भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: चालू खाते में लाभ के भ्रम को समझना जरूरी

By भरत झुनझुनवाला | Published: October 20, 2020 02:34 PM2020-10-20T14:34:29+5:302020-10-20T14:34:29+5:30

आयात कम और निर्यात अधिक होने से और निवेश लगभग पूर्ववत रहने से व्यापार खाते में लाभ के साथ-साथ हमारा चालू खाता भी लाभ में हो गया है. वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में हमें चालू खाते में 15 अरब डालर का घाटा हुआ था जो वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 20 अरब डालर के लाभ में परिवर्तित हो गया है.

Bharat Jhunjhunwala blog: It is important to understand the illusion of profit in current account | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: चालू खाते में लाभ के भ्रम को समझना जरूरी

स्थानीय स्तर पर नौकरशाही द्वारा उद्योगों की वसूली पर लगाम लगाने के प्रयास करने चाहिए

वर्तमान समय में देश के आयात कम और निर्यात अधिक हैं. आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार खाता कहा जाता है. आयात कम और निर्यात अधिक होने से हमें व्यापार खाते में लाभ हुआ है. यह लाभ हमने 13 वर्षो के बाद अर्जित किया है जो कि खुशी का विषय है. इसके साथ ही हमें बाहर से निवेश मिल रहा है और अपने देश के कुछ उद्यमी दूसरे देशों में निवेश भी कर रहे हैं. आयात, निर्यात तथा आने और जाने वाले निवेश-चारों माध्यम से जो विदेशी मुद्रा का आवागमन होता है-उसके योग को चालू खाता कहा जाता है. आयात कम और निर्यात अधिक होने से और निवेश लगभग पूर्ववत रहने से व्यापार खाते में लाभ के साथ-साथ हमारा चालू खाता भी लाभ में हो गया है. वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में हमें चालू खाते में 15 अरब डालर का घाटा हुआ था जो वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में 20 अरब डालर के लाभ में परिवर्तित हो गया है. यह खुशी की बात है. इसके साथ ही यह भी शुभ संकेत है कि हमारे निर्यातों में सेवा क्षेत्न ने कोविड के संकट के दौरान मामूली बढ़त हासिल की है जो कि इस क्षेत्न में हमारी सुदृढ़ता का द्योतक है.

हमारे सामने चुनौती है कि चालू खाते के इस लाभ को टिकाऊ बनाएं. लेकिन यह कार्य अति दुष्कर दिखता है क्योंकि अर्थव्यवस्था की अंदरूनी स्थिति अच्छी नहीं है. हमारा चालू घाटे में लाभ उसी प्रकार है जैसे कोई व्यक्ति बीमार हो जाए और भोजन कम करे तो कहा जाए कि उसका ‘भोजन खाता’ लाभ में हो गया है. हमारी कमजोरी का पहला संकेत रुपए का मूल्य है. सामान्य रूप से जब किसी देश का चालू घाटा लाभ में होता है तो इस अर्थ होता है कि

(1) आयात कम और निर्यात ज्यादा हैं;

(2) जाने वाला निवेश कम और आने वाला निवेश ज्यादा है;

(3) दोनों माध्यम से बाहर जाने वाले डॉलर की रकम कम और आने वाले डॉलर की रकम अधिक है.

डालर कम मात्न में जाने एवं अधिक मात्न में आने से हमारे विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की उपलब्धता बढ़नी चाहिए थी और डालर के दाम गिरने चाहिए थे जैसे मंडी में आलू की आवक ज्यादा हो तो दाम गिर जाते हैं. लेकिन इस समय हो रहा है इसके विपरीत. सितंबर 2019 में एक डालर का दाम 72 रुपए था जो कि सितंबर 2020 में बढ़कर 73 रुपए हो गया. यद्यपि डॉलर के दाम में यह वृद्धि मामूली है लेकिन डॉलर का दाम तो घटना चाहिए था. तब माना जाता कि डॉलर कमजोर और रु पया सुदृढ़ हो रहा है.

अत: प्रश्न है कि जब हमारा चालू खाता लाभ में है तो डॉलर का दाम घटने के स्थान पर बढ़ क्यों रहा है? एक डॉलर जो पिछले वर्ष 72 रुपए में उपलब्ध था, वह आज 70 रुपए में उपलब्ध होने के स्थान पर 73 रुपए में क्यों उपलब्ध हो रहा है? इसका कारण यह दिखता है कि विश्व के निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास नहीं है. निवेशकों का आकलन है कि डॉलर की यह आवक स्थायी नहीं होगी और शीघ्र भारत को डॉलर मिलना कम हो जाएंगे. 

दूसरा संकट यह है कि यद्यपि हमारे आयात की तुलना में निर्यात अधिक हैं लेकिन ये निर्यात कच्चे माल के अधिक और उत्पादित माल के कम हैं. हमारा सपना है कि देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएं लेकिन परिस्थिति इसके ठीक विपरीत बढ़ रही है. हमारा मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्न दबाव में आ रहा है. इन दोनों कारणों से वर्तमान में हमारे चालू घाटे में लाभ के टिकाऊ होने की संभावना नहीं के बराबर है.
इस परिस्थिति में सरकार को तीन कदम उठाने चाहिए.

पहला कि सेवा क्षेत्न में जो हमारे निर्यातों की सुदृढ़ता है, इसको कायम रखने के लिए अपनी शिक्षा व्यवस्था में अंग्रेजी को प्राथमिक स्तर से ही अनिवार्य बना देना चाहिए. अपनी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए स्थानीय भाषा का और आधुनिक जगत में रोजगार के लिए अंग्रेजी भाषा दोनों को साथ-साथ लेकर चलना चाहिए जिससे हमारे युवा सेवा क्षेत्न में आगे बढ़ सकें.

दूसरा, सरकार को आधुनिक तकनीकों को खरीदने के लिए देश के उद्यमियों को सब्सिडी देनी चाहिए. हमारी उत्पादन लागत कम करने के लिए यह जरूरी है कि हम आधुनिकतम तकनीकों का उपयोग करें लेकिन उद्यमियों के पास इन तकनीकों को हासिल करने की क्षमता नहीं होती है इसलिए सरकार को उन्हें मदद करनी चाहिए जिससे कि हम उत्पादित माल आधुनिक तकनीकों से सस्ता बना सकें.

तीसरा, स्थानीय स्तर पर नौकरशाही द्वारा उद्योगों की वसूली पर लगाम लगाने के प्रयास करने चाहिए. हमें चालू खाते में लाभ से अति उत्साहित नहीं होना चाहिए बल्कि इसके पीछे जो खतरा मंडरा रहा है, उसका सामना करने के कदम उठाने चाहिए.

 

Web Title: Bharat Jhunjhunwala blog: It is important to understand the illusion of profit in current account

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