2026 Commonwealth Games: हॉकी, निशानेबाजी, क्रिकेट, बैडमिंटन और कुश्ती जैसे खेलों को ग्लासगो में 2026 में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के कार्यक्रम से बाहर किए जाने के बाद भारतीय खेल जगह में नाराजगी व्याप्त है. इन खेलों के हटने से भारत के पदक जीतने की संभावनाओं को गहरा झटका लगा है. चूंकि राष्ट्रमंडल खेल महासंघ (सीजीएफ) ने कॉस्ट कटिंग के नाम पर उन खेलों को बाहर किया है, जिसमें भारतीय प्रशंसकों की गहरी रुचि है और जो रेवेन्यू के लिहाज से भी अहम हैं, लिहाजा सीजीएफ का यह फैसला समझ से परे है.
ग्लासगो राष्ट्रमंडल प्रतियोगिता के कार्यक्रम से हटाए गए खेलों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि इसमें दक्षिण एशियाई देशों खासकर भारत और चीन का दबदबा रहा है. भारत को सबसे ज्यादा हॉकी, क्रिकेट और बैडमिंटन में नुकसान होगा क्योंकि इसमें हम पदक के प्रबल दावेदारों में शामिल हैं. बैडमिंटन को बाहर किया जाना समझ में आता है.
क्योंकि इसमें चीन, जापान, द. कोरिया और भारत जैसे चुनिंदा देशों का ही दबदबा रहा है लेकिन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, अर्जेंटीना, कनाडा जैसे देशों का दबदबा होने के बावजूद हॉकी को बाहर करना समझ से परे है और यह भारत के लिए करारा झटका है. भारतीय हॉकी टीम ने पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीता और वह फिर से इस खेल में अपना एकाधिकार जमाने की राह पर है.
भारत में क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. दुनिया के किसी भी हिस्से में भारतीय टीम का मैच हो, वहां दर्शकों की कमी नहीं होती. इससे मेजबान देश और बोर्ड का रेवेन्यू बढ़ जाता है लेकिन लागत को सीमित करने का हवाला देने वाले सीजीएफ को यह बात क्यों नहीं समझ आई. इसके पीछे की रणनीति साफ है.
खेल में भारत के बढ़ते प्रभुत्व को सीमित करना और उन्हें पदक जीतने से वंचित रखना. सीजीएफ को क्रिकेट, हॉकी, निशानेबाजी जैसे खेलों के लिए भारत से स्पॉन्सरशिप भी आसानी से मिल जाती, जिससे उसके खर्चे की समस्या हल हो सकती थी.अब उन खेलों की बात करते हैं जिन्हें ग्लासगो राष्ट्रमंडल प्रतियोगिता में शामिल किया गया है.
यहां आप देखेंगे कि एथलेटिक्स (ट्रैक एवं फील्ड), तैराकी, कलात्मक जिम्नास्टिक, ट्रैक साइक्लिंग, नेटबॉल, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी, जूडो, बाउल्स, 3x3 बास्केटबॉल में अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड का कोई मुकाबला नहीं है. लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह है कि भारत को वैश्विक स्तर पर अपनी जगह बनाने के लिए इन खेलों में तेजी से सुधार लाने होंगे.
यदि भारत 2036 में ओलंपिक की मेजबानी करना चाहता है तो ऐसा नहीं हो सकता कि इन खेलों में मेजबान देश की दावेदारी न हो या फिर कमजोर हो. इसमें परिणाम हासिल करने के लिए खेलो इंडिया गेम्स, स्कूल गेम्स, यूनिवर्सिटी गेम्स जैसे आयोजनों में इन खेलों को प्रमोट करने की जरूरत है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण चीन है जिसने लंदन ओलंपिक, 1948 के बाद कुछ दशकों तक खुद को वैश्विक आयोजनों से दूर रखा और अपने एथलीटों को तैयार किया. अब नतीजा आपके सामने है.