उत्तरकाशी के टनल में 17 दिनों तक फंसे रहने वाले बिहार मूल के पांच मजदूर लौटे घर, हुआ जोरदार स्वागत
By एस पी सिन्हा | Published: December 1, 2023 02:27 PM2023-12-01T14:27:36+5:302023-12-01T14:27:53+5:30
जब सकुशल सुरंग से बाहर निकले तो सभी मजदूरों एक दूसरे से गले मिलकर विदाई ली।
पटना: उत्तराखंड के उत्तरकाशी के टनल में 17 दिनों तक फंसे रहने वाले बिहार मूल के पांच मजदूरों की शुक्रवार को प्रदेश में वापसी हुई। पटना हवाई अड्डे पर उनके स्वागत के लिए राज्य के श्रम संसाधन मंत्री सुरेन्द्र राम मौजूद रहे।
सभी श्रमिकों का फूल-माला से जोरदार स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर सभी मजदूरों को बिहार सरकार अपने स्तर पर पटना लाई और यहां से विशेष वाहनों से उन्हें अलग-अलग जिलों में भेजा गया।
उनके चेहरे पर सुरक्षित घर पहुंचने की खुशी साफ झलक रही थी, जिन्होंने 17 दिनों तक मौत से जंग लड़कर दोबारा जिंदगी हासिल की है। सुरंग से निकाले गए राज्य के पांच श्रमिकों में सारण के सोनू कुमार साह, भोजपुर के सबाह अहमद, बांका के विरेंद्र किशु, मुजफ्फरपुर के दीपक कुमार और रोहतास के सुनील कुमार, शामिल हैं।
इन सभी श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गई थी। मजदूरों ने बताया कि वे कैसे 17 दिनों तक सुरंग में अपना जीवन बिताये। उन्होंने कहा कि पहले 24 घंटे उन्हें परेशानी झेलनी पड़ी। बाद में सभी को अलग अलग प्रकार की सुविधाएं मिलने लगी तो उन्हें उम्मीद जगी कि जल्द ही वे सुरंग से बाहर आ जाएंगे।
मजदूरों ने कहा कि इस दौरान उन्हें खाना, कपड़ा और अन्य प्रकार की चीजें आती रही जिससे सुरंग की विषम परिस्थति में 17 दिन बिताना आसान हुआ। इस दौरान सबसे बड़ी परेशानी शौच को लेकर थी। लेकिन मजदूर सुरंग के ही एक हिस्से में खुले में शौच करते। उनके पास इसके अतिरिक्त और कोई चारा भी नहीं था।
वहीं स्नान करने के लिए भी परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी। जिन मजदूरों को नहाने की जरूरत महसूस हुई उन्होंने सुरंग के एक हिस्से में टपकने वाले प्राकृतिक पानी से ही स्नान किया। मजदूरों ने बताया कि इसी उम्मीद के सहारे वे 17 दिनों तक सुरंग में रह गए। जब सकुशल सुरंग से बाहर निकले तो सभी मजदूरों एक दूसरे से गले मिलकर विदाई ली।
साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से मुहैया कराई सुविधाओं को भी सभी श्रमिकों ने खूब सराहा। सुरंग में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुल 41 मजदूर थे।