ब्लॉगः असम में अफस्पा छह महीने के लिए बढ़ाया, ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित हुआ राज्य, क्या है इसका औचित्य?

By दिनकर कुमार | Published: September 28, 2021 01:30 PM2021-09-28T13:30:46+5:302021-09-28T13:32:27+5:30

असम सरकार ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए पूरे असम राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया है.

AFSPA assam government extended armed forces special powers act six more months 'disturbed area' | ब्लॉगः असम में अफस्पा छह महीने के लिए बढ़ाया, ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित हुआ राज्य, क्या है इसका औचित्य?

कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक सप्ताह बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘ऐतिहासिक समझौता’ बताया. (file photo)

Highlights 28 अगस्त 2021 से छह महीने तक लागू रहेगा जब तक कि इसे पहले वापस नहीं लिया जाता.केंद्र और असम सरकारों ने पिछले डेढ़ साल में जातीय विद्रोही समूहों के साथ दो बड़े शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.असम के राज्यपाल द्वारा जारी आदेश में अफस्पा के विस्तार के समर्थन में आठ कारणों का हवाला दिया गया है.

असम सरकार ने विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम 1958, या अफस्पा पूरे राज्य में और छह महीने के लिए बढ़ा दिया है. कानून उग्रवाद विरोधी अभियानों में शामिल सुरक्षा बलों को व्यापक शक्तियों की गारंटी देता है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों को इस बात का कोई औचित्य नहीं दिखता कि पूरे राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित क्यों किया गया है, जबकि उग्रवाद समाप्त हो रहा है और जातीय विद्रोही समूहों ने केंद्र के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

कहने की जरूरत नहीं है कि पूर्वोत्तर और कश्मीर घाटी जैसे उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में इसके कथित दुरुपयोग के कारण अफस्पा को निरस्त करने की मांग लंबे समय से होती रही है. 11 सितंबर को असम सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग के एक संक्षिप्त प्रेस बयान में कहा गया है, ‘असम सरकार ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 की धारा 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए पूरे असम राज्य को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर दिया है. यह 28 अगस्त 2021 से छह महीने तक लागू रहेगा जब तक कि इसे पहले वापस नहीं लिया जाता.

स्थानीय मीडिया में व्यापक रूप से प्रकाशित किए गए इस बयान में अगले छह महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र का टैग लगाने का कोई कारण नहीं बताया गया. यह कदम काफी आश्चर्यजनक है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र और असम सरकारों ने पिछले डेढ़ साल में जातीय विद्रोही समूहों के साथ दो बड़े शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.

दिलचस्प बात यह है कि मूल सरकारी आदेश पर किसी का ध्यान नहीं गया. असम के राज्यपाल द्वारा जारी आदेश में अफस्पा के विस्तार के समर्थन में आठ कारणों का हवाला दिया गया है. उनमें से एक उल्लेखनीय है क्योंकि यह कहता है, ‘कार्बी आंगलोंग, पश्चिम कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ के पहाड़ी जिलों में जातीय-आधारित उग्रवाद देखा गया है, जिसका अंतर-राज्य प्रभाव है. इसके अलावा, इन समूहों को पड़ोसी राज्यों में सक्रिय एनएससीएन (आई-एम) जैसे उग्रवादी समूहों से समर्थन मिला है.

नीरज वर्मा, प्रमुख सचिव (गृह और राजनीतिक विभाग) असम द्वारा हस्ताक्षरित, राज्यपाल के आदेश की अधिसूचना 10 सितंबर 2021 को जारी की गई थी-केंद्र द्वारा छह उग्रवादी समूहों के साथ त्रिपक्षीय कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक सप्ताह बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘ऐतिहासिक समझौता’ बताया.

पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने बाद में सरकार के इस कदम को सही ठहराते हुए कहा कि असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में विद्रोही समूह अभी भी सक्रि य हैं. उन्होंने कहा कि यह मानना गलत होगा कि जब तक सभी विद्रोही समूह मुख्यधारा में वापस नहीं आ जाते, तब तक क्षेत्र में पूर्ण शांति है.

सरमा का मतलब यह था कि असम अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण है, लेकिन विद्रोही समूह अभी भी मणिपुर और नगालैंड जैसे पड़ोसी राज्यों में सक्रि य हैं. नगालैंड में एनएससीएन (आई-एम) केंद्र के साथ शांति वार्ता में लगा हुआ है, लेकिन अन्य नगा विद्रोही समूह हैं जिनके विध्वंसक गतिविधियों में शामिल होने का संदेह है.

एक ही कानून के तीन संस्करण हैं- अफस्पा (असम और मणिपुर), 1958; अफस्पा (पंजाब और चंडीगढ़), 1983; और अफस्पा (जम्मू-कश्मीर), 1990. उत्तर-पूर्व में, अफस्पा शुरू में केवल नगा पहाड़ियों में लागू किया गया था, फिर असम का एक हिस्सा था, और बाद में जातीय सशस्त्र विद्रोहों से निपटने के लिए शेष क्षेत्र में इसका विस्तार किया गया था.

त्रिपुरा और मेघालय ने क्र मश: 2015 और 2018 में अफस्पा को हटा दिया. असम भी कुल मिलाकर कई वर्षों से शांतिपूर्ण रहा है - प्रमुख विद्रोही समूह होने का कारण, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम (उल्फा), एक दशक पहले शांति प्रक्रि या में शामिल हुआ था.

इसके अतिरिक्त, दिमासा, बोडो और कार्बी समुदायों के अन्य जातीय विद्रोही समूहों ने पिछले एक दशक में केंद्र सरकार के साथ शांति समझौते किए हैं. इस पृष्ठभूमि में, पूरे असम को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित करने के निर्णय ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आलोचना को आमंत्रित किया है. 

Web Title: AFSPA assam government extended armed forces special powers act six more months 'disturbed area'

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