Autism Spectrum Disorder: भारत में लगभग 1.8 करोड़ लोग ऑटिज्म से पीड़ित, 2 से 9 वर्ष की आयु के 1 से 1.5 प्रतिशत बच्चों में ऑटिज्म, पढ़े रिपोर्ट
By रमेश ठाकुर | Published: April 2, 2024 10:51 AM2024-04-02T10:51:08+5:302024-04-02T10:52:29+5:30
Autism Spectrum Disorder: लड़कियों की तुलना में लगभग 4 गुना अधिक लड़कों में ऑटिज्म है. अमेरिका में ऑटिज्म की दर वर्ष 2000 के 150 में 1 से बढ़कर 2022 में 100 में 1 हो गई.
Autism Spectrum Disorder: भारत में लगभग 1.8 करोड़ लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं. 2 से 9 वर्ष की आयु के 1 से 1.5 प्रतिशत बच्चों में ऑटिज्म यानी एएसडी है. अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की रिपोर्ट की मानें तो अमेरिका में लगभग 36 में से एक बच्चा ऑटिज्म से ग्रस्त है. दुनिया की लगभग एक फीसदी आबादी इस समय ऑटिज्म से पीड़ित है. लड़कियों की तुलना में लगभग 4 गुना अधिक लड़कों में ऑटिज्म है. अमेरिका में ऑटिज्म की दर वर्ष 2000 के 150 में 1 से बढ़कर 2022 में 100 में 1 हो गई.
बीमारी की गंभीरता को देखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में सर्वसम्मति से 2 अप्रैल को ‘विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता’ या ‘विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस’ को मनाना आरंभ किया. ताकि जन-मानस इस बीमारी के प्रति जागरूक हो सके. इस दिवस के जरिये ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जाता है.
जिससे पीड़ित एक सार्थक जीवन जी सकें. इसके पहले अप्रैल 1988 में, अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 2 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय ऑटिज्म जागरूकता’ माह घोषित किया था, जिससे जागरूकता का एक नया युग शुरू हुआ, जिसने ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए पूर्ण और अधिक उत्पादक जीवन जीने के अवसर खोले.
दुनिया भर में ऑटिज्म पीड़ितों के बारे में जानकारी और जागरूकता के अभाव का पीड़ित और उसके परिवार पर बहुत गहरा असर पड़ता है. साल-2008 में ‘कन्वेंशन ऑन द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज’ लागू किया गया जिसमें अक्षम लोगों के मानव अधिकार की रक्षा और प्रोत्साहन सुनिश्चित करने का संकल्प लिया गया.
इसमें ऑटिज्म से पीड़ित सभी वयस्क और बच्चों की सही देखरेख सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया जिससे पीड़ित उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सके. ऑटिज्म ताउम्र रहने वाला विकार है. जीवनभर चलने वाली यह न्यूरोलॉजिकल स्थिति पीड़ित में बचपन में ही आ जाती है जिसका लिंग, नस्ल और सामाजिक आर्थिक दर्जे से कोई लेना-देना नहीं है.
इससे ग्रस्त बच्चों को समाज में स्वीकार्यता बहुत मुश्किल से मिलती है और कई बार तो ऐसे रोगी पागलखाने में भर्ती कर दिए जाते हैं. ऑटिज्म से पीड़ित को अपने विचार संप्रेषण में अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना होता है. इसलिए इस विकार के प्रति समाज में जागरूकता का होना बहुत जरूरी है ताकि ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सके और समाज में अलग-थलग न किया जाए.