ब्लॉग: डरावने हैं छात्र आत्महत्या के नवीनतम आंकड़े

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 30, 2024 11:08 IST2024-08-30T11:07:23+5:302024-08-30T11:08:33+5:30

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर जारी की गई नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां कुल आत्महत्या की संख्या में प्रतिवर्ष दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में चार प्रतिशत की.

The latest statistics of student suicide are scary | ब्लॉग: डरावने हैं छात्र आत्महत्या के नवीनतम आंकड़े

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsदेश में छात्र आत्महत्या की घटनाएं चिंताजनक वार्षिक दर से बढ़ी हैं.यह जनसंख्या वृद्धि दर और समग्र आत्महत्या प्रवृत्तियों से भी अधिक है.छात्र आत्महत्या के मामलों की 'कम रिपोर्टिंग' होने की संभावना जताई गई है. 

देश में छात्र आत्महत्या की घटनाएं चिंताजनक वार्षिक दर से बढ़ी हैं. यह जनसंख्या वृद्धि दर और समग्र आत्महत्या प्रवृत्तियों से भी अधिक है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर जारी की गई नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि जहां कुल आत्महत्या की संख्या में प्रतिवर्ष दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं छात्र आत्महत्या के मामलों में चार प्रतिशत की. छात्र आत्महत्या के मामलों की 'कम रिपोर्टिंग' होने की संभावना जताई गई है. 

रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश को सबसे अधिक छात्र आत्महत्या वाले राज्यों के रूप में पहचाना गया है. यह डेटा पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी रिपोर्ट पर आधारित है. जाहिर है यह रिपोर्ट हमारे शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाती है. 

ये चिंताजनक आंकड़े बेहतर काउंसलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और छात्रों की आकांक्षाओं को गंभीरता से समझने आवश्यकता को भी रेखांकित करते हैं. हमारे देश में आम तौर पर कई छात्र अपने करियर के चुनाव और पढ़ाई के मामले में अपने परिवार और शिक्षकों के दबाव की वजह से बहुत जल्दी और बहुत अधिक तनाव में आ जाते हैं. 

सभी आय समूहों के माता-पिता अपने बच्चों को इंजीनियरिंग या अन्य पारंपरिक पाठ्यक्रमों से अलग कुछ भी करने देने से डरते हैं. नए विषयों को लेकर बातचीत तो खूब होती है लेकिन अपने बच्चों के लिए उसे स्वीकार नहीं किया जाता. 

कला को अभी भी विज्ञान विषयों से कमतर माना जाता है. हालांकि इसके माध्यम से भी बहुत सारे दिलचस्प और यहां तक कि अच्छी कमाई वाले करियर विकल्प मिल सकते हैं. हमें अपने बच्चों को सपने देखने की अनुमति देनी चाहिए. 

बच्चों के लिए परीक्षाएं अक्सर ‘करो या मरो’ की स्थिति बना देती हैं. शीर्ष संस्थानों में सीटें सुरक्षित करने के दबाव और ऊंची कट-ऑफ के कारण कई छात्र हार मान लेते हैं और आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं. यह जरूरी है कि माता-पिता और शिक्षक अपने बच्चों की योग्यता और क्षमताओं को समझें. उन पर दबाव डालने और पढ़ाई में उनके खराब प्रदर्शन के लिए उन्हें दोषी ठहराने से केवल परेशानियां ही बढ़ेंगी. 

इसके कारण बच्चे चुपचाप पीड़ित होंगे और उन्हें अकेलापन महसूस होगा. अकेलापन और तनाव एक साथ मिलकर उन्हें धीरे-धीरे अवसाद की ओर ले जा सकते हैं. छात्रों को भी यह समझना होगा कि आत्महत्या कभी भी, किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती. यह न केवल उनकी बल्कि कई अन्य जिंदगियों को तबाह कर देती है. 

मनोचिकित्सकों के अनुसार जब भी कोई व्यक्ति गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहा होता है, तो उसके व्यवहार में बदलाव नजर आने लगता है. ऐसे में उसके आसपास मौजूद लोगों और परिजन की जिम्मेदारी बनती है कि वह उस व्यक्ति को मानसिक, भावनात्मक या जैसी भी जरूरत हो, वह उपलब्ध कराए. व्यक्ति का मनोबल बढ़ाने का प्रयास होना चाहिए, ताकि वह अपने आपको अकेला महसूस न करे.

Web Title: The latest statistics of student suicide are scary

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