विजय दर्डा का ब्लॉग: ये हैं हिंदुस्तान के दो अनमोल रतन...!
By विजय दर्डा | Published: February 20, 2023 07:16 AM2023-02-20T07:16:42+5:302023-02-20T07:16:42+5:30
हिंदुस्तान को विश्व राजनीति के पटल पर शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की पीएम नरेंद्र मोदी की कूटनीति को सफल बनाने में विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल कमाल की भूमिका अदा कर रहे हैं. वास्तव में ये दोनों हिंदुस्तान के दो अनमोल रत्न हैं....!
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीते शनिवार को जब अमेरिका के दिग्गज कारोबारी जॉर्ज सोरोस के लिए बूढ़ा रईस, हठधर्मी और खतरनाक शब्द का उपयोग किया तो उनके तीखे तेवर की दुनिया भर में चर्चा होने लगी. दरअसल जॉर्ज सोरोस वक्त बेवक्त हिंदुस्तान पर हमला करते रहते हैं. जयशंकर ने कहा कि जॉर्ज जैसे लोग न्यूयॉर्क में बैठकर सोचते हैं कि दुनिया उनकी मर्जी से चले!
आपको याद होगा कि पिछले साल जून में स्लोवाकिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जयशंकर ने एक सवाल का जवाब देते हुए बड़ी सख्ती के साथ कहा था कि यूरोप इस माइंडसेट के साथ बड़ा हुआ है कि उसकी समस्या पूरी दुनिया की समस्या है लेकिन दुनिया की समस्या यूरोप की समस्या नहीं है. उसके पहले वाशिंगटन में एक पत्रकार ने जयशंकर से जब यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस से भारत के तेल खरीदने पर सवाल किया था तो उनके जवाब ने पूरे यूरोप को परेशान कर दिया था.
जयशंकर ने कहा- ‘आप भारत के तेल खरीदने से चिंतित हैं लेकिन यूरोप रूस से जितना तेल एक दोपहर में खरीदता है, उतना भारत एक महीने में भी नहीं खरीदता है.’ जयशंकर की खासियत यही है कि वे सीधा जवाब देते हैं. बातों को गोलमटोल कभी नहीं बनाते. उनकी इस खासियत और तीखे तेवर ने उन्हें पूरी दुनिया में अलग पहचान दी है. सच तो यह है कि भारत तो क्या दक्षिण एशिया के किसी भी देश के विदेश मंत्री ने पश्चिम को कभी इस तरह से तीखे जवाब नहीं दिए! दिलचस्प बात ये है कि विदेशी राजनयिक भी उनका समर्थन करते हैं. जयशंकर ने जब यूरोप के माइंडसेट पर प्रहार किया तो भारत में जर्मनी के राजदूत रहे वाल्टर जे. लिंडनेर ने ट्वीट किया- ‘इनका तर्क बिल्कुल वाजिब है.’
जयशंकर वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति के सबसे बड़े दूत हैं. उनकी अपार क्षमताओं की वजह उनकी तीक्ष्णता और उनका व्यापक अनुभव है. न केवल विदेश सचिव के रूप में बल्कि चीन, रूस और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों में भारत के राजदूत के रूप में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई. मोदीजी ने उनकी क्षमताओं को पहचाना और मई 2019 में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया. उसके बाद से उनके तेवर दुनिया देख रही है.
किसी देश की हिम्मत नहीं कि वह भारत पर टिप्पणी करे और जयशंकर चुप रहें. सीधे शब्दों में कहें तो एस. जयशंकर इस समय पूरी दुनिया में दहाड़ रहे हैं. इस दहाड़ की वजह पीएम नरेंद्र मोदी की स्पष्ट नीति है कि भारत अब कमजोर नहीं! विश्व गुरु बनने की राह पर निकल पड़ा है. इस वक्त शक्तिशाली जी-20 और शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन जैसी संस्था की अध्यक्षता भारत के पास है. जयशंकर से जब भारत के राष्ट्रवाद को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने बड़े सधे लहजे में कहा- भारत का राष्ट्रवाद व्यापक अंतरराष्ट्रीयवाद को आगे बढ़ा रहा है.
विश्व राजनीति का इतिहास रहा है कि एक तरफ दहाड़ना जरूरी है तो सफलता के लिए अति सूक्ष्म कूटनीति का जाल भी उतना ही आवश्यक है. और इस काम के लिए खुफिया अभियानों के माहिर और सशक्त खिलाड़ी अजित डोभाल से बेहतर और कौन हो सकता है? वे चुपचाप अपना काम करते रहते हैं और दुनिया को अचानक अचंभित कर देते हैं. बिल्कुल ताजा उदाहरण देखिए. इसी फरवरी के पहले सप्ताह में वे अमेरिका पहुंचे. वहां के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने उनसे भेंट करने के बाद कहा कि वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए अमेरिका भारत के साथ सहयोग बढ़ा रहा है. इसके बाद डोभाल ब्रिटेन पहुंचे. लंदन में ब्रिटेन के सुरक्षा सलाहकार टिम बैरो से मुलाकात हुई और कमाल की बात है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी बैठक में शामिल हुए.
वहां से निकल कर डोभाल रूस पहुंचे जहां अफगानिस्तान को लेकर एक बैठक हुई. उसमें ईरान, कजाकिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, रूस और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शामिल थे लेकिन पाकिस्तान से कोई नहीं था! पाक के पास एनएसए है ही नहीं और उसने बैठक में शामिल होने से इनकार भी कर दिया था. बैठक में पाकिस्तान का शामिल न होना भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है. जिस अफगानिस्तान में तालिबान को लाने के लिए पाक ने सारे पापड़ बेले वही तालिबान अब उसका दुश्मन बन बैठा है.
कितनी बड़ी बात है कि जिस अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे को भारत के लिए खतरा माना जा रहा था वही तालिबान भारत के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाने उतावला हो रहा है. वहां के नागरिक भी पाकिस्तान के दुश्मन बन बैठे हैं. बाजी पलटने में निश्चय ही अजित डोभाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उनकी शख्यिसत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आमतौर पर किसी देश के कैबिनेट मंत्री से भी नहीं मिलते लेकिन वे सारे प्रोटोकॉल तोड़ कर डोभाल से मिलने पहुंचे. आपको दिलचस्प बात याद दिला दूं कि पुतिन और डोभाल दोनों ही पेशेवर रूप से जासूस रहे हैं.
हिंदुस्तान की अहमियत दुनिया में स्थापित हो चुकी है. अमेरिका जानता है कि चीन के खिलाफ तो उसे हिंदुस्तान की जरूरत है ही, रूस में भारत ही उसकी आवाज बन सकता है. रूस को भी हिंदुस्तान पर ही भरोसा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं और उनकी कूटनीति का यही प्रमुख बिंदु भी है. वे स्वयं तो कूटनीति के माहिर खिलाड़ी हैं ही, एस. जयशंकर और अजित डोभाल पर भी वे खासा भरोसा करते हैं. ये दोनों वास्तव में हिंदुस्तान के दो अनमोल रतन हैं.