आर्थिक मंदी की आहट! भारत के सामने अर्थव्यवस्था को बचाने की चुनौती, दुनिया भर में दिखाई देने लगा है असर

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: January 12, 2023 03:43 PM2023-01-12T15:43:47+5:302023-01-12T15:43:53+5:30

रूस-यूक्रेन युद्ध तथा चीन की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से यूरोपीय देशों के साथ-साथ अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होने लगी है। तमाम विकसित देशों में ऊर्जा तथा अन्न के संकट की आहट आने लगी है। आयात-निर्यात पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है। आर्थिक मंदी किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है। गरीब तथा विकासशील देशों को मंदी का खामियाजा सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है।

economic recession sound India have challenge of saving the economy | आर्थिक मंदी की आहट! भारत के सामने अर्थव्यवस्था को बचाने की चुनौती, दुनिया भर में दिखाई देने लगा है असर

आर्थिक मंदी की आहट! भारत के सामने अर्थव्यवस्था को बचाने की चुनौती, दुनिया भर में दिखाई देने लगा है असर

भारत में एक बार फिर मंदी की आहट आ रही है और भारत के सामने इस संभावित संकट से निपटने की गंभीर चुनौती आ खड़ी हुई है। विश्व बैंक की भविष्यवाणी है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कगार पर है और अगर विकसित देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अभी से ठोस कदम नहीं उठाए तो मंदी का आना तय है। विश्व बैंक के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, जापान के साथ-साथ पूरे यूरोपीय देशों में आर्थिक विकास की रफ्तार बेहद सुस्त है। इसका असर दुनिया भर में दिखाई देने लगा है। विश्व बैंक ने वैश्विक आर्थिक विकास की दर को तीन प्रतिशत से घटाकर 1.7 प्रतिशत कर दिया है। 

मंदी की आहट का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दुनिया की बड़ी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी है। एक अनुमान के मुताबिक विभिन्न छोटी-बड़ी कंपनियां अगले कुछ महीनों में 40 लाख से ज्यादा कर्मचारियों की छंटनी कर सकती हैं। 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। लगभग सभी देशों में विकास दर नकारात्मक हो गई। छोटे उद्योग तथा व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद हो गए। राजस्व के साधन बंद हो जाने से बड़ी कंपनियों की आर्थिक स्थिति भी चरमरा गई। राजस्व का जरिया बंद हो जाने तथा कोरोना से निपटने में बड़ी रकम खर्च करने के कारण तमाम देशों की आर्थिक विकास की दर ठप हो गई। इसके पहले 2008 में भी दुनिया ने मंदी का सामना किया था लेकिन विश्व की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक साल के भीतर ही संभल गईं। सौभाग्य से 2008 की मंदी पिछली सदी के चौथे दशक जैसी भयावह नहीं थी। उस मंदी से उबरने के बाद दुनिया ने दूसरे विश्व युद्ध का सामना किया जिससे मंदी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया। सौभाग्य से उसके बाद लंबा दौर आर्थिक पुनरुत्थान का रहा। अफ्रीकी देशों में लगातार गृहयुद्ध चलते रहे लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में इन गरीब राष्ट्रों का योगदान खास महत्वपूर्ण नहीं रहा इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित नहीं हुई। लंबे अंतराल के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था को कोविड-19 का तगड़ा झटका  लगा। 

2022 में वैश्विक अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी से चल रहे युद्ध ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के संतुलन में चीन की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। पिछले कुछ समय से चीन की अर्थव्यवस्था गलत आर्थिक नीतियों के कारण लड़खड़ाने लगी है। कोविड-19 के ताजा प्रकोप ने चीनी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से झकझोर दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध तथा चीन की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से यूरोपीय देशों के साथ-साथ अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होने लगी है। तमाम विकसित देशों में ऊर्जा तथा अन्न के संकट की आहट आने लगी है। आयात-निर्यात पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है। आर्थिक मंदी किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है। गरीब तथा विकासशील देशों को मंदी का खामियाजा सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है। उद्योग-व्यवसय खत्म हो जाते हैं या उनकी रफ्तार सुस्त हो जाती है, महंगाई और बेरोजगारी आम आदमी की कमर तोड़ देती है। 
अर्थव्यवस्था का आकार भी सिकुड़ने लगता है। अर्थव्यवस्था में गिरावट से विकास अवरुद्ध हो जाता है। मंदी का खतरा महंगाई से निपटने में विकसित देशों की विफलता से ज्यादा बढ़ गया है। महंगाई पर काबू पाने के लिए अमीर देशों ने बेतहाशा नोट छापे। इससे महंगाई घटने के बजाय बढ़ गई। ब्रिटेन के श्रम क्षेत्र में तो हालात इतने खराब हैं कि हाल ही में श्रमिक आंदोलन तेज हो गए। श्रमिक वेतन तथा अन्य सुविधाएं बढ़ाने की मांग कर रहे हैं लेकिन कर्ज के बोझ, ऊर्जा संकट और महंगाई से जूझ रही ब्रिटेन सरकार उनकी मांग पूरा करने में असमर्थ है। अन्य यूरोपीय तथा विकसित देशों में भी आर्थिक वृद्धि की रफ्तार सुस्त हो जाने के कारण श्रमिक असंतोष बढ़ रहा है क्योंकि उनकी मांगों  को संबंधित सरकारें पूरा नहीं कर पा रही हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो विश्व बैंक का आकलन उसके प्रति सकारात्मक है। 

विश्व बैंक के मुताबिक अगले वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर गिर सकती है लेकिन वह 6 प्रतिशत से ज्यादा ही रहेगी। दुनिया की तसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर बढ़ रहे भारत के लिए 6 प्रतिशत की वृद्धि दर का आंकड़ा निराशाजनक तो नहीं है लेकिन उसे उत्साहजनक भी नहीं  कहा जा सकता। भारत के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत होने के कारण उसने 2008 की मंदी का सामना सफलतापूर्वक कर लिया था। कोविड-19 महामारी के दो कठिन वर्षों में भी भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया के अन्य  विकासशील देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में रही लेकिन इस वर्ष संभावित मंदी को बेहद खतरनाक माना जा रहा है। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में इस मंदी को टक्कर देने की क्षमता है क्योंकि इन देशों के विशाल बाजार विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं। भारत के सामने भी चुनौती है लेकिन हमारी सरकार संभावित खतरे के प्रति सतर्क है। उम्मीद है कि 2008 की तरह इस बार भी मंदी से निपटने में भारत सफल रहेगा।

Web Title: economic recession sound India have challenge of saving the economy

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