Icc World Cup 2023: विश्व कप हारने के बाद सराहना-आलोचना के बाद राजनीति तेज!, थोड़ी महाराष्ट्र की चिंता भी जरूरी

By Amitabh Shrivastava | Published: November 25, 2023 11:00 AM2023-11-25T11:00:58+5:302023-11-25T11:02:09+5:30

Icc World Cup 2023: वर्ष 1987 में कोलकाता में हुआ पहले विश्व कप का अंतिम मुकाबला वर्ष 2011 में मुंबई से वर्ष 2023 में अहमदाबाद कैसे पहुंच गया.

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Highlightsविश्व कप जैसे अंतरराष्ट्रीय मुकाबले चंद दिनों की तैयारी से नहीं होते हैं. क्रिकेट की राजनीति से लेकर क्रिकेट के मुख्य केंद्र के रूप में पहचान रखते थे. उद्योग दक्षिण भारत के राज्यों ने बुला लिए हैं.

Icc World Cup 2023: पचास ओवर के एकदिवसीय मुकाबलों के विश्व कप को हारने के बाद सराहना-आलोचना के बाद राजनीति भी चरम पर है. कहा यह जाता है कि खेलों को राजनीति से दूर रखना चाहिए. मगर बेफिक्र बयानबाजी क्रिकेट की आड़ में अपने हितों को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.

कोई इस बात पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है कि वर्ष 1987 में कोलकाता में हुआ पहले विश्व कप का अंतिम मुकाबला वर्ष 2011 में मुंबई से वर्ष 2023 में अहमदाबाद कैसे पहुंच गया. हालांकि इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि विश्व कप जैसे अंतरराष्ट्रीय मुकाबले चंद दिनों की तैयारी से नहीं होते हैं. उनके पीछे साल-महीने की कोशिश होती है.

यह तो किसी को मालूम ही नहीं होता कि आखिरी दौर में कौन पहुंचेगा. अवश्य ही आयोजन से संबंधित निर्णय राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पर विचार कर लिए जाते हैं. उस दौरान कानून और व्यवस्था के सवाल पर भी जवाब मांगा जाता है. विश्व कप-2023 में कोलकाता में एक सेमीफाइनल और मुंबई में दूसरे सेमीफाइनल का आयोजन दोनों राज्य सरकारों के मंथन का विषय है.

दोनों ही स्थान कभी क्रिकेट की राजनीति से लेकर क्रिकेट के मुख्य केंद्र के रूप में पहचान रखते थे. आश्चर्यजनक रूप से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी यह दावा करने से चूक नहीं रहीं कि विश्व कप का फाइनल मुकाबला यदि कोलकाता के ईडन गार्डन्स स्टेडियम में होता तो भारत जीत जाता.

वहीं ऐसी ही बात शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के प्रवक्ता संजय राऊत भी कह रहे हैं. उनका कहना है कि फाइनल का मैच मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में होता तो भारत जीत जाता. हालांकि वर्ष 1987 में कोलकाता के ईडन गार्डन्स स्टेडियम में इंग्लैंड के साथ हुए फाइनल मुकाबले में पहली बार ऑस्ट्रेलिया विश्व विजेता बना था.

इसके बाद दूसरी बार विश्व कप का फाइनल मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में हुआ था, जिसमें भारत की जीत हुई थी. इन दोनों सालों के बीच भारत ने श्रीलंका और पाकिस्तान के साथ संयुक्त रूप से विश्व कप का आयोजन किया, जिनमें न तो भारत फाइनल में पहुंचा और न ही फाइनल मुकाबला भारत में हो पाया.

स्पष्ट है कि खेल के बहाने राजनीति तो की जा सकती है, लेकिन उसके आयोजन और खेल प्रदर्शन की सच्चाई पर भ्रम फैलाना आसान नहीं होता है. विश्व कप के बहाने ध्यान देने योग्य बात यह है कि पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र दोनों गाहे बगाहे अपनी आर्थिक प्रगति की राह में आने वाली बाधाओं को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के बाद लंबे समय से एक पार्टी की सरकार है.

 किंतु वहां व्यापार-उद्योग के सहायक तत्व कम और कमजोर हो रहे हैं. महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्थिरता से लेकर कई दलों की सरकारें और उनका अपनी-अपनी दिशा में भागना राज्य में घटते निवेश का बड़ा कारण बन रहा है. राज्य में लंबे समय से अनेक उद्योगों के गुजरात चले जाने का रोना रोया जा रहा है. लेकिन अनेक उद्योग दक्षिण भारत के राज्यों ने बुला लिए हैं.

कुछ उद्योग उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की ओर जाने लगे हैं. निवेश के नाम पर कई सरकारों के दावों के बावजूद राज्य की आर्थिक स्थिति के बारे में कोई बड़ा अंतर नजर नहीं आता है. बेरोजगारी और गरीबी से निपटना अभी-भी संकट बना हुआ है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के सर्वेक्षण के अनुसार 2022-23 के बीच राज्य की बेरोजगारी तीन से चार फीसदी के बीच रही है. बरसात की बेरुखी से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है. इसके बीच उद्योगों का भी सहारा नहीं रहा तो किस तरह से स्थितियां सुधरेंगी.

महाराष्ट्र में पर्यटन के क्षेत्र में भी अनेक अवसर उपलब्ध हैं, किंतु उनके लिए भी सहायक अवसरों की उपलब्धता पर ध्यान नहीं दिया जा रहा. अनेक स्थानों पर पानी की दिक्कत और लगातार हो रहे आंदोलन निवेशकों की खासी चिंता का कारण हैं. मगर राज्य सरकार के केवल दावे ही दावे सुनाई दे रहे हैं. आम जनता लगातार परेशानियों का सामना कर रही है.

ऐसा माना जा रहा है कि अहमदाबाद में हुए विश्व कप फाइनल मुकाबले को देखने के लिए सवा लाख से अधिक लोग पहुंचे, जिनमें स्थानीय लोगों को छोड़ दिया जाए तो बड़ी संख्या बाहर के लोगों की थी. होटल, हवाई जहाज की टिकटें आसमान तक पहुंचीं. स्पष्ट है कि ऐतिहासिक मुकाबले के इर्द-गिर्द करोड़ों रुपए का कारोबार हुआ.

लोगों ने गुजरात का अनुभव लिया. वहां के पर्यटन स्थलों का दौरा किया, जिससे मौखिक प्रचार को भी बड़ी जगह मिल गई. कुल जमा एक मुकाबले का लाभ अनेक लोगों तक पहुंचा. यद्यपि गुजरात की बेरोजगारी की स्थिति बहुत अधिक चिंताजनक न होकर सीएमआईई के सर्वेक्षण के अनुसार दो से ढाई प्रतिशत के बीच ही बनी हुई है.

फिर भी राज्य का हर प्रकार का निवेश अपनी ओर खींचना चमत्कारिक ही है. महाराष्ट्र और क्रिकेट की बात की जाए तो देश के क्रिकेट का मुख्यालय मुंबई में है, जहां दो अच्छे स्टेडियम हैं. पुणे और नागपुर दो अच्छे स्टेडियमों के लिए पहचान रखते हैं. आवागमन से लेकर रहने और पर्यटन-मनोरंजन के पर्याप्त इंतजाम हैं.

बावजूद इसके विश्व कप के दोनों महत्वपूर्ण मैच अहमदाबाद पहुंचना आत्मावलोकन का अवसर है. यह किसी एक सरकार की नाकामी या सफलता का पैमाना नहीं बनता, बल्कि यह समग्र मजबूत और दीर्घकालीन प्रशासकीय-राजनीतिक इच्छा-शक्ति से संभव होता है. यदि अहमदाबाद का स्टेडियम मुंबई से बेहतर बन गया है, तो मुंबई के स्टेडियम को अच्छा बनाने के प्रयास क्यों नहीं हुए.

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का कार्यालय मुंबई में होने के बावजूद फाइनल मुकाबले को प्रतिष्ठा का प्रश्न क्यों नहीं बनाया गया? निश्चित ही राजनीति के पैंतरों में राज्य की अस्मिता का संघर्ष गौण होता जा रहा है. विश्व कप के एक मुकाबले को भुलाकर या नजरअंदाज कर विषय को भटकाया जा रहा है.

हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि नीरज के शब्दों में ‘कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है...’, मगर जब सपने दिखना ही बंद हो जाएं तो क्या कहा जा सकता है और दोष किसे दिया जा सकता है? यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. शायद अभी कुछ दिन और रहेगी भी.

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