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संरक्षणवादियों को अधिक सोच-विचार के लिए क्यों विवश कर रहा है जलवायु परिवर्तन

By भाषा | Updated: July 17, 2021 16:41 IST

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(साराह एलिजाबेथ डैलरिंपल, संरक्षण पारस्थितिकी में वरिष्ठ व्याख्याता, लिवरपूल जॉन मूरेस यूनिवसिर्टी)

लंदन (ब्रिटेन), 17 जुलाई (द कन्वर्सेशन) चूंकि जलवायु परिवर्तन से रिकॉर्ड सूखा, बाढ़ की स्थिति पैदा हो रही है और विस्तारित होती आग की घटनाओं का मौसम लगातार सुर्खियों में बना हुआ है, ऐसे में इस भयावह स्थिति में मानव की भूमिका अब अविवादित है, संस्थागत परिवर्तन धीमा और अस्थिर रहा है। खास तौर पर, संरक्षणवादी मौजूदा अन्य खतरों को देखते हुए जलवायु परिवर्तन को जैव-विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा बताने को लेकर चौकन्ना रहे हैं।

लेकिन अब स्थिति बदल सकती है। पिछले 18 महीनों में आईयूसीएन रेड लिस्ट-जिसमें विलुप्ति के कगार पर पहुंची प्रजातियों की सूची होती है-ने उन प्रजातियों में 52 प्रतिशत की वृद्धि देखी है जिन्हें जलवायु परिवर्तन से खतरा बताया जा रहा था। संरक्षणवादी यह सोचने को विवश हो रहे हैं कि क्या पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित उनके पारंपरिक नजरिए को बदलते विश्व के अनुरूप अनुकूलन की आवश्यकता है।

आपने उन स्थितियों के बारे में सुना होगा जब विलुप्ति के कगार पर पहुंचीं प्रजातियां उन क्षेत्रों में फिर से छोड़ी जाती हैं, जहां जंगल में वे रहा करती थीं। अफ्रीका में गेंडों और उत्तरी अमेरिका में भेड़ियों का फिर से दिखना इसके उदाहरण हैं।

हालांकि, हमारे अनुसंधान में, मेरे सहकर्मियों और मैंने दिखाया कि उन क्षेत्रों में कई पुन: मौजूदगी विफल हो रही हैं जहां जलवायु परिवर्तन छोड़ी जाने वाली प्रजातियों के लिए उपयुक्त नहीं है।

यह प्रजातियों को उनके पूर्व के आवासों में छोड़ने के प्रयासों को कमतर करता है और एक चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन विलुप्ति के कगार पर पहुंचीं प्रजातियों के आवास को पहले से ही सीमित कर रहा है।

कुछ मामलों में, नई प्रजातियां उपलब्ध होती हैं क्योंकि जलवायु स्थितियों में बदलाव प्रजातियों को उन क्षेत्रों में जीवित रहने देता है जो पहले ठंडे स्थान थे। लेकिन जब तक वे इन नए आवासों में आबादी नहीं बढ़ातीं तब तक-व्यवस्थापन जो अधिकतर के लिए पेचीदा है-विलुप्ति के जोखिम का सामना कर रहीं अनेक प्रजातियां अपने मौजूदा क्षेत्र में कमी का अनुभव करेंगी।

‘‘संरक्षण स्थानांतरण’’ जिसे सहायता प्राप्त स्थानांतरण भी कहा जाता है, सहायता प्राप्त औपनिवेशीकरण और प्रबंधित पुनर्वास, उन हस्तक्षेप का विवरण हैं जिसे जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रजाति हृास तथा विलुप्ति से निपटने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रजातियों को गर्म और सूखे वातावरणों में छोड़ने की जगह हम उन्हें नए आवासों में ले जाकर उनका दायरा विस्तारित करने की कोशिश कर सकते हैं। इससे उन स्थितियों से निपटा जा सकता है जहां प्रजातियां खुद आगे नहीं बढ़ सकतीं जैसे कि पौधे जिनके बीज एक समय में कुछ ही मीटर तक बिखरते हैं या पक्षी जो नया क्षेत्र ढूंढ़ने के लिए अपने वनक्षेत्र की सुरक्षा को नहीं छोड़ते।

हालांकि, यह नजरिया प्रजातियों को ऐसे पारिस्थितिकी तंत्रों में ले जाने जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखे हैं, के जोखिमों की वजह से विवादित रहा है। जोखिमों में नए आवासों में बीमारियों के प्रसार, शिकार या स्थान के लिए वहां की निवासी प्रजातियों से आक्रामक प्रतिस्पर्धा और नए परभक्षियों के पदार्पण जैसे खतरे शामिल हैं।

इस समस्या का एक उदाहरण यह है कि तस्मानियाई डैविल अपनी आबादी में फैल रहे घातक कैंसर से बचने के लिए तस्मानिया अपतटीय क्षेत्र के मारिया द्वीप क्षेत्र चले गए।

इन शिकारियों को छोटी पूंछ वाले समुद्री पक्षी और छोटे पेंगुइन के रूप में आसानी से शिकार उपलब्ध होने लगा जो प्रजातियों के लिए स्वयं में एक खतरा था। दोनों पक्षी अब मारिया द्वीप से खत्म हो चुके हैं।

लेकिन प्रजातियों को दूसरे स्थानों पर बसाना एक संरक्षण विकल्प है जिसे हम आंख मूंदकर खारिज नहीं कर सकते। सहायता प्राप्त स्थानांतरण पर अंतरराष्ट्रीय अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम का एक नया पत्र कुछ भी न करने की जगह प्रजातियों को दूसरे स्थानों पर बसाए जाने के जोखिमों को संतुलित करने का आह्वान करता है।

पूर्व के दिनों में खास तौर पर गर्म होती दुनिया के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए सहायता प्राप्त स्थानांतरण के थोड़े-बहुत ही प्रयास हुए हैं।

अच्छा उदाहरण पश्चिम में दलदल में पाए जाने वाले कछुए का है: ऑस्ट्रेलिया का दुर्लभतम सरीसृप जिसे एक सदी तक विलुप्त माना गया, लेकिन हाल में पर्थ के पास उसके होने का पता चला। कछुए को अल्पकालिक तालाबों में आहार मिलता है जो प्राय: मौसमी बारिश के बाद बनते हैं लेकिन सूखा उनके आहार स्रोत के दायरे को सप्ताहों तक कम कर रहा है : जिससे प्रजाति की प्रजनन सफलता पर असर पड़ता है।

पश्चिम में दलदल में पाए जाने वाले कछुए को उनके मौजूदा दायरे के दक्षिण में ठंडे, नम स्थलों पर भेजना उनके लिए सही तरह का आवास हो सकता है जहां उन्हें सूखे के दौरान जीवित रहने के लिए पर्याप्त आहार मिल सकता है। कछुओं के जीवन के लिए ये सबसे सुरक्षित दीर्घकालिक स्थल प्रतीत होते हैं और उन्हें प्रयोग के रूप में दूसरे स्थानों पर बसाने के पहले ही अच्छे परिणाम निकल रहे हैं।

कार्रवाई करने का समय?

पौधों के मामले में भी ऐसी ही स्थिति है। ‘जर्नल ऑफ इकोलॉजी’ में हाल में प्रकाशित पत्रों के संग्रह के अनुसार इतालवी अनुसंधानकर्ताओं के एक समूह ने आकलन व्यक्त किया कि निराशात्मक (लेकिन अधिक संभव) जलवायु परिवर्तन परिदृश्य में पौधों की विलुप्तप्राय 188 प्रजातियों में से 90 प्रतिशत को सहायता प्राप्त स्थानांतरण की आवश्यकता हो सकती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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