तीन साल पहले कर्नाटक में एक युवक ने पबजी खेलने से मना करने पर अपने पिता का सिर काट दिया था, जबकि पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इसी ऑनलाइन गेम के लती एक किशोर ने अपनी मां को अपने घर में ही गोली मार दी. इस वारदात के बाद भी हम नहीं चेते तो आगे इससे भी बड़े सामाजिक-पारिवारिक अनर्थों को अपना पीछा करते पाएंगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ऑनलाइन गेमिंग को मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित कर चुका है. उसने इस लत को कोकीन व जुए की लत से भी ज्यादा खतरनाक बताया है. मनोवैज्ञानिक ऑनलाइन गेमों के बच्चों, युवाओं व किशोरों पर पड़ने वाले घातक प्रभावों को लेकर लगातार आगाह करते आए हैं.
उनके अनुसार ऑनलाइन गेम खेलने वाले 95.65 प्रतिशत बच्चे व किशोर बिहैवियर कन्डक्ट डिसआर्डर से पीड़ित होकर गहरे तनाव में रहते हैं. इसके मद्देनजर दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों केंद्र सरकार से कहा था कि वह बच्चों, किशोरों व युवाओं को ऑनलाइन गेमों की लत से बचाने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाए. लेकिन सरकार द्वारा अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया गया.
अगर हम अभी भी, जब पानी सिर से ऊपर होता दिखाई देने लगा है, जवाब में तथ्यों का कम और सुभीतों का ज्यादा ध्यान रखेंगे तो कोई आश्चर्य नहीं कि जल्दी ही अपनी अनियंत्रित मोबाइल-संस्कृति का वैसा ही खामियाजा भुगतने को विवश हो जाएं, जैसे इन दिनों अमेरिका स्कूलों तक में अंधांधुंध फायरिंग के तौर पर अपनी बंदूक-संस्कृति का भुगत रहा है.
कुछ अरसा पहले ऑनलाइन गेमों की लत के शिकार युवा व किशोर रोके-टोके जाने पर निराशा में आत्महत्या का रास्ता चुनते थे. लेकिन अब लगता है उनकी ऐसी निराशाएं कहीं ज्यादा क्रूर आक्रामकताओं में बदल गई हैं और मरने-मारने को उकसाने वाले ऑनलाइन गेम उनके उलझाव को अंतहीन बनाने पर आमादा हैं.