काबुल में तालिबानी वर्चस्व और भारत की चिंताएं, शोभना जैन का ब्लॉग

By शोभना जैन | Published: July 9, 2021 01:29 PM2021-07-09T13:29:53+5:302021-07-09T13:31:06+5:30

अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में भारत द्वारा बनाए गए ‘भारत-अफगान मैत्नी बांध’ के सुरक्षा नाके पर तालिबान ने हमला किया जिसमें सोलह सुरक्षा कर्मी मारे गए.

Afghanistan Taliban supremacy Kabul and India's concerns us pm narendra modi Shobhana Jain's blog | काबुल में तालिबानी वर्चस्व और भारत की चिंताएं, शोभना जैन का ब्लॉग

भारत के लिए यह स्थिति खास तौर पर और भी चिंताजनक है.

Highlightsहाल के वर्षो में यह बांध अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाई जाने वाली सबसे महंगी आधारभूत परियोजना है.अफगानिस्तान भारत का न केवल पड़ोसी है बल्कि दोनों देश परंपरागत सांस्कृतिक रिश्तों से जुड़े हैं.भारत वहां बड़े पैमाने पर विकास और कल्याण कार्यक्रमों से जुड़ा है.

अफगानिस्तान में पिछले दो माह से देश के अनेक हिस्सों में तालिबान के लगातार बढ़ते कब्जे से वहां स्थिति अराजक होती जा रही है.

 

तालिबानी वर्चस्व के भयावह खतरों की आशंका से न केवल काबुल सरकार बल्किपूरी दुनिया, खास तौर पर अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया से जुड़े  भारत सहित कुछ अन्य देशों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. हाल ही में मीडिया में आई यह खबर निश्चय ही चिंताजनक है, जिसमें कहा गया है कि दो दिन पूर्व अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में भारत द्वारा बनाए गए ‘भारत-अफगान मैत्नी बांध’ के सुरक्षा नाके पर तालिबान ने हमला किया जिसमें सोलह सुरक्षा कर्मी मारे गए.

गौरतलब है कि हाल के वर्षो में यह बांध अफगानिस्तान में भारत द्वारा बनाई जाने वाली सबसे महंगी आधारभूत परियोजना है, जिसका लाभ आम अफगान नागरिक को ही मिलना है. ऐसे में इस तरह के ठिकानों पर हमला आत्मघाती तो लगता ही है, साथ ही अनेक सवाल उठाता है. अफगानिस्तान के भावी शासकीय स्वरूप और उसमें तालिबान की भूमिका  के इन तमाम उलझे समीकरणों में अगर भारत की बात करें तो अफगानिस्तान भारत का न केवल पड़ोसी है बल्कि दोनों देश परंपरागत सांस्कृतिक रिश्तों से जुड़े हैं.

भारत वहां बड़े पैमाने पर विकास और कल्याण कार्यक्रमों से जुड़ा है और सबसे अहम बात यह है कि अफगान जनता के भारत के साथ सौहाद्र्रपूर्ण नजदीकी संबंध हैं. ऐसे में एक तरफ तालिबान हिंसा का तांडव जारी रखता है और दूसरी तरफ बातचीत की मेज पर भी रहता है तो आखिर उस पर कैसे भरोसा किया जाए. भारत के लिए यह स्थिति खास तौर पर और भी चिंताजनक है.

वह लगभग तीन अरब डॉलर की मदद देकर क्षेत्न में अफगानिस्तान का सबसे बड़ा डोनर है. नवंबर 2020 में ही भारत ने अफगानिस्तान में 150 नई परियोजनाओं की घोषणा की है.  सिर्फ मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण की परियोजनाएं ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान में भारत शैक्षणिकसंस्थाएं, तेल और गैस की इकाइयां, इस्पात उद्योग, विद्युत आपूर्ति के ढांचे को विकसित करने जैसे कामों में भी सबसे अहम भूमिका निभाता आ रहा है. एक तरफ जहां अनेक देश वहां की बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर अपने दूतावास बंद कर रहे हैं,

वहीं बढ़ती हिंसा की चिंताजनक स्थिति के बावजूद भारत ने काबुल में भारतीय उच्चायोग, कंधार एवं मजार-ए-शरीफ में वाणिज्य दूतावास अभी भी खुला रखा है. अलबत्ता अपने नागरिकों और वहां काम करने वाले अपने कर्मियों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए उसने यह कहा है कि वह उभरती सुरक्षा स्थिति, खास तौर पर कंधार और मजार के आसपास के शहरों की स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए है.

तेजी से घट रहे घटनाक्रम में नई दिल्ली स्थित अफगान राजदूत मामुन्दजई ने दो दिन पूर्व ही विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रिंगला से मुलाकात कर अफगान स्थिति पर चर्चा की. विदेश मंत्नी डॉ. जयशंकर  अपनी इस सप्ताह की रूस यात्ना में खास तौर पर रूसी नेताओं से अफगान मुद्दे पर चर्चा करेंगे. रूस अफगानिस्तान की स्थिति से जुड़े समन्वित प्रयासों में भारत की भूमिका अहम मानता है.  

अब जबकि अफगानिस्तान में तालिबान फिर से मजबूत हो रहा है और जब अमेरिकी फौज की रवानगी हो रही है, भारत के सामने एक नई चुनौती है. बीते दो सालों से अमेरिका और तालिबान के बीच जो बातचीत का दौर चलता आ रहा है, उससे भारत ने ख़ुद को अलग ही रखा था लेकिन मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर पहली बार भारत सरकार ने गत दिनों तालिबान से बातचीत का रास्ता खोला है.

अभी तक भारत अफगान संकट पर तालिबान के साथ  संवाद  नहीं करने की नीति का पालन करता रहा था और भारत सरकार सिर्फ अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार के साथ ही रिश्ते कायम रखने की हिमायती थी. निश्चित तौर पर भारत की अफगान नीति में यह बड़ा बदलाव है, जबकि वह तालिबान के साथ सीधे आधिकारिक रूप से बातचीत कर रहा है.

ऐसे में हेरात में भारतीय सहयोग से बनने वाले बांध पर तालिबानी हमले की खबर चिंताजनक है. बदलते राजनीतिक और सुरक्षा माहौल में भारत ने अपने हितों और प्रतिबद्धताओं के आकलन के बाद अफगान वार्ता में तालिबान से सीधे बात करनी शुरू की है. तालिबान को भी यह समझना होगा कि हिंसा कहीं ले नहीं जा रही है.

वैसे इन तमाम चर्चाओं में अनेक अबूझ सवालों पर मंथन हो रहा है जिसमें फौजें हटने के बाद अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति कैसी रहती है, नई राजनीतिक व्यवस्था में तालिबान की क्या भूमिका होगी, वह कितनी मजबूत स्थिति में होता है,  तालिबान के साथ बनने वाली सरकार का स्वरूप क्या होगा, क्या वह सही मायने में प्रगतिशील, जनकल्याणकारी हो सकेगी.

भारत के सुरक्षा सरोकारों से जुड़े अहम सवाल शामिल हैं. तालिबान को समझना है कि वह एक तरफ भारत के साथ बातचीत की मेज पर है तो ऐसे में अफगानिस्तान के विकास में सहयोग देने वाली और अफगान जनता के लिए कल्याणकारी भारतीय परियोजनाओं पर उसके हमले उसकी नीयत को लेकर सवाल उठाते हैं. बहरहाल, तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत से ऐसा रास्ता बने जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों वाली कल्याणकारी राज्य की स्थायी प्रशासनिक व्यवस्था बने और देश फिर से खून-खराबे की तरफ नहीं लौटे.

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