अभिलाष खांडेकर का ब्लॉगः आइए, गरीबी कम होने का जश्न मनाएं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 5, 2023 11:17 AM2023-08-05T11:17:47+5:302023-08-05T11:19:14+5:30

गरीबी, स्वास्थ्य, बाल मृत्यु दर, मलेरिया, टीबी आदि से संबंधित कोई भी लक्ष्य सदस्य देशों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सका। संयुक्त राष्ट्र को रणनीति में संशोधन करना पड़ा और वैश्विक सामाजिक कल्याण के दायरे को व्यापक बनाते हुए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को अपनाना पड़ा।

Abhilash Khandekar Blog Let's Celebrate Poverty Reduction | अभिलाष खांडेकर का ब्लॉगः आइए, गरीबी कम होने का जश्न मनाएं

अभिलाष खांडेकर का ब्लॉगः आइए, गरीबी कम होने का जश्न मनाएं

लगभग दो महीने पहले, मैंने गरीबी (गरीबी हटाओ या अमीरी बढ़ाओ) पर इस कॉलम में गरीबों और उनकी दुर्दशा के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की थी। अब हमारे पास सुखद आंकड़ों के साथ कई भारतीय राज्यों में गरीबी में उल्लेखनीय कमी आने की अच्छी खबर है। हालांकि आधिकारिक आंकड़ों को भारतीय संदर्भ में हल्के में लिया जाता है, लेकिन हमें खुश होना चाहिए कि 13.5 करोड़ लोग गरीबी की दलदल से बाहर आ गए हैं, जैसा कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी करते समय नीति आयोग ने दावा किया है।

भारत इस विशाल देश में रहने वाले अधिकांश गरीब लोगों का घर है, हालांकि विकसित और अविकसित दुनिया के कई अन्य देशों में भी यह सामाजिक-आर्थिक चुनौती है जिसने विकास में बाधा उत्पन्न की है। जब संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2000 में सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) घोषित किए, तो गरीबी उन्मूलन और भुखमरी मिटाना उन आठ लक्ष्यों में शामिल थे। इन्हें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा 2015 तक हासिल किया जाना था। लेकिन यह लक्ष्य हासिल करने में पूरी दुनिया विफल रही। गरीबी, स्वास्थ्य, बाल मृत्यु दर, मलेरिया, टीबी आदि से संबंधित कोई भी लक्ष्य सदस्य देशों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सका। संयुक्त राष्ट्र को रणनीति में संशोधन करना पड़ा और वैश्विक सामाजिक कल्याण के दायरे को व्यापक बनाते हुए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को अपनाना पड़ा। हालांकि, गरीबी उन्मूलन पहला वैश्विक लक्ष्य बना हुआ है। जुलाई के मध्य के नीति आयोग के आंकड़े दुनिया को बताते हैं कि भारत वास्तव में निर्धारित समय-2030 से पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 हासिल कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो यह मोदी प्रशासन की एक बड़ी उपलब्धि होगी। एसडीजी लक्ष्य उम्मीद बंधाते हैं कि एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) लागू होने के बाद से 15 वर्षों में गरीबी आधी हो जाएगी।

नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम 90 के दशक के मध्य में मध्य प्रदेश के पिछड़े और सबसे गरीब क्षेत्रों में से एक में कलेक्टर थे; उन्होंने गरीबी को करीब से देखा है। 80 और 90 के दशक में भारत में विकास की कहानी पर ‘बीमारू’ कथानक हावी था। बीमारू (पिछड़े राज्य बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और यूपी) एक उत्कृष्ट जनसांख्यिकी विशेषज्ञ प्रोफेसर आशीष बोस द्वारा गढ़ा गया एक संक्षिप्त नाम था। सुब्रह्मण्यम नीति आयोग के नए सीईओ हैं लेकिन इस शानदार काम का श्रेय अकेले उन्हें देना विभिन्न राज्यों और सामाजिक क्षेत्र के पदाधिकारियों के साथ अन्याय होगा। हालांकि, उनके नेतृत्व में गरीबों और अमीरों के बीच बढ़ती खाई को पाटने के लिए प्रमुख योजना निकाय का साथ देना चाहिए।

नीति आयोग ने पहले से ही कई आकांक्षी जिले निर्धारित किए हैं, यह उम्मीद करते हुए कि वे आगे आएंगे और स्वास्थ्य, गरीबी, पोषण, शिक्षा आदि से संबंधित संकेतकों पर दूसरों से बराबरी करेंगे। खुशी की बात यह है कि पारंपरिक रूप से पिछड़े राज्यों मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में बेहद गरीबी में रहने वालों की संख्या में सबसे तेज गिरावट देखी गई है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन स्तर (पेयजल, स्वच्छता) जैसे सभी आयामों को संबोधित करता है।

भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश ने 3.43 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकालने में मदद करके प्रभावशाली सफलता दर्ज की है। म।प्र। ने भी गरीबी 36.57 प्रतिशत घटाकर एक कीर्तिमन बनाया है। एक राष्ट्र के रूप में, भारत ने दिखाया है कि वह 9.89 प्रतिशत अंक यानी 13.5 करोड़ व्यक्तियों की गरीबी कम कर सकता है। नीति आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों भारत में सुधार हुआ है। ग्रामीण भारत की स्थिति काफी बेहतर है, जहां एमडीपी 32.6 प्रतिशत से घटकर 19.3 प्रतिशत हो गया है।
 
ये आंकड़े रोटी, कपड़ा और मकान की तलाश में लोगों के गांवों से शहरों की ओर पलायन करने की प्रवृत्ति को रोक सकते हैं। अगर अगले एक दशक में ऐसा होता है, तो भीड़-भाड़ वाले भारतीय शहर राहत की सांस लेंगे। बेशक, जनसांख्यिकीविदों, अर्थशास्त्रियों और शहरी योजनाकारों को बदलते सामाजिक पैटर्न पर नजर रखनी होगी। आय स्तर बढ़ाने के लिए अर्थशास्त्री पहले से ही अगले 25 वर्षों के लिए 7 प्रतिशत विकास दर की बातें कर रहे हैं, लेकिन यह एक कठिन लक्ष्य है। इसे पाने में कई बाधाएं आएंगी।

आंकड़े जारी करते समय नीति आयोग ने कहा : ‘‘यह टिकाऊ और न्यायसंगत विकास सुनिश्चित करने और 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सरकार के रणनीतिक फोकस को प्रदर्शित करता है, और इस प्रकार एसडीजी प्रतिबद्धता का पालन करता है।’’ एसडीजी की निगरानी के लिए नोडल एजेंसी नीति आयोग को पता होगा कि इन लक्ष्यों को हासिल करने में केवल सात साल बाकी हैं।

राजनीतिक रूप से देखा जाए तो जिन पांच राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है, उनमें से केवल दो भाजपा शासित (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) हैं, जबकि राजस्थान, बिहार और ओडिशा में अलग-अलग पार्टियों की सरकार है, जहां ‘डबल इंजन’ फॉर्मूला काम नहीं कर रहा है। इसलिए शिवराज सिंह चौहान और नवीन पटनायक की पीठ थपथपाई जानी चाहिए। उन्होंने इसे फ्रीबीज (मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं ) के माध्यम से हासिल किया या प्रणालीगत परिवर्तनों के माध्यम से, इसका निर्णय स्थानीय मतदाताओं को करना होगा। लेकिन निश्चित ही यह जश्न मनाने का समय है। गरीबी कम होना देश व समाज के हित में है।

Web Title: Abhilash Khandekar Blog Let's Celebrate Poverty Reduction

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे