Environment polluted: माइक्रोप्लास्टिक से पर्यावरण प्रदूषित होने के साथ ही कुछ प्रजातियों के नष्ट होने का भी बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है. इसके साथ ही इस बात के प्रमाण भी मिले हैं कि प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण या टुकड़े इंसान के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत हानिकारक हो सकते हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि कण का आकार कितना बड़ा है क्योंकि बड़े कण ज्यादा हानिकारक हो सकते हैं. इससे फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है. दरअसल समुद्र में जाने वाला प्लास्टिक विघटित होता है और टूट कर माइक्रोप्लास्टिक के रूप में सामने आता है.
यह वे कण होते हैं जिनका व्यास 5 मिलीमीटर से भी कम होता है. आईयूसीएन के अनुसार पिछले चार दशकों में समुद्र के सतही जल में इन कणों में काफी वृद्धि हुई है. हाल के कुछ अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि की गई है कि प्लास्टिक के कण इंसान के खून और वायु मार्ग में अपना रास्ता खोज रहे हैं. हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है और वह छोटे-छोटे कणों में पर्यावरण में फैल जाता है.
प्लास्टिक के छोटे कण इंसान की सेहत के लिए कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं इस पर फिलहाल कई अध्ययन चल रहे हैं. लेकिन माना जाता है कि यह सूक्ष्म कण फेफड़ों में लंबे समय तक बने रह सकते हैं. इससे फेफड़ों में सूजन हो सकती है एवं सूजन के दौरान ये कण प्रतिरक्षा प्रणाली के ऊतकों को नुकसान तक पहुंचा सकते हैं.
इसके साथ ही ये कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म देने में भी सहायक हैं. ये सूक्ष्म प्लास्टिक के कण प्रजनन व विकास संबंधी समस्याओं का भी कारण हैं. विशेषज्ञों ने एक अध्ययन में बताया है कि रोजाना इस्तेमाल होने वाली किन चीजों से खून और फेफड़ों में माइक्रोप्लास्टिक भर जाते हैं. शोधकर्ताओं ने 12 प्रकार के प्लास्टिक की पहचान की है.
जिसमें पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीथीन के साथ ही टेरेफ्थेलेट और राल शामिल हैं. ये प्लास्टिक आमतौर पर पैकेजिंग, बोतलों, कपड़ों, रस्सी और सुतली निर्माण में पाए जाते हैं. माइक्रोप्लास्टिक के सबसे खतरनाक स्रोतों में शहर की धूल, कपड़ा और टायर भी शामिल हैं. कई खाद्य और पेय पदार्थ भी शरीर में माइक्रोप्लास्टिक भर रहे हैं.
इनमें बोतलबंद पानी, नमक, समुद्री भोजन, टीबैग, तैयार भोजन और डिब्बाबंद भोजन शामिल हैं. हर रोज इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक पानी में अरबों सूक्ष्म कण छोड़ रहा है. साल 2021 में शोधकर्ताओं ने अजन्मे बच्चे के गर्भनाल में माइक्रोप्लास्टिक पाया था.
तब भ्रूण के विकास में इसके संभावित परिणामों पर बड़ी चिंता व्यक्त की गई थी. ऐसे में जबकि वैज्ञानिकों ने शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की पहचान कर ली है, इस बात की आशंका है कि इंसान वर्षों से प्लास्टिक के छोटे कण को खा रहे हैं, पी रहे हैं या सांस के जरिए शरीर में ले रहे हैं.