ब्लॉग: 'सेलिब्रिटी किड' हों या कोई और, बच्चों की निजता की सीमा न लांघे सोशल मीडिया

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 22, 2023 02:44 PM2023-04-22T14:44:48+5:302023-04-22T14:46:05+5:30

आराध्या बच्चन का मामला अपनी तरह का कोई इकलौता मामला नहीं है. व्यूज पाने के चक्कर में कई सोशल मीडिया साइट्स अभी तक न जाने कितने जिंदा लोगों के मरने की खबर चला चुकी हैं.

Aaradhya Bachchan case, court say Social Media Shouldn't Intrude On Children's Privacy | ब्लॉग: 'सेलिब्रिटी किड' हों या कोई और, बच्चों की निजता की सीमा न लांघे सोशल मीडिया

ब्लॉग: 'सेलिब्रिटी किड' हों या कोई और, बच्चों की निजता की सीमा न लांघे सोशल मीडिया

दिल्ली हाईकोर्ट का यह कहना बिल्कुल सही है कि प्रत्येक बच्चे के साथ सम्मान एवं गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए और बच्चे के स्वास्थ्य के संबंध में भ्रामक जानकारी का प्रसार कानून में पूरी तरह से अस्वीकार्य है. अदालत ने यह बात गुरुवार को कई यूट्यूब चैनल द्वारा अभिनेता अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन की बेटी आराध्या बच्चन के स्वास्थ्य से जुड़ी भ्रामक सामग्री प्रकाशित करने पर रोक लगाते हुए कही. 

अदालत ने नाबालिग बच्ची और उसके पिता की याचिका पर सुनवाई के दौरान गूगल को अपने मंच से उन वीडियो को हटाने का निर्देश दिया, जिसमें दावा किया गया था कि आराध्या बच्चन गंभीर रूप से बीमार हैं और अब वह नहीं रहीं. बच्चे चाहे किसी सेलिब्रिटी के हों या आम आदमी के, सबको समान रूप से निजता का अधिकार हासिल है. 

यह सोच कर भी हैरानी होती है कि कोई किसी के बच्चे के बारे में अनाप-शनाप कुछ भी कैसे कह सकता है? हकीकत तो यह है कि सोशल मीडिया जहां कई मामलों में वरदान सिद्ध हुआ है, वहीं कुछ लोगों ने दुरुपयोग कर इसे कई लोगों के लिए अभिशाप भी बना डाला है. आज अत्याधुनिक तकनीक के जमाने में कोई भी बात चंद मिनटों में ही पूरी दुनिया में फैल सकती है. 

ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कोई किसी के बारे में चाहे जो कह दे. इसीलिए अदालत ने गूगल से मध्यस्थता नियमों के मद्देनजर अपने मंच यूट्यूब पर इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री से निपटने के लिए अपनी नीति को विस्तार से बताते हुए एक जवाबी हलफनामा भी सौंपने का निर्देश दिया है. ऐसी आपत्तिजनक सामग्री को सोशल मीडिया मंचों से तत्काल हटाए जाने की व्यवस्था तो होनी ही चाहिए, ऐसी सामग्री अपलोड करने वालों को कड़ी सजा देना भी जरूरी है. 

आराध्या बच्चन का मामला अपनी तरह का कोई इकलौता मामला नहीं है. व्यूज पाने के चक्कर में कई सोशल मीडिया साइट्स अभी तक न जाने कितने जिंदा लोगों के मरने की खबर चला चुकी हैं. इससे संबंधित व्यक्ति को कितनी भावनात्मक तकलीफ पहुंचती है, इससे उन साइट्स को कोई फर्क नहीं पड़ता. 

इसलिए बिना तथ्यात्मक पुष्टि के किसी के भी बारे में मानहानिकारक व्यक्तिगत खबरों को प्रचारित-प्रसारित करने वालों को जल्दी से जल्दी कड़ी सजा दिए जाने का तंत्र बनना चाहिए ताकि ऐसा करने वालों के मन में भय पैदा हो सके.

Web Title: Aaradhya Bachchan case, court say Social Media Shouldn't Intrude On Children's Privacy

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