डिजिटल लिंचिंग भारत की आत्मा पर प्रहार, मानवीय संवेदनाओं की कब्रगाह, गुमनामी की जहरीली चादर ओढ़े
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 20, 2025 05:26 IST2025-05-20T05:26:39+5:302025-05-20T05:26:39+5:30
पीड़ितों में एक नवविवाहित युवती भी थी, जिसकी जिंदगी पहलगाम आतंकी हमले ने तबाह कर दी. इस हमले में उसके पति की जान चली गई. वह सैनिक था और विवाह को कुछ ही दिन हुए थे.

सांकेतिक फोटो
प्रभु चावला
डिजिटल लिंचिंग से पीड़ित लोगों में एक विधवा भी शामिल थी, जिसका जीवन पहलगाम आतंकी हमले के कारण तबाह हो गया था. इस हमले में उसके सैनिक पति की शादी के कुछ ही दिनों बाद मौत हो गई थी. भारत का डिजिटल अब मानवीय संवेदनाओं की कब्रगाह बनता जा रहा है. गुमनामी की जहरीली चादर ओढ़े हुए, चेहराविहीन ट्रोल ने कीबोर्ड को गिलोटीन में बदल दिया है. वे ऐसा जहर उगल रहे हैं जो देश की आत्मा को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है. उनका निशाना कौन है? एक शोक में डूबी विधवा, क्रिकेट की एक जीवित किंवदंती, टेनिस की अगुवा खिलाड़ी, बॉलीवुड का एक जाना-पहचाना चेहरा, एक स्पोर्ट्स प्रेजेंटर और न जाने कितने अन्य. ये केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि डिजिटल चिताएं हैं, जो निजता को जला रही हैं और वर्चुअल लिंचिंग को हवा दे रही हैं.
इस अराजकता के नारकीय निर्माता व्यक्तिगत पीड़ा को वायरल तबाही में बदल चुके हैं, और भारत का हृदय इस डिजिटल महामारी में डूबता जा रहा है. पीड़ितों में एक नवविवाहित युवती भी थी, जिसकी जिंदगी पहलगाम आतंकी हमले ने तबाह कर दी. इस हमले में उसके पति की जान चली गई. वह सैनिक था और विवाह को कुछ ही दिन हुए थे.
सैनिक की विधवा ने एकता की अपील की थी, कहा था कि हम किसी भी समुदाय के खिलाफ नफरत नहीं चाहते. हमें शांति और न्याय चाहिए. लेकिन उसके इस विनम्र संदेश का जवाब क्रूरता से मिला. एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में तंज कसते हुए लिखा गया, ‘शहीद की आड़ में मगरमच्छी आंसू और पैसे की हवस!’
और इस बेहूदगी को हजारों लोगों ने ‘लाइक’ किया. एक और ने ताना मारा, ‘तुम्हारा पति कायर था, अच्छा हुआ जो मर गया!’ यह बात अलग-अलग सोशल प्लेटफॉर्म पर फैलाई गई और हर शेयर उस स्त्री के दुख को और बढ़ाता गया. वह अपने पति के बलिदान को सम्मान देने के लिए टीवी पर आई थी, लेकिन उसका दुख अब लोगों के तानों का निशाना बन गया.
उसकी गरिमा को ऑनलाइन भीड़ और एल्गोरिदम ने तार-तार कर दिया. हालांकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से जल्दी न्याय मिला, लेकिन उसकी तरफ से भी कड़ा जवाब आया, ‘जो नफरत फैलाते हैं, उन्हें इस धरती पर रहने का कोई हक नहीं.’ पहले भी भारत के गर्व रह चुके एक क्रिकेट दिग्गज को ऐसी ही मानसिक यातना से गुजरना पड़ा था.
2023 वर्ल्ड कप की हार के बाद ताने मिलने लगे ‘सेल्फी का दीवाना, अब कुछ नहीं बचा!’ इस पोस्ट को हजारों लोगों ने फैलाया. 2022 में उनके होटल रूम का एक निजी वीडियो लीक हुआ, जिसमें उनके निजी सामान दिख रहे थे. लोग ताने कसने लगे, ‘भारत के हिसाब से ज़रूरत से ज़्यादा शाही!’ खिलाड़ी ने इंस्टाग्राम पर जवाब दिया, ‘मेरी निजता में ये दखल बिल्कुल भी ठीक नहीं है’
लेकिन उसका भी मजाक उड़ाया गया. और भी खराब बात यह रही कि 2021 में उसकी नवजात बेटी को बलात्कार की धमकियां मिलीं, ‘तेरी नाकामियों की सजा तेरी बच्ची को मिलेगी!’ ऐसे संदेश आग की तरह फैलने लगे. ये आलोचनाएं नहीं थीं, बल्कि हमले थे. उसकी फैमिली की गरिमा को एक खून-खराबे के खेल में बदल दिया गया.
इस खेल को एल्गोरिदम और नफरत हवा देती है. बाकी लोगों का हाल भी कुछ बेहतर नहीं रहा. टेनिस की एक अग्रणी खिलाड़ी को अपने सरहद पार विवाह के कारण लगातार नफरत झेलनी पड़ी. 2020 में एक पोस्ट में उसे कहा गया, ‘गद्दार, जिसने पाकिस्तान के हाथों खुद को बेच दिया’ और इसे हजारों बार देखा गया.
यहां तक कि जब उसने पहलगाम हमले के पीड़ितों के साथ संवेदना जताई, तब भी ज़हर उगला गया, ‘अपने पति के देश लौट जाओ!’ भारत की बड़ी डिजिटल आबादी में अब नफरत बढ़ती जा रही है. एल्गोरिदम लोगों का ध्यान खींचने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन ये सच की जगह गुस्से को फैलाने का काम कर रहे हैं.
इन एल्गोरिदम से लोगों को जितना फायदा हुआ है, उतना शायद शेयर बाजार से भी नहीं हुआ होगा. 2023 की एक स्टडी में बताया गया कि ‘एक्स’ और ‘टिकटॉक’ जैसे प्लेटफॉर्म पर नफरत फैलाने वाले पोस्ट बॉट्स और हैशटैग हाइजैकिंग के जरिए लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचते हैं. यह एक तरह की डिजिटल लिंचिंग है.
इसका नतीजा यह हुआ कि समाज में सड़ांध फैल गई, जिससे आपसी दूरी बढ़ी. एक विधवा की शांति की अपील को ‘तुष्टिकरण’ बता दिया गया और इससे सांप्रदायिक जहर और बढ़ गया. राष्ट्रीय महिला आयोग ने ट्रोलिंग की निंदा की, लेकिन भीड़ फिर भी नहीं रुकी. कई मशहूर हस्तियां इन सोशल प्लेटफॉर्म को अलविदा कह चुके हैं.
आमिर खाान 2021 में यह कहकर निकल गए, ‘यहां जहरीली निगरानी है’, सोनाक्षी सिन्हा 2020 में बोलीं, ‘अब नफरत बर्दाश्त नहीं होती.’ यह इतिहास की उन घटनाओं की याद दिलाता है जैसे सालेम की चुड़ैल हंटिंग या भारत के सांप्रदायिक दंगे- जहां उन्मादी भीड़ ने बेकसूरों को निगल लिया. भारत का डिजिटल मंच अब कोई लोकतांत्रिक चौपाल नहीं, बल्कि निर्दोषों की चिता बन चुका है.
अध्ययनों से पता चलता है कि ट्रोलिंग के कारण लोगों में चिंता, अवसाद और तनाव के लक्षण तेजी से बढ़े हैं. ज्यादातर भारतीय यूजर ने मानसिक दबाव की बात कही है. एक प्रसिद्ध डिजिटल कंटेंट क्रिएटर को एक वीडियो पर ट्रोल किया गया. उन्होंने लिखा, ‘नफरत ने मेरी आत्मा को खा लिया, मैं हफ्तों तक सो नहीं पाया.’
2020 में एक मजाक को लेकर निशाना बनाए गए कॉमेडियन अग्रिमा जोशुआ को जान से मारने की धमकियां मिलीं, एक ट्रोल ने लिखा, ‘तुझे जिंदा जला देंगे’ और यह पोस्ट हज़ारों बार साझा हुई. भारत का कानूनी ढांचा इस मामले में बहुत कमज़ोर साबित हुआ है. 2000 का आईटी अधिनियम साइबर उत्पीड़न को दंडित करता है, पर उसका लागू होना बहुत धीमा है.
पहलगाम हमले के बाद कुछ विदेशी यूट्यूब चैनलों पर पाबंदी ज़रूर लगी, लेकिन देश के अंदर ट्रोल करने वाले आज़ाद घूमते रहे. ‘कुल्हड़ पिज़्ज़ा’ दंपति, सहज अरोड़ा और गुरप्रीत कौर इस साल लगातार ट्रोलिंग, हैकिंग और ‘तेरे पूरे खानदान को काट देंगे’ जैसी धमकियों के बाद ब्रिटेन भाग गए.
उन्हें न्याय नहीं मिला. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई जिम्मेदारी नहीं ठोकी गई और उनकी मॉडरेशन नीति एक मजाक बनकर रह गई. 2023 की एक रिपोर्ट में ‘लत लगाने वाले एल्गोरिदम’ को नफ़रत फैलाने वाले तत्वों के तौर पर चिन्हित किया गया, लेकिन इससे कोई ठोस सुधार नहीं हुआ.
इस कानूनी निष्क्रियता ने ट्रोल्स को और हिम्मत दी, जिससे वे पीड़ितों का खुलेआम मज़ाक उड़ाते रहे, बेखौफ. सोशल मीडिया कंपनियां सिर्फ देख रही नहीं हैं, वे इससे कमाई कर रही हैं. उनके एल्गोरिदम ‘वो धोखेबाज़ है’ या ‘ये झूठी है’, जैसे नफरती पोस्ट को तेजी से फैलाते हैं.
ऐसे पोस्ट बहुत जल्दी लाखों लोगों तक पहुंच जाते हैं. ‘एक्स’ ने इस साल बाहर की सेंसरशिप का विरोध तो किया, लेकिन भारत में नफरत फैलाने वाले पोस्ट पर चुप रहा. मेटा भी अपनी गलती मानने से बचता रहा.