Bihar Politics News: यादव वोटों पर नजर, राजद और भाजपा में सियासत तेज, देखें क्या है समीकरण और डालें सीट पर नजर
By एस पी सिन्हा | Published: November 15, 2023 06:08 PM2023-11-15T18:08:09+5:302023-11-15T18:09:16+5:30
Bihar Politics News: भाजपा ने मंगलवार को यदुवंशी सम्मेलन कराकर लालू यादव की पार्टी राजद के आधार वोटों में सेंधमारी की चाल चल दी है।
Bihar Politics News: आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुएअब जातीय गोलबंदी का प्रयास शुरू हो गया। नीतीश-तेजस्वी सरकार के द्वारा जातीय गणना कराए जाने के बाद अब भाजपा के द्वारा भी जातीय वोटों में सेंधमारी का प्रयास किया जाने लगा है। इसी कड़ी में भाजपा ने मंगलवार को यदुवंशी सम्मेलन कराकर लालू यादव की पार्टी राजद के आधार वोटों में सेंधमारी की चाल चल दी है।
भाजपा के इस प्रयास के बाद राजद बौखला गई है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के द्वारा सियासी बाण चलाए जाने के बाद अब भाजपा भी चुनौती देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। दरअसल, बिहार की सियासत में वर्ष 1990 के बाद से यादव बिरादरी के सर्वाधिक मान्य नेता के तौर पर लालू यादव रहे हैं।
बता दें कि यादव और मुस्लिम वोट बैंक के गठजोड़ के सहारे ही लालू यादव की पार्टी राजद बिहार में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करती रही है। भाजपा भी जानती है कि यादवों को अगर तोड़ने में सफल नहीं हुई तो राजद को हराना मुश्किल होगा। भाजपा पिछले कुछ चुनावों से लगातार इस दिशा में प्रयास भी कर रही है।
हालांकि 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावो में यादव मतदाताओं ने भाजपा को झटका दिया था। ऐसे में अब एक बार फिर से भाजपा उसी दिशा में बढ़ी है। बिहार में पिछले दो विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो वर्ष 2015 में यादव जाति से 61 विधायक जीतकर आए थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी राजद ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें उसने 48 सीटों पर यादवों को टिकट दिए थे।
इनमें से 42 जीतने में सफल रहे। 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यादवों को साधने के लिए 22 यादव को टिकट दिया लेकिन सिर्फ 6 ही जीत सके। वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद यादव विधायकों की संख्या 52 रही। इस बार राजद से 35 यादव विधायक जीते, जबकि भाजपा से सिर्फ 7 यादव ही जीत सके।
आंकड़े बताते हैं की यादव वोटरों का रुझान लालू यादव की ओर ही रहा है। 2000 में बिहार में यादव विधायकों की संख्या 64 थी जो 2005 में 54 हो गई थी और फिर 2010 में संख्या घटकर 39 पर आ गई थी, लेकिन 2015 में बढ़कर 61 पहुंच गई, जबकि 2020 में यह संख्या 52 हो गई। इसमें दलीय तौर पर अगर यादव विधायकों को देखें तो हर बार राजद से ही सबसे ज्यादा यादव विधायक जीते।
यादव बिरादरी का लालू यादव के इस गठजोड़ से राजद को मिलती मजबूती को भाजपा भलीभांति जानती है। इसलिए भाजपा अब राजद को सबसे बड़ा झटका देने की जुगत में लगी है। ऐसे में अब यह महत्वपूर्ण होगा कि भाजपा के यदुवंशी सम्मेलन के बाद पार्टी कितने बड़े स्तर को खुद को यादव बिरादरी के बीच भरोसेमंद बना पाती है क्योंकि वर्ष 1990 के बाद से लाख कोशिशों के बाद ही यादव का सबसे बड़ा वोट प्रतिशत लालू यादव के ही साथ रहा है।
भाजपा का यह यादव शक्ति परीक्षण अब अगले चुनावों में कितना लाभकारी होगा यह बेहद महत्वपूर्ण होगा। बिहार के सांसदों में जातियों की हिस्सेदारी देखें तो अति पिछड़ा वर्ग-7, एससी वर्ग से 6, यादव-5, कुशवाहा 3, वैश्य-3, कुर्मी- कायस्थ 1-1, राजपूत 7, भूमिहार 3, ब्राह्णण-2 और मुस्लिम-2 सांसद बने हैं।
बता दें कि बिहार में जातीय तौर पर सबसे बड़ी संख्या यादव बिरादरी की है। जातीय गणना सर्वे के अनुसार बिहार में यादव समुदाय की आबादी 14.26 प्रतिशत है। ऐसे में बिहार विधानसभा में यादव विधायकों की संख्या ही इसी अनुपात में सबसे ज्यादा रहती है। वोट बैंक के लिहाज से सबसे बड़ी आबादी होने के कारण ही यादव जाति को अब अपनी ओर रिझाने में भाजपा लगी
भाजपा के द्वारा यादव मतदाताओं पर डोरे डालने के बाद गर्मायी सियासत, नित्यानंद राय ने दे दी लालू परिवार को चुनौती
भाजपा के द्वारा पटना में यदुवंशी सम्मेलन कराए जाने के बाद बिहार में सियासी संग्राम शुरू हो गया है। दरअसल माय(मुस्लिम-यादव) समीकरण लालू प्रसाद यादव की ताकत मानी जाती है और इसी की बदौलत लंबे समय तक लालू सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते रहे। लेकिन अब भाजपा की नजर यादव वोट बैंक पर है।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने यदुवंशी सम्मेलन कर लालू प्रसाद यादव के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश की है। इस सम्मेलन के बाद लालू यादव ने जिस तरह से भाजपा पर हमला बोला है, उसके जवाब में अब नित्यानंद राय ने लालू परिवार को उजियारपुर से चुनावी मैदान में उतारने और जीत कर दिखाने की चुनौती दे दी है।
नित्यानंद राय ने लालू प्रसाद और उनके कुनबे पर सीधा प्रहार करते हुए कहा कि लालू जी परिवारवाद आपको मुबारक हो। मैं परिवारवादी व्यक्ति नहीं हूं। भाजपा में परिवारवाद नहीं सिखाया जाता है। जब मैं विधायक बना था तो मेरे पिताजी ने मुखिया का पद छोड़ दिया था। मैं राजनीति में हूं ना कि मेरी पत्नी राजनीति में है।
आप पूरा परिवार मिलकर राजनीति कर रहे हैं। यदि आपको विश्वास था तो किसी यादव समाज के नेता को मुख्यमंत्री बना देते। लोकतंत्र में यह काम नहीं चलेगा कि आप परिवार को उसमें से किसी को मुख्यमंत्री बना दें। उन्होंने कहा कि मैं चुनौती के लिए तैयार हूं और चुनौती दे भी रहा हूं। लालू जी से प्रार्थना और आग्रह है कि आप अपने परिवार से किसी को भी उजियारपुर से चुनाव लड़ने के लिए भेज दीजिए।
अगर मैं हार गया तो बिहार की चुनावी राजनीति से संन्यास ले लूंगा और भाजपा का बूथ अध्यक्ष बनकर जीवन भर काम करूंगा। अगर आपके परिवार का सदस्य पराजित हो गया तो आप बिहार की राजनीति से संन्यास ले लीजिएगा, मेरी चुनौती और विनती को स्वीकार करिए।
केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने खुली चुनौती देते हुए कहा कि वे लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव के क्षेत्र राघोपुर में भी चर्चा करने को तैयार हैं कि कौन गौ हत्या करवाता है और कौन गौ सेवक है? लालू प्रसाद पर निशाना साधते हुए नित्यानंद राय ने कहा कि उन्हें अपने समाज पर ही भरोसा नहीं है। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनवाया था। अगर उनमें हिम्मत है तो किसी गरीब यादव को उपमुख्यमंत्री बनाकर दिखा दें?