पूरी दुनिया में बाढ़ से होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत केवल भारत में होती हैं, हम कब चेतेंगे?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: August 30, 2018 15:26 IST2018-08-30T15:26:57+5:302018-08-30T15:26:57+5:30
गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में केवल 2018 में अब तक बाढ़ और इसके हादसों में कम-से-कम 1000 लोगों की जान जा चुकी है।

पूरी दुनिया में बाढ़ से होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत केवल भारत में होती हैं, हम कब चेतेंगे?
ऋतुपर्ण दवे
पहली तस्वीर, दुनिया में बाढ़ से होने वाली मौतों में 20 फीसदी भारत में होती हैं। विश्व बैंक ने भी इसे कबूलते हुए चिंता बढ़ा दी है। इससे 2050 तक भारत की आधी आबादी के रहन-सहन के स्तर में और गिरावट होगी। इस बार पिछले 100 बरस के इतिहास में सबसे बड़ी तबाही केरल में हुई है।
गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में केवल 2018 में अब तक बाढ़ और इसके हादसों में कम-से-कम 1000 लोगों की जान जा चुकी है।
सरकारी आंकड़ों को ही सच मानें तो भी भयावहता कम नहीं है। गृह मंत्रालय के नेशनल इमर्जेंसी रिस्पॉन्स सेंटर(एनईआरसी) के 13 अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक बाढ़ और बारिश से केरल में 187, उ।प्र। में 171, प।बंगाल में 170 और महाराष्ट्र में 139, गुजरात में 52, असम में 45 और नगालैंड में 8 लोगों की जान गई जबकि कई लापता हैं।
वहीं महाराष्ट्र के 26, असम के 23, पबंगाल के 22, केरल के 14 उप्र के 12 नगालैंड के 11 और गुजरात के 10 जिले ज्यादा प्रभावित हुए हैं। उत्तराखंड, मप्र, हिमाचल के कई इलाकों का बुरा हाल है।
‘विश्व बांध आयोग’ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में बड़े-बड़े बांधों में आधे से ज्यादा ऐसे हैं, जिनमें अनुमानित विस्थापितों की संख्या जहां दोगुने से भी ज्यादा है।
वहीं दक्षता, सहभागी निर्णय प्रक्रिया, टिकाऊपन और जवाबदारी जैसे पांच बुनियादी सिद्धांतों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के साथ ही बांध के दूसरे सारे विकल्पों की भली-भांति जरूरी जांच सवालों में है? योजनाओं को बनाने वाले ‘ब्यूरोक्रेट्स’ तो सालों साल वही रहेंगे लेकिन उनको अमलीजामा पहनाने वाले जनतंत्र के ‘डेमोक्रेट्स’ क्या अगली बार होंगे?
ज्यादातर जनप्रतिनिधियों को रीति-नीति, सिद्धांतों और बाद के प्रभावों से क्या लेना देना। तभी तो आंखें मूंद बिना अध्ययन या विचार के सब स्वीकार लेते हैं। माना कि प्राकृतिक आपदा पर पूरी तरह अंकुश नामुमकिन है।
लेकिन यह भी सही है कि प्रकृति के साथ इंसानी क्रूर हरकतें बेतहाशा बढ़ रही हैं। अभी भी वक्त है सभी को चेतना होगा वरर्ना हर मौसम में प्रकृति के अलग रौद्र रूप को झेलने तैयार रहना होगा।