UN Climate Conference: ग्लोबल वार्मिंग से निपटो और भविष्य को बचाओ?, जलवायु सम्मेलन को सफल बनाना ही एकमात्र विकल्प
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 16, 2024 12:20 PM2024-11-16T12:20:59+5:302024-11-16T12:22:30+5:30
UN Climate Conference: विकसित देश अब एक ‘वैश्विक निवेश लक्ष्य’ के लिए जोर दे रहे हैं, जो सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों सहित विभिन्न स्रोतों से फंड जुटाएगा.
UN Climate Conference: अजरबैजान की राजधानी बाकू में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए विकसित देश जिस तरह से विकासशील देशों की मदद के लिए अपनी पेरिस सम्मेलन की प्रतिबद्धता से बचने की कोशिश करते दिख रहे हैं, उससे उनकी पर्यावरण को बचाने की मंशा पर सवाल उठ रहा है. इसीलिए भारत को गुरुवार को सम्मेलन में कहना पड़ा कि विकसित देशों को वर्ष 2030 तक विकासशील देशों को हर साल कम से कम 1300 अरब अमेरिकी डॉलर उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जैसा कि पेरिस समझौते में भी कहा गया था. लेकिन विकसित देश अब एक ‘वैश्विक निवेश लक्ष्य’ के लिए जोर दे रहे हैं, जो सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों सहित विभिन्न स्रोतों से फंड जुटाएगा.
इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया में जलवायु संकट को बढ़ाने में विकसित देशों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. अगर यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने की कीमत पर ही वे विकसित बने हैं. ऐसे में अब जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी उन्हें आगे रहना चाहिए.
2009 में आयोजित कॉप-15 में विकसित देशों ने वर्ष 2020 तक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए हर साल 100 अरब डॉलर देने का वादा किया भी था. हालांकि यह लक्ष्य 2022 में ही पूरा हो पाया और उसमें भी विकसित देशों ने विकासशील देशों को जो पैसा दिया, उसका 70 प्रतिशत हिस्सा कर्ज के रूप में था, जिससे विकासशील देशों पर दबाव बढ़ा.
वैसे विकसित देशों की यह मांग भी गलत नहीं मानी जा सकती कि जो विकासशील देश पहले की तुलना में विकसित हो चुके हैं या प्रदूषण फैलाने में जिनका योगदान ज्यादा है, जैसे चीन और कुछ खाड़ी देश, उन्हें भी नए जलवायु फाइनेंस पैकेज में योगदान देना चाहिए. जहां तक भारत का सवाल है, हमारे यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर दुनिया के लगभग चार टन के औसत के मुकाबले काफी कम अर्थात 2.9 टन कार्बन डाइऑक्साइड ही है. जबकि विकसित देशों में यह दर कई गुना ज्यादा है.
इसलिए विकासशील देशों की यह मांग गलत नहीं है कि जिन विकसित देशों को ऐतिहासिक रूप से औद्योगीकरण से फायदा हुआ है और जिन्होंने सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया है, उनको अब अपनी जिम्मेदारी से बचना नहीं चाहिए.
दुनिया में पर्यावरण संकट जिस तेजी से गहराता जा रहा है, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, निश्चित रूप से सभी देशों को मिलकर जलवायु सम्मेलन को सफल बनाना ही होगा, क्योंकि इसके विफल होने का खामियाजा शायद दुनिया वहन करने की स्थिति में ही न रहे!