विजय दर्डा का ब्लॉग: 83 देशों के नागरिक अब भी गुलाम...!
By विजय दर्डा | Published: August 15, 2022 09:20 AM2022-08-15T09:20:02+5:302022-08-15T09:40:26+5:30
हम वाकई खुशनसीब हैं. हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. लोकतंत्र में जी रहे हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया में अब भी कम से कम 83 ऐसे देश हैं जहां के नागरिक गुलामों जैसी जिंदगी जी रहे हैं. कहीं सीधे-सीधे कोई तानाशाह सत्ता दबोच कर बैठा है तो कहीं लोकतंत्र के चोले में तानाशाह छिपा बैठा है!
उम्मीद है चीनी बिजनेस टाइकून जैक मा को आप भूले नहीं होंगे. डेढ़ साल पहले तक पूरी दुनिया में उनका बड़ा नाम हुआ करता था. तब उनकी संपत्ति आंकी गई थी करीब 2370 करोड़ यूएस डॉलर. आज जैक मा का कोई अता-पता नहीं है. सार्वजनिक रूप से अंतिम बार उन्हें नंवबर 2020 में देखा गया. वैसे उन्हें 2021 में हांगकांग में देखने की बात की जाती है लेकिन इस दावे की पुष्टि नहीं हुई.
आप सोच रहे होंगे कि भारत की आजादी के अमृत महोत्सव पर मैं आपको जैक मा की कहानी क्यों सुना रहा हूं. दरअसल यह आजादी को सत्ता की ओर से दबोच लेने का का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है. जैक मा को दरअसल चीन की सरकार ने शिकंजे में कस लिया है. वे बहुत अमीर और ताकतवर हो रहे थे.
तानाशाही में कोई और मजबूत नहीं हो सकता है
जहां भी तानाशाही होती है वहां सत्ता के अलावा किसी और को मजबूत होने की इजाजत नहीं होती है. सत्ता को खौफ रहता है इसलिए जैक मा जैसे मशहूर व्यक्ति को भी तबाह कर दिया जाता है. जब जैक मा की यह हालत हो सकती है तो आप सहज ही सोच सकते हैं कि वहां सामान्य व्यक्ति की क्या स्थिति होगी?
चीन के शिनझियांग प्रांत में नई शिक्षा के नाम पर करीब 10 लाख मुसलमानों को सुधार गृह नामक कैदखाने में बंद किया जा चुका है. वहां न मस्जिद, न गिरजाघर और न ही कोई मंदिर है! धर्मपरायण तिब्बत को भी चीन ने तबाह कर दिया है. चीन अब ताइवान को भी हड़प जाना चाहता है.
दुनिया के 83 देशों में अब भी तानाशाह गद्दी संभाले है
यह कहानी केवल चीन की ही नहीं है बल्कि दुनिया के करीब 83 देश ऐसे हैं जहां या तो सीधे-सीधे कोई तानाशाह सत्ता में बैठा है या फिर धर्म के नाम पर तानाशाही चल रही है. पुतिन के आने के पहले रूस में कई बड़े उद्योगपति हुआ करते थे लेकिन आज उनका कोई अता-पता नहीं है. सब बर्बाद हो गए. ईरान और मध्यपूर्व के हालात से सभी परिचित हैं.
पाकिस्तान में कहने को लोकतंत्र है लेकिन वहां भी सत्ता तो सेना के पास ही है. पिछले साल आपने देखा कि म्यांमार में किस तरह से सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. न जाने कितने लोगों को म्यांमार की सेना ने भून डाला. पाकिस्तान में तख्तापलट के किस्से तो आप जानते ही हैं.
पाकिस्तान से लेकर श्रीलंका हर जगह है तानाशाही
श्रीलंका के हालात आप देख ही रहे हैं. मैंने अपने इस कॉलम में श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की तानाशाही के बारे में लिखा भी था. उत्तर कोरिया की दर्दनाक कहानी छन-छन कर सामने आती रही है कि एक सनकी तानाशाह किम जोंग उन किस तरह से करोड़ों की आबादी को गुलाम बनाए बैठा है. लोग बस जी रहे हैं.
वहां आप अपनी मर्जी से अपनी हेयर स्टाइल भी नहीं रख सकते! तानाशाह का चित्र घर में नहीं है तो मौत तय है. इसके ठीक विपरीत उसका पड़ोसी लोकतांत्रिक दक्षिण कोरिया हर रोज तरक्की कर रहा है. अफ्रीकी देशों में कहीं तानाशाह बैठा है तो उसे हटाने की कोशिश करने वाले धर्मांध लोग भी तानाशाह से कम नहीं हैं.
आखिर आजादी क्यों है जरूरी?
ये कहानियां आपको मैं इसलिए बता रहा हूं ताकि आप यह समझ सकें कि आजादी का मतलब क्या है? हमें नतमस्तक होना चाहिए अपने पुरखों के प्रति जिन्होंने आजाद हवा के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की. मैं हमेशा कहता हूं कि मेरी दिवाली महात्मा गांधी हैं, मेरी होली पंडित नेहरू हैं, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह और उन जैसे हजारों-हजार क्रांतिकारी मेरे दिल में बसते हैं.
मेरा भरोसा महावीर और गौतम बुद्ध में है. मेरा जज्बा शिवाजी महाराज का है क्योंकि मैं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के घर में जन्मा हूं. मेरे बाबूजी ज्येष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री जवाहरलाल दर्डा भी करीब पौने दो साल तक जबलपुर की जेल में कैद रहे. अंग्रेजों की यातनाएं सहीं.
75 साल की आजादी के लिए कई कुर्बानियां दी गई है
तो हम जिस 75 साल की आजादी के आनंद में आज डूबे हैं उसे प्राप्त करने में महात्मा गांधी की अहिंसा शामिल है तो न जाने कितने महान क्रांतिकारियों का लहू भी इसमें शमिल है. न जाने कितनी माओं की गोद सूनी हुई, न जाने कितनी मांगें उजड़ गईं और न जाने कितनी बहनें भाई के लिए बिलखती रहीं.
इस आजादी के लिए देश को ढेर सारी कुर्बानी देनी पड़ी है. हर कौम, धर्म, मजहब और हर जाति के लोगों ने कुर्बानी दी है. न जाने कितने लोग अंग्रेजों की जेल में वर्षों कैद रहे. आजादी के बाद वक्त के 75 साल का एक बड़ा दौर गुजर चुका है. स्वतंत्रता सेनानियों की पीढ़ी करीब-करीब विदा ले चुकी है. आजादी के बाद की तीसरी पीढ़ी अब कमान संभाल चुकी है.
हम में कुछ कमियां आई है लेकिन देश के लिए प्रेम का भाव अब भी है
सामाजिक भावनाएं कुछ कमजोर पड़ी हैं, रिश्ते और नाते थोड़े दरक गए हैं, प्रेम का भाव मद्धिम पड़ा है. ...लेकिन गर्व है कि राष्ट्रप्रेम निरंतर परवान चढ़ रहा है. मैं शुक्रगुजार हूं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का जिन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव को इतना बड़ा बनाया. हर घर पर तिरंगा फहराने का बिगुल बजाया.
आम आदमी को भी हर रोज तिरंगा फहराने का अधिकार दिलाने के लिए मैं राज्यसभा में लगातार प्रयासरत था. ये अधिकार मिलना आजादी को और परवान चढ़ाने जैसा है.
आओ नवजवानों, करो यह काम
हमारे क्रांतिकारियों ने जो तिरंगा हमें सौंपा है, उसकी आन-बान-शान हमें बनाकर रखना है. नौजवानों उठो! हर रोज तिरंगा फहराओ. मैं पिछले महीने ही कश्मीर की कठिन वादियों में सरहद पर तैनात भारतीय सेना के जवानों से मिलकर लौटा हूं. तिरंगा ही हमारी पहचान है. मैं वहां कैफी आजमी की नज्म गुनगुना रहा था... तुहारे हवाले वतन साथियो...!
आओ देश से गरीबी और लाचारी को हटाए, बनाए नया भारत
एक बात और जरूर कहना चाहूंगा कि हमने खूब तरक्की की है लेकिन आज भी ऐसे लोग हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती. बहुत से हाथ अब भी रोजगार के लिए तरस रहे हैं. कंधे और साइकिल पर अपनों की लाश ढोने का दुखद नजारा आज भी दिख जाता है. बहन और बेटियां क्रूरता का शिकार हो रही हैं.
आदिवासियों की जिंदगी को अब भी खुशहाली का इंतजार है. इन सबसे हमें मुक्ति पानी है. इसके लिए केवल सरकार के भरोसे नहीं रहा जा सकता.
सरकार के साथ हमें भी पूरी ताकत से करना होगा काम
सरकार के साथ मिलकर हमें भी पूरी ताकत से काम करना होगा ताकि हम कमजोरों को आजादी का अमृत चखा सकें और खुद भी आजादी के असली अमृत का आनंद ले सकें. फिर हम ज्यादा आनंद से कह सकेंगे... सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा...! जय हिंद...!