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ऑनलाइन गेमिंग की लत से बचें 

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 15, 2018 06:46 IST

आभासी दुनिया का उपयोग आज मनोरंजन के लिए कई तरीकों से किया जा रहा है। फिल्में और टीवी देखना, गाने डाउनलोड करना और सुनना, वचरुअल गेम खेलना- ये सभी इंटरनेट और वचरुअल स्पेस का उपयोग कर मनोरंजन करने के नए साधन हैं।

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लेखक- वरुण कपूर

आभासी दुनिया का उपयोग आज मनोरंजन के लिए कई तरीकों से किया जा रहा है। फिल्में और टीवी देखना, गाने डाउनलोड करना और सुनना, वचरुअल गेम खेलना- ये सभी इंटरनेट और वचरुअल स्पेस का उपयोग कर मनोरंजन करने के नए साधन हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि डिजिटल दुनिया ने उपयोगकर्ताओं को सस्ते और अच्छे मनोरंजन के साधन प्रदान किए हैं, वह भी एक क्लिक पर। वे दिन गए जब मनोरंजन करना आसान नहीं था। इसके लिए पहले से योजनाएं बनाई जाती थीं और पर्याप्त मात्र में पैसा व समय खर्च किया जाता था, तब कहीं वे थियेटर जाकर नाटक देख पाते थे, जो सिनेमा के आगमन के बाद मूवी हॉल या टाकीज में बदल गए। इसके बाद रेडियो आया, लेकिन उसमें भी आवाज साफ आने की गारंटी नहीं रहती थी। इस प्रकार मनोरंजन के साधन सीमित थे। इसके बाद आया टेलीविजन, जिसमें फिल्म आधारित मनोरंजन किया जा सकता था, जो पहले श्वेत-श्याम था और बाद में रंगीन हुआ और एक चैनल से होने वाली शुरुआत धीरे-धीरे चैनलों के गुलदस्ते में बदल गई।

इंटरनेट आधारित डिजिटल मनोरंजन के साथ ही चीजों में क्रांतिकारी बदलाव आया। घर बैठे लगभग मुफ्त मनोरंजन मिलने लगा, और वह भी जब चाहे तब, सिर्फ माउस के एक क्लिक पर। नागरिकों ने इसे व्यापक पैमाने पर अपनाया। वर्तमान में आभासी दुनिया के मनोरंजन में नागरिक इतने लीन हो गए हैं कि उनके सामान्य सामाजिक व्यवहार पर इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। लोग अब खाली समय में अपने घरों से बाहर नहीं जाते हैं, जब तक कि बहुत ही आवश्यक काम न हो और शारीरिक मेहनत करना तेजी से कम होता जा रहा है। यह बीमारी युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है और चिंता का कारण बन रही है।

ऑनलाइन मनोरंजन का ऐसा ही एक साधन ऑनलाइन गेमिंग है। शुरुआत में इसे बच्चों के लिए मनोरंजन के स्वस्थ और सस्ते स्नेत के रूप में देखा गया, लेकिन अब इसका उपयोग खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। बच्चे और युवा आज ऑनलाइन गेमिंग के प्रति इतने जुनूनी हो रहे हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसे मानसिक बीमारी के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यह अब सिर्फ एक लत नहीं रह गया है बल्कि बीमारी की हद में पहुंच गया है। निस्संदेह यह एक खतरनाक स्थिति है, क्योंकि यह बच्चों और युवाओं को प्रभावित कर रही है। अनेक माता-पिता को लगता है कि यदि उनका बच्चा घर पर रहकर कम्प्यूटर पर साधारण गेम खेलता है तो यह बुरी दुनिया में जाने और विभिन्न खतरनाक प्रभावों के तहत आने से कहीं बेहतर है। आखिरकार वह उनकी आंखों के सामने है और अपने खेल का आनंद ले रहा है, भले ही वह वचरुअल हो। इसलिए बच्चे जब एक बेहतर, अधिक शक्तिशाली गेमिंग कम्प्यूटर मांगते हैं तो माता-पिता देने से मना नहीं करते - आखिर  वह थोड़ा और अधिक आनंद लेना चाहता है तो इसमें गलत क्या है?

लेकिन यह ऑनलाइन गेमिंग कब एक लत में बदल जाती है और फिर बीमारी में, वे कभी नहीं जान पाते। चेन्नई के एक अस्पताल में हाल ही में ऑनलाइन गेमिंग कम्प्यूटर एडिक्ट का पहला मरीज भर्ती हुआ। दिल्ली से एक 27 वर्षीय आईटी पेशेवर को उसके परिजनों ने अस्पताल में भर्ती कराया। उस युवक ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी और पूरा-पूरा दिन चिप्स तथा प्रोसेस्ड फूड पर निर्भर रहते हुए ऑनलाइन गेम खेलता था। उसने अपनी पूरी बचत राशि अपने गेमिंग कम्प्यूटर को अपग्रेड करने में खर्च कर दी थी। अभिभावकों को आखिरकार खतरा दिखाई दिया और वे उसे अस्पताल ले आए। इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ रही है। कई गेम हिंसा प्रधान हैं जिससे युवाओं में आक्रामकता और हिंसा की भावना बढ़ रही है। 

गेमिंग की ऐसी लत का ड्रग या अल्कोहल की लत छुड़ाने की तरह ही इलाज कराना चाहिए। इसकी चिकित्सा में परामर्श के साथ ही दवाएं दी जाती हैं। इस विकार के परिणामस्वरूप मानसिक समस्याएं भी हो सकती हैं, जिनका इलाज किया जाता है। ऑनलाइन गेमिंग में अत्यधिक रुचि के कारण बच्चे के जीवन में यह सारी गड़बड़ें हो सकती हैं इसलिए अभिभावकों को इस चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए और शीघ्रता से आवश्यक कदम उठाना चाहिए। 

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