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ब्लॉग: चीन की डगमगाती अर्थव्यवस्था से भारत के लिए अवसर

By ऋषभ मिश्रा | Updated: October 20, 2023 10:57 IST

देश की अर्थव्यवस्था में करीब दो दशक के दौरान यानी 2000 से 2019 के बीच औसतन 9 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली, वहां अगर पिछले दो-तीन सालों में लगातार 5 फीसदी से कम की ग्रोथ देखने को मिल रही है, तो इसे ठीक संकेत नहीं माना जा सकता है

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ठळक मुद्देचीन की वृद्धि दर के अनुमान को 5.2 फीसदी से घटाकर 4.8 फीसदी हो सकती है- एसएंडपी2024 के लिए भी ग्रोथ रेट कम रहने का अनुमान जताया दूसरी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने वृद्धि दर कम रहने की बात कही है

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने मौजूदा साल के लिए चीन की वृद्धि दर के अनुमान को 5.2 फीसदी से घटाकर 4.8 फीसदी कर दिया है। इतना ही नहीं, ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने 2024 के लिए भी ग्रोथ के अनुमान को 4.8 फीसदी से घटाकर 4.4 फीसदी कर दिया है। एचएसबीसी होल्डिंग्स, मॉर्गन स्टेनली और सिटीग्रुप ने भी चीन के लिए इस साल वृद्धि दर के 5 फीसदी से नीचे रहने का अनुमान जताया है।

जिस देश की अर्थव्यवस्था में करीब दो दशक के दौरान यानी 2000 से 2019 के बीच औसतन 9 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली, वहां अगर पिछले दो-तीन सालों में लगातार 5 फीसदी से कम की ग्रोथ देखने को मिल रही है, तो इसे किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में सामान्य उतार-चढ़ाव के नजरिये से देखना मुनासिब नहीं हो सकता। यह उस अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की बात है।

चीन की अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन की वजह से कई देशों को अपने यहां की इकोनॉमी में बढ़ोत्तरी के अनुमान घटाने पड़े हैं। इनमें दक्षिण कोरिया और थाईलैंड भी शामिल हैं।

वहां के केंद्रीय बैंकों ने अपने देश के वृद्धि अनुमानों में कटौती की है, जिसकी वजह भी वे चीनी अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन बता रहे हैं। 2022 में भारत और चीन के बीच 135.98 अरब डॉलर का रिकॉर्ड व्यापार हुआ, जो 2021 के मुकाबले 8.4 फीसदी ज्यादा है. 

चीन की आर्थिक सुस्ती का भारत पर भी गंभीर असर हो सकता है, हालांकि भारत के लिए कुछ मौके भी हैं जैसे कि कमोडिटी मार्केट चीन की डिमांड को लेकर बड़ा सेंसिटिव होता है।

अगर सुस्त घरेलू मांग की वजह से चीन बेस मेटल सहित अन्य धातुओं का निर्यात कम कीमत पर करना शुरू करता है, तो हमारे मैन्यूफैक्चर्स को इससे फायदा हो सकता है। लेकिन, यदि घरेलू मांग में कमी को लेकर चीन में प्रोड्यूसर मेटल और अन्य कमोडिटी का उत्पादन घटाते हैं तो इससे इन कमोडिटी की कीमतों में इजाफा होगा जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं होंगे।

चीन अपनी कुल जरूरतों का 70 फीसदी लौह अयस्क भारत से आयात करता है। लेकिन यदि स्लोडाउन की वजह से चीन की मांग में कमी आती है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक होगा। साथ ही भारत की कोशिश मन्युफैक्चरिंग हब बनने की भी है।

घरेलू स्तर पर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने पीएलआई जैसी स्कीम भी लॉन्च किया है। अगर चीन से निर्यात में गिरावट जारी रहती है और अर्थव्यवस्था खस्ताहाल के चलते चीन में निवेश प्रभावित होता है, तो भारत विकसित देशों के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर उभर सकता है, लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि भारत में सुधार की प्रक्रिया में और तेजी आए।

टॅग्स :चीनबिजनेसभारत
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