जलवायु संकट: सफल होगा बॉन सम्मेलन?, 320 अरब डॉलर का नुकसान

By निशांत | Updated: June 17, 2025 06:49 IST2025-06-17T06:48:20+5:302025-06-17T06:49:41+5:30

Climate crisis: भारत ने भले ही 2030 तक 500  गीगावाट नॉन-फॉसिल एनर्जी का लक्ष्य रखा हो (जिसमें से 200 गीगावाट पहले ही हासिल हो चुका है), लेकिन 2035 के लिए नया प्लान अभी बाकी है.

Climate crisis Bonn conference be success Loss of 320 billion dollars blog Nishant Saxena | जलवायु संकट: सफल होगा बॉन सम्मेलन?, 320 अरब डॉलर का नुकसान

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Highlightsदेशों को अपनी नई जलवायु योजनाएं जमा करनी हैं, उनमें से अब तक सिर्फ 22 देशों ने ऐसा किया है.22 में भी सिर्फ यूके की योजना पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के अनुरूप मानी गई है. प्रतिवर्ष तक बढ़ाने की बात हुई थी, लेकिन अब असली सवाल है कि पैसा आएगा कहां से और कैसे पहुंचेगा.

Climate crisis: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की मध्य वर्ष की बैठक 16 जून से बॉन में शुरू हो गई है. 26 जून तक चलने वाली ये बातचीत ऐसे वक्त में हो रही है जब हाल ही में मौसम विज्ञान संगठन ने चेतावनी दी है कि 2029 से पहले 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा के टूटने की 87 प्रतिशत संभावना है. इसके साथ ही बीमा कंपनियों ने बताया कि 2024 से अब तक जलवायु से जुड़ी आपदाओं से करीब 320 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. इस बार सम्मेलन में जो मुद्दे सबसे ज्यादा चर्चा में रहेंगे, वो हैं- फॉसिल फ्यूल से बाहर निकलने की रणनीति, विकासशील देशों के लिए जलवायु फाइनेंस और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण पर एक ठोस फ्रेमवर्क बनाना. इस साल जिन देशों को अपनी नई जलवायु योजनाएं जमा करनी हैं, उनमें से अब तक सिर्फ 22 देशों ने ऐसा किया है.

इन 22 में भी सिर्फ यूके की योजना पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के अनुरूप मानी गई है. यूरोपीय संघ और चीन की योजनाएं अभी तक सामने नहीं आईं. भारत ने भले ही 2030 तक 500  गीगावाट नॉन-फॉसिल एनर्जी का लक्ष्य रखा हो (जिसमें से 200 गीगावाट पहले ही हासिल हो चुका है), लेकिन 2035 के लिए नया प्लान अभी बाकी है.

जलवायु राजनीति की विशेषज्ञ कैथरीन अब्रू कहती हैं, “भारत में फाइनेंस सबसे बड़ा मुद्दा है. भारत, चीन और ईयू के फैसले अगले दशक की दिशा तय करेंगे.” कॉप 29 में जलवायु फाइनेंस को 300 अरब डॉलर प्रतिवर्ष तक बढ़ाने की बात हुई थी, लेकिन अब असली सवाल है कि पैसा आएगा कहां से और कैसे पहुंचेगा.

बॉन में ‘बाकू से बेलेम’ रोडमैप पर चर्चा होगी – जिसमें ये तय किया जाएगा कि विकसित देश कितना और किस तरह का फंड देंगे. एसीटी अलायंस के जूलियस मबाटिया कहते हैं, “विकासशील देश अपने संसाधनों से एक ऐसी समस्या का हल ढूंढ़ रहे हैं, जो उन्होंने पैदा ही नहीं की. अब समय है कि अमीर देश अपनी जेब से हिस्सा दें – और वो भी कर्ज नहीं, अनुदान के रूप में.”

बॉन सम्मेलन में कई अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि शामिल नहीं हो पाएंगे क्योंकि उनके पास यात्रा का फंड ही नहीं है. इससे जलवायु फाइनेंस की असल स्थिति और जमीनी चुनौतियों की पोल खुलती है. भारत की स्थिति जटिल है– एक तरफ ऊर्जा की जरूरतें और दूसरी तरफ ग्लोबल नेतृत्व की उम्मीदें.

भारत ने अपने एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) में बड़े लक्ष्य लिए हैं और जलवायु फाइनेंस टैक्सोनॉमी का मसौदा भी पेश किया है. कॉप 28 में भारत ने ट्रिपल रिन्यूएबल एनर्जी की बात आगे बढ़ाई थी, और जी20 अध्यक्ष रहते हुए इस पर जोर दिया था. अब बॉन में भारत से अपेक्षा है कि वह 2035 के लक्ष्यों को लेकर स्पष्टता दिखाए.

कॉप 31 की मेजबानी को लेकर भी दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा. ऑस्ट्रेलिया दक्षिण प्रशांत देशों के साथ मिलकर अपनी छवि सुधारना चाहता है, जबकि तुर्किए खुद को ग्लोबल साउथ की आवाज बताकर इस दौड़ में बना रहना चाहता है. फैसला बॉन में हो सकता है.

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