिनों दो सौ करोड़ रु. मूल्य की सब्जी-फल आदि जरूर भेजे गए हैं लेकिन शायद आम थोड़ी देर से जाएगा.

अब आम के साथ हमने भारत से सब्जी, फल, कृषि उत्पादों के विश्व बाजार में स्थान पर कुछ विस्तार से जानने-समझने का प्रयास किया. तब समझ में आया कि चीन से मुकाबले के लिए केवल लघु मध्यम श्रेणी के  उद्योगों के बड़े पैमाने पर विकास एवं कुशल कारीगरों को तैयार करने के साथ कृषि उत्पादों के निर्यात से भारत का प्रभुत्व जमाने की अपार संभावनाएं हैं. अभी हम कृषि उत्पादों के निर्यात से करीब 38 अरब डॉलर की कमाई कर पा रहे हैं, जबकि क्षमता कई सौ गुना की है. इसके लिए कारखानों की तरह जमीन, मशीनों, भारी पूंजी निवेश और अधिक वेतन भत्ते वाले कर्मचारियों की जरूरत भी नहीं होगी.

सवाल उठेगा कि अब ऐसा चमत्कार कैसे होगा? क्या दुनिया बदल गई है? जी हां, कोरोना संकट से दुनिया बदल रही है, बाजार के रास्ते बदलने लगेंगे, पहिये पीछे कस्बों, गांवों की तरफ घूमने लगेंगे. 1992-93 में जब मुझे प्रधानमंत्नी नरसिंह राव के साथ चीन जाने का अवसर मिला, तब तो बीजिंग तक मुंबई से पिछड़ा दिखता था. केवल दस-पंद्रह वर्षो के बाद चीन जाने पर शंघाई से लगे उपनगर में लघु मध्यम श्रेणी के कारखानों की अनेक  बस्तियां मिलीं. कुछ वर्ष बाद इसी तरह विभिन्न प्रदेशों के कुछ कस्बों, गांवों में जाने पर समझ में आया कि औद्योगिक या इलेक्ट्रॉनिक सामान के साथ कृषि उत्पादों के सुनियोजित उत्पादन, वितरण और निर्यात का लाभ उसने उठाया है.

कोरोना वायरस फैलाने के गंभीर अपराध और उसके उत्पादों के प्रति व्यापक शंकाएं विश्व भर में बढ़ गई हैं. दूसरी तरफ भारत में भी प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कई राज्यों में पंचायत स्तर पर ग्रामीण विकास के कई अच्छे दूरगामी लाभ वाले कार्यक्रम क्रियान्वित हुए हैं. लेकिन अब भी पहले की तरह समन्वय एवं राज्य सरकारों के क्रियान्वयन प्रयासों में नई गति लाने की आवश्यकता है. यह सब मानते हैं कि कृषि उत्पादन कई गुना बढ़ गया, लेकिन किसान और गांवों को उतना लाभ कहां मिल पाया?

लंदन, पेरिस, न्यूयॉर्क, दुबई में आपको भारत के आम, सेब, अमरूद या बासमती चावल पाकर बहुत खुशी होती है और अब तो विदेशी भारतीय व्यंजन के शौकीन हो गए हैं. कोरोना की महामारी ने शाकाहार का महत्व भी संपन्न देशों के लोगों को समझा दिया है. अब जानिए रास्ता रुकता कहां है? प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने मन की बात और अन्य अवसरों पर कृषि की महत्ता, संभावनाओं, नई किस्म की खाद आदि की चर्चा जरूर की है और मंत्रियों अधिकारियों से विश्व बाजार की समस्याओं पर विचार किया होगा, लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों को यह नहीं मालूम कि ऑर्गेनिक फल-सब्जी भारत के सुविधासंपन्न लोगों से अधिक दुनिया के बाजार के लिए अनिवार्य है.

यूरोपीय देश और अमेरिका ही नहीं खाड़ी के देश भी ‘गुड एग्रिकल्चर प्रैक्टिस’ के सरकारी प्रमाण पत्न होने पर ही भारतीय कृषि उत्पादों का आयात होने देते हैं. मतलब पिछले दशकों में उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिकाधिक केमिकल खाद, कीटनाशक दवाइयों से कई देशी-विदेशी कंपनियों और उनके एजेंट बन गए अधिकारी और नेताओं को जरूर लाभ मिला, लेकिन उससे भारतीय कृषि उत्पादों के निर्यात में गंभीर कठिनाइयां पैदा हुई हैं.

एपीडा जैसी संस्थाओं के कुछ ईमानदार लोगों या स्वयंसेवी संस्थाओं, विशेषज्ञों ने कई रिपोर्ट सरकार को दी थी, लेकिन निहित स्वार्थी लॉबी या प्राथमिकता नहीं होने से इस मुद्दे पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा सका. फिर यह सरकारी प्रमाणपत्न की कागजी खानापूर्ति का मामला नहीं है. विदेशों में गुणवत्ता की पुष्टि की जाती है. इसी तरह जादुई चिराग या किसी आदेश से ऑर्गेनिक उत्पादन भी नहीं हो सकेगा. इसके लिए सुनियोजित ढंग से हर क्षेत्न को चिह्न्ति कर उस ढंग से किसानों को सलाह, सहायता देकर उसके भंडारण, परिवहन, भारतीय और विदेशी बाजार पहुंचाने की व्यवस्था करनी होगी.

Web Title: Alok Mehta blog: The new challenge to gain a foothold in the world market

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