ब्लॉग: जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में कमी लाना जरूरी
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 14, 2023 11:13 AM2023-11-14T11:13:38+5:302023-11-14T11:23:55+5:30
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक प्रमुख नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारें 2030 में ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए निर्धारित अधिकतम सीमा से लगभग 110% अधिक जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने की योजना बना रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक प्रमुख नई रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारें 2030 में ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए निर्धारित अधिकतम सीमा से लगभग 110% अधिक जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने की योजना बना रही हैं। दो डिग्री सेल्सियस के लिहाज से देखें तो वे 69% अधिक जीवाश्म ईंधन का उत्पादन करने की तैयारी कर रही हैं।
ऐसा तब है जब 151 राष्ट्रीय सरकारों ने नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का वादा किया है और ताजातरीन पूर्वानुमानों से पता चलता है कि नई नीतियों के बगैर भी वैश्विक कोयला, तेल और गैस की मांग इस दशक में चरम पर होगी। कुल मिलाकर सरकारी योजनाओं से 2030 तक वैश्विक कोयला उत्पादन में वृद्धि होगी और वैश्विक तेल और गैस उत्पादन में कम से कम 2050 तक इजाफा होगा।
इससे वक्त के साथ जीवाश्म ईंधन उत्पादन का अंतर बढ़ता जाएगा. रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों के अनुसार कार्बन कैप्चर, भंडारण और कार्बन डाइऑक्साइड हटाने के जोखिमों और अनिश्चितताओं के मद्देनजर देशों को 2040 तक कोयला उत्पादन और उपयोग को लगभग पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए और साथ ही 2050 तक तेल और गैस के उत्पादन तथा उपयोग में 2020 के स्तरों से कम से कम तीन-चौथाई की कमी लानी चाहिए।
दुनिया के 20 में से 17 देशों ने नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने का वादा किया है और कई ने जीवाश्म ईंधन उत्पादन गतिविधियों से उत्सर्जन में कटौती करने के लिए पहल शुरू की है। मगर किसी ने भी ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अनुरूप कोयला, तेल और गैस उत्पादन को कम करने के लिए प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है।
जबकि जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाने की ज्यादा क्षमता रखने वाली सरकारों को प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती का ज्यादा महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखना चाहिए और सीमित संसाधनों वाले देशों में रूपांतरण की प्रक्रियाओं में मदद करनी चाहिए।