ब्लॉग: जीवनशैली पर ही टिका है मानसिक स्वास्थ्य का आधार

By गिरीश्वर मिश्र | Published: October 10, 2024 06:45 AM2024-10-10T06:45:05+5:302024-10-10T06:48:01+5:30

बाहर का कोलाहल कम कर योग और ध्यान की सहायता से आंतरिक शांति की स्थिति पैदा करना श्रेयस्कर है। सुख की दिशा में अग्रसर होने की यही राह है।

Mental health depends on lifestyle | ब्लॉग: जीवनशैली पर ही टिका है मानसिक स्वास्थ्य का आधार

ब्लॉग: जीवनशैली पर ही टिका है मानसिक स्वास्थ्य का आधार

स्वस्थ रहना यानी अपने आप में (आत्मस्थ!) रहना हमारी स्वाभाविक स्थिति होनी चाहिए, पर समकालीन  परिवेश में यह संभव नहीं हो पा रहा है। स्वास्थ्य में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव तो ठीक होता है और वह जल्दी ही संभल भी जाता है पर ज्यादा विचलन होने पर वह असह्य हो जाता है और तब व्यक्ति को ‘बीमार’ या ‘रोगी’ कहा जाता है। तब मन बेचैन रहता है, शरीर में ताकत नहीं रहती और दैनिक कार्य और व्यवसाय आदि के दायित्व निभाना कठिन हो जाता है, जीवन जोखिम में पड़ता सा लगता है और उचित उपचार के बाद ही स्वास्थ्य की वापसी होती है।

किसी स्वस्थ आदमी का अस्वस्थ होना व्यक्ति, उसके परिवार, सगे-संबंधी और परिजन और मित्र सभी के लिए पीड़ादायी होता है और जीवन की स्वाभाविक गति में व्यवधान उपस्थित हो जाता है। रोग की तीव्रता के अनुसार उसका असर कम या ज्यादा अवधि तक बना रह सकता है। रोग होने का मुख्य कारण व्यक्ति की आनुवंशिक पृष्ठभूमि के साथ उसकी जीवन शैली और वे भौतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां भी होती हैं जिनमें हम जीवनयापन करते हैं। तीव्र सामाजिक परिवर्तन के दौर में लगातार बदलाव आ रहे हैं।

गौरतलब है कि अक्सर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच भेद किया  जाता  है हालांकि यह सोच ठीक नहीं है। मानसिक परेशानी के चलते शारीरिक बीमारियां और शारीरिक रोग से मानसिक रुग्णता होना एक आम बात है। शरीर और मन को अलग रखना गलत है क्योंकि स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य दोनों ही स्थितियों में ये एक संयुक्त इकाई के रूप में ही काम करते हैं। हम रोग का अनुभव भी करते हैं और उससे निपटने की कोशिश भी करते है।

जब जीवन की घटनाएं खास तौर पर त्रासद होने लगती हैं तो मानसिक रोगों की आहट मिलने लगती है। इस दृष्टि से बेरोजगारी, सामाजिक अन्याय, पारिवारिक विघटन, जीवन-हानि और गरीबी जैसी स्थितियां आम आदमी के मानसिक स्वास्थ्य के लिए चुनौती बनती जा रही हैं।

कहते हैं हमारा मन ही बांधता है और मुक्त भी करता है। हमारा शरीर साध्य भी है और मानसिक अस्तित्व का साधन भी। बाहर का कोलाहल कम कर योग और ध्यान की सहायता से आंतरिक शांति की स्थिति पैदा करना श्रेयस्कर है। सुख की दिशा में अग्रसर होने की यही राह है। यह अनायास नहीं है कि ‘सम’, ‘समत्व’ और मध्यम मार्ग को अपनाने पर बड़ा जोर दिया जाता रहा है। आयुर्वेद जीवन के हर पक्ष में सम बनाए रखने का निर्देश देता है तो गीता समत्व की साधना को योग घोषित करती है : समत्वं योग उच्यते. लोक-व्यवहार में भी ‘अति’ वाला आचरण वर्जित माना जाता है। बड़े-बूढ़े अब भी संतुलित जीवन की हिदायत देते हैं।

Web Title: Mental health depends on lifestyle

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