अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कोविड-19 से मौत के आंकड़ों पर उठते सवाल

By अभय कुमार दुबे | Published: October 10, 2020 11:17 AM2020-10-10T11:17:14+5:302020-10-10T11:17:14+5:30

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में कोरोना से एक लाख से अधिक लोगों की मौत अब तक हो चुकी है. सवाल उठ रहा है कि कहीं इस तरह के आंकड़ों के जरिये एक भयावह चित्र तो नहीं पेश किया जा रहा है.

Abhay Kumar Dubey blog: Questions on death toll from Covid 19 | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: कोविड-19 से मौत के आंकड़ों पर उठते सवाल

कोविड-19 से मौत के आंकड़ों पर उठते सवाल (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsकोरोना में एक लाख लोगों की मौत के आंकड़ों पर सवाल, भयावह चित्र पेश करने की कोशिश तो नहींकोरोना के तहत मौत को गिने जाने के तरीकों पर भी सवाल, इसलिए पैदा हो रही है आशंका

क्या वास्तव में कोविड-19 महामारी से अभी तक एक लाख लोगों की मौत हुई है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस तरह के आंकड़ों के जरिये एक भयावह चित्र उपस्थित किया जा रहा है ताकि भारत में हुए दुनिया के सबसे बड़े और कड़े लॉकडाउन की नीति के ऊपर कोई सवालिया निशान न लगाया जा सके?
  
सामाजिक अनुसंधानकर्ता प्रमोद रंजन ने कोरोना बीमारी की शुरुआत से ही उससे संबंधित आंकड़ों और दावेदारियों की गहन आलोचनात्मक समीक्षा की है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइड-लाइन बताती है कि ऐसी मौतें जिनमें टेस्ट के परिणाम अस्पष्ट आए हों, प्रतीक्षित हों या फिर निगेटिव ही क्यों न हों, लेकिन अगर उनमें ‘कोविड-19 के कोई लक्षण’ मौजूद रहे हों तो उन्हें कोविड से हुई मौत के रूप में गिना जाएगा. यानी मृतक की टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव आना आवश्यक नहीं है. 

टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव होने पर भी अगर मृतक में कोविड-19 से मिलता-जुलता कोई लक्षण हो तो उसे कोविड-19 से संभावित मृत्यु के रूप में दर्ज किया जाता है. रिपोर्ट निगेटिव रहने के बावजूद ऐसे मृतकों को, जिनमें न्यूमोनिया का कोई भी लक्षण हो, का सामना करना पड़ रहा हो या हृदय पर चोट या रक्त वाहिनियों में खून के थक्के जमने आदि जैसे उपरोक्त दर्जनों लक्षणों में से कोई भी लक्षण रहे हों तो उन्हें कोविड-19 से ‘संभावित’ या ‘संदिग्ध’ मृत के रूप में दर्ज कर लिया जाता है. 

अगर कोई व्यक्ति जांच में पॉजीटिव पाया जाता है और उसके बाद उसकी मौत किसी भी बीमारी से होती है, तो भी उसे कोविड-19 से हुई मौत माना जाएगा. अगर किसी व्यक्ति को कोविड-19 का संक्रमण होता है और उसके संपर्क में आने वाले किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो उसे भी कोविड-19 से ‘संभावित’ मौत में गिना जाएगा, भले मृतक की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव ही क्यों न आई हो.

प्रमोद रंजन ने एक आंखें खोल देने वाला उदाहरण दिया है. किसी युवक का कोविड-19 टेस्ट पॉजीटिव आता है और कुछ समय बाद उसके 60 वर्षीय पिता की मौत हो जाती है. पिता पिछले 15 साल से मधुमेह से पीड़ित थे. पिता का कोविड-19 टेस्ट उपलब्ध नहीं था, लेकिन उसमें मौत से पहले इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण थे या उन्होंने मौत से पहले सांस लेने में तकलीफ महसूस की थी, तो ऐसी मौत को ‘संदिग्ध’ श्रेणी में रखते हुए कोविड-19 से होने वाली मौत के रूप में गिना जाएगा. 

इसके अलावा, एक अन्य गाइड-लाइन सभी राज्यों को 10 मई को ‘भारत में कोविड-19 में मेडिको-लीगल शव परीक्षा के लिए मानक’ शीर्षक से भी भेजी गई है. इसमें कहा गया है कि ‘एपिडेमियोलॉजिकल हिस्ट्री’ के आधार पर भी मृत लोगों की पहचान ‘कोविड-19 से मौत’ के रूप में की जाए. 

इनमें वे व्यक्ति आते हैं जिन्होंने किसी ऐसी जगह की यात्र की है जिसे कोविड-19 हॉटस्पॉट के रूप में चिह्न्ति किया गया हो या ऐसी किसी जगह पर रहे हों या हॉटस्पॉट में रहे किसी बुखारग्रस्त व्यक्ति से मिले हों. 

अगर इनमें से किसी में भी ‘एपिडेमियोलॉजिकल हिस्ट्री’ मौजूद हो और मरने वाले में कोविड-19 के कोई लक्षण सामने नहीं आए हों, न ही उसकी टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव हो, तब भी उसे कोविड-19 से हुई मौत माना जाएगा. 

कुछ अखबारों में इसी गाइड-लाइन के हवाले से कहा गया है कि ‘एपिडेमियोलॉजिकल हिस्ट्री’ वाले व्यक्ति की मौत होने पर अगर उसमें कोविड-19 के कोई लक्षण मौजूद नहीं हैं, तब भी उन्हें संक्रमित व्यक्ति के संपर्क  में आने और लक्षण उभरने के बीच की अवधि में मान कर ‘कोविड-19’ से हुई मौत के रूप में गिना जाए. इस प्रकार सभी ‘लावारिस लाशों’ को भी इसी श्रेणी में रखा जाए.

कोविड हो या न हो, प्रमोद रंजन द्वारा किए गए विशलेषण के अनुसार भारत में हर रोज लगभग 26 हजार लोगों की मौत होती है, जिनमें से जीवन-प्रत्याशा के हिसाब से आधे से अधिक को असमय मृत्यु कहा जा सकता है. इनमें से 1600 पांच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. 

भारत में हर साल लगभग आठ लाख लोग कैंसर से मरते हैं. टी.बी. से मौतों के मामले में भारत विश्व में पहले स्थान पर है. अकेले भारत में हर साल 25 लाख से अधिक लोगों को टी.बी. होती है, जिनमें से हर साल 4.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है. 

भारत में न्यूमोनिया से हर साल 1.27 लाख लोग मरते हैं, जिनमें बच्चों की संख्या सबसे अधिक होती है. न्यूमोनिया से मरने वालों में विश्व में भारत का नंबर दूसरा है. भारत में मलेरिया से हर साल लगभग दो लाख लोगों की मौत होती है, जिनमें से ज्यादातर आदिवासी होते हैं. 

भारत में हर साल एक लाख से अधिक बच्चे डायरिया से मर जाते हैं. इसी तरह, यहां हर साल हैजे से भी हजारों लोगों की मौत होती है. प्रमोद ने यह भी साबित किया है कि जिस समय भारत में जबरदस्त लॉकडाउन चल रहा था, यहां के 81 प्रतिशत लोग बेहतर नींद के लिए लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. जाहिर है कि कोरोना में मरे हुए एक लाख लोगों का आंकड़ा बेहद संदिग्ध है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey blog: Questions on death toll from Covid 19

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे