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अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: बाहुबलियों ने उठाकर पटक दिया है लोकतंत्र को

By अभय कुमार दुबे | Updated: May 12, 2023 07:16 IST

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भारतीय राजनीति में बाहुबली सार्वजनिक जीवन के अपराधीकरण की शीर्ष उपलब्धि है. बाहुबली जातिगत और धार्मिक समुदाय के समर्थन के दम  पर खड़ा होता है. अपने समुदाय में उसकी छवि हीरो की होती है. पार्टियों और नेताओं को लगता है कि अमुक बाहुबली के समर्थन का मतलब है कम-से-कम किसी एक क्षेत्र में उस समुदाय के वोटों का समर्थन. उस इलाके में सभी तरह के ठेके, शराब का धंधा, पेट्रोल पंपों का व्यवसाय, खनन का काम, बड़े अपहरण, फिरौती की वसूली, बड़े पैमाने पर होने वाली उगाही के तंत्र के सूत्र बाहुबली के हाथ में होते हैं. वह गाहे-बगाहे अपने समुदाय में जरूरतमंदों की मदद भी करता है. 

गुंडे, शूटर, तस्कर, संगठित गिरोहों में काम करने वाले अपराधी बाहुबली की योजना और आवश्यकता के मुताबिक काम करते हैं. बाहुबली पुलिस को बहुत बड़े पैमाने  पर रिश्वत मुहैया कराता है. बड़े-बड़े वकील उसे अपने मुवक्किल के तौर  पर देखते हैं. दरअसल, अमेरिकी माफिया का भारतीय संस्करण अगर कोई है तो वह बाहुबली है. हालांकि दोनों के बीच काफी अंतर भी है.

आइए, उदाहरण के रूप  में कुछ बाहुबलियों की चर्चा करें. इस समय बहुचर्चित बाहुबलियों की सूची में सबसे चर्चित नाम बृजभूषण शरण सिंह का है. एक वीडियो इंटरव्यू में वे स्वीकार कर चुके हैं कि कम-से-कम एक हत्या तो इनके हाथ से हुई ही है. ‘द स्क्रोल’ को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वयं बताया है कि 2004 में उनके खिलाफ खड़े भाजपा के उम्मीदवार घनश्याम शुक्ला की दुर्घटना में मृत्यु होने पर स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी ने संदेह व्यक्त किया था कि यह उन्हीं का किया धरा हो सकता है. 

वे स्वयं को ‘शक्तिशाली’ कहते हैं. ठठा कर हंसते हैं. जोक पर जोक मारते हैं. यह शक्तिशाली व्यक्ति जब चलता है तो उसके साथ कारों का एक काफिला होता है. वह नब्बे के दशक से लगातार सांसद चुना जाता रहा है. एक बार दाऊद इब्राहिम के किसी गुर्गे के साथ संबंधों के चलते उनका टिकट कट गया था, पर उन्होंने टिकट पत्नी को दिला कर सांसद बनवा दिया था. 

भाजपा के हैं, पर समाजवादी पार्टी से भी जीत चुके हैं. उनका मौजूदा कारनामा यह है कि भारतीय कुश्ती संघ के लंबे अरसे से अध्यक्ष रहने के दौरान उन पर अंतरराष्ट्रीय महिला  पहलवानों द्वारा यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं. पहलवान साक्षी मलिक ने दो साल पहले भी उनकी यह शिकायत की थी. लेकिन आज तक कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सका. वे धमकी भरे अंदाज में कहते हैं कि अगर उन्होंने मुंह खोल दिया तो सुनामी आ जाएगा. 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ दो रपटें दर्ज कर ली हैं, जिनमें एक पोस्को के तहत (नाबालिग लड़की के साथ यौन दुराचार का आरोप) है. अगर कोई और होता तो यह रपट दर्ज होते ही गिरफ्तार कर लिया जाता. पर बृजभूषण के मामले में दिल्ली पुलिस आराम से धीरे-धीरे एक कभी न खत्म होने वाली जांच कर रही है.

एक और बाहुबली हैं जो हाल ही में थे हो चुके हैं. इनका नाम कौन नहीं जानता. ये थे अतीक अहमद. न जाने कितनी पार्टियों से चुनाव लड़ा, शायद केवल एक बार हारे. उनका बेटा स्वयं अपने गाल पर ‘डॉन’ लिखवा कर तस्वीर खिंचवाता था. खुद अतीक अहमद ने ही एक बार कहा था कि उनका अंत या तो पुलिस एनकाउंटर में होगा, या कोई उन्हीं की अपराधी बिरादरी का सिरफिरा उन्हें सड़क किनारे मार कर गिरा देगा. वही हुआ. 

अतीक का बेटा एनकाउंटर में मारा गया. खुद अतीक को उसके भाई समेत पुलिस हिरासत में तीन शूटरों ने मार गिराया. इसी तरह के एक बाहुबली मुख्तार अंसारी हैं जिन्हें अभी कुछ दिन पहले एक मामले में सजा हो गई है. अब वे कह रहे हैं कि उन्हें डॉन या बाहुबली नहीं कहा जाना चाहिए.

भारतीय राजनीति में इन बाहुबलियों का उभार मुख्य तौर पर नब्बे के दशक में हुआ था. इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि पहले उनके राजनीति के साथ संबंध नहीं थे. ऐसे गिरोहबाजों को पार्टियों और राजनेताओं द्वारा हमेशा पाला जाता रहा है. लेकिन नब्बे के दशक में उनकी जरूरत खास तौर पर बढ़ी. यह समय राजनीतिक अस्थिरता का था. उ.प्र. और केंद्र में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता था. 

ऐसे में एक-एक सीट के लाले पड़ते थे. अगर कोई दबंग व्यक्ति अपनी और आसपास की सीटें जीतने की गारंटी करता था तो उसकी राजनीतिक कीमत बढ़ जाती थी. बहुमत का जुगाड़ करने और सरकार को गिरने से बचाने या गिराने के लिए इन बाहुबलियों की ताकत का इन्हीं दिनों जम कर इस्तेमाल हुआ. 

इस सिलसिले ने राजनीति का बाहुबलीकरण कर दिया. बृजभूषण शरण सिंह शायद इस देश के सबसे दबंग, सबसे सफल और सबसे टिकाऊ बाहुबली माने जाएंगे. आज तक उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया है. उन्होंने भारतीय लोकतंत्र को उठा कर पटक दिया है, और अखाड़े में अपने घुटने के नीचे दबा कर उसे चित करने के लिए घिस्से मार रहे हैं.

टॅग्स :बृज भूषण शरण सिंहअतीक अहमदमुख्तार अंसारी
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