योगेश कुमार सोनी का ब्लॉग: शिक्षा क्षेत्र न बने राजनीति का अखाड़ा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 12, 2019 08:12 AM2019-08-12T08:12:00+5:302019-08-12T08:12:00+5:30
इन सवालों को लेकर एक बार फिर से माहौल गर्म है. इससे पहले भी दक्षिण 24 परगना जिले के विष्णुपुर थानांतर्गत बाखराहाट उच्च विद्यालय में जय श्रीराम बोलने को लेकर बाहरी लोगों द्वारा स्कूल में घुसकर छात्नों से मारपीट किए जाने का मामला प्रकाश में आया था.
योगेश कुमार सोनी
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर जय श्री राम के नारे को लेकर मुद्दा सुर्खियों में है. इस बार हुगली जिले के एक स्कूल में दसवीं की परीक्षा के टेस्ट में एक प्रश्न पूछा गया है कि वह जय श्रीराम नारे का दुष्परिणाम बताएं. साथ ही एक और सवाल यह भी आया है कि वह कट मनी लौटाने के फायदे बताएं.
इन सवालों को लेकर एक बार फिर से माहौल गर्म है. इससे पहले भी दक्षिण 24 परगना जिले के विष्णुपुर थानांतर्गत बाखराहाट उच्च विद्यालय में जय श्रीराम बोलने को लेकर बाहरी लोगों द्वारा स्कूल में घुसकर छात्नों से मारपीट किए जाने का मामला प्रकाश में आया था. जैसे ही घटना की जानकारी मिली थी तभी मौके पर पहुंची पुलिस ने बलप्रयोग कर स्थिति को नियंत्रित किया था.
ऐसी घटनाओं से एक बात तो तय हो चुकी है कि कोई भी पार्टी एक दूसरे को नीचा दिखाने में पीछे नहीं हट रही. बीते लोकसभा चुनाव में बेहद शर्मनाक, घटिया व तथ्यहीन बयान सुनने को मिले. साथ में इतिहास के साथ छेड़छाड़ व फर्जी खबरों से भी लोकतंत्न को हिलाने का प्रयास लगातार जारी है.
इससे छात्रों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? जो भी सरकार आएगी वो किसी के भी चरित्न का चित्नण अपने हिसाब से करती रहेगी तो सच किसको माना जाएगा? यदि इस पर पाबंदी नहीं लगाई गई तो हमारे देश का भविष्य दांव पर लग सकता है.
देश की शिक्षा में बदलाव का जो पैनल हो, वह किसी सरकार के अंतर्गत नहीं बल्कि स्वायत्त होना चाहिए क्योंकि यदि सरकारें बदलती रहेंगी और एक दूसरे के प्रति कुंठा निकालने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ करती रहेंगी तो बच्चे भ्रमित होते रहेंगे और वे सच को कभी जान भी नहीं पाएंगे.
इससे पहले भी राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने स्कूल पाठ्यक्र म में बदलाव करते हुए वीर सावरकर को अंग्रेजों से माफी मांगने वाला बताया है. जबकि इससे पहले पाठ्यक्रम में इन्हें वीर, महान, क्रांतिकारी व देशभक्त जैसे शब्दों से नवाजा गया था.
राजनीति शुरू से विचारों की लड़ाई रही है. नेता मंच पर एक दूसरे की पार्टी को नीचा दिखाने का प्रयास करते आए हैं लेकिन उन्होंने लड़ाई को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं लिया. लेकिन बीते दशक में राजनीति का स्तर बहुत गिरा है व शब्दों की मर्यादा का किसी को ख्याल नहीं रहा. आरोप-प्रत्यारोप के चक्कर में मुद्दा हर बार भटकता रहा है. एक-दूसरे के निजी जीवन पर वार किया गया.
यदि ऐसा ही चलता रहा तो देश का विकास धूमिल हो जाएगा. आज के तकनीकी युग में जरूरत है रोजगार, सुरक्षा, रक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करने व उस पर काम करने की, क्योंकि अब युवा पीढ़ी बदलाव व तरक्की चाहती है.