अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के ढाई महीने बाद बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न बरकरार

By भाषा | Updated: November 4, 2021 17:23 IST2021-11-04T17:23:23+5:302021-11-04T17:23:23+5:30

Two and a half months after the change of power in Afghanistan, the question mark on the future of children remains | अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के ढाई महीने बाद बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न बरकरार

अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के ढाई महीने बाद बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न बरकरार

(पैट्रिक ओ लीरी, प्रोफेसर, ग्रिफिथ क्रीमोनोलॉजी इंस्टिट्यूट एंड स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज एंड सोशल)

ब्रिस्बेन, चार नवंबर (द कन्वरसेशन) अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान की वापसी के लगभग ढाई महीने बाद देश की स्थिति और विशेषकर बच्चों की हालत चिंताजनक है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के सर्वेक्षण के अनुसार, 95 प्रतिशत घरों के लोग पर्याप्त मात्रा में आहार नहीं ले रहे हैं। अर्थव्यवस्था ढीने की कगार पर है जिससे बच्चों का जीवन और उनके परिवार की आजीविका पर संकट है।

संयुक्त राष्ट्र, वैश्विक समुदाय से न केवल अफगानिस्तान को दी जाने वाली वित्तीय सहायता बढ़ाने बल्कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा की निगरानी करने की भी अपील कर रहा है। भूख और कुपोषण के खतरे को दशकों तक चली हिंसा और अभाव से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। अफगानिस्तान में कई पीढ़ियों तक बच्चे ऐसी ही माहौल में पले बढ़े हैं।

बच्चों के प्रति हिंसा के सामान्यीकरण की स्वीकृति देने के खिलाफ बदलाव की कुछ उम्मीद पहले दिखी थी जिसे संस्थागत सुधार के आधार पर किया जाना था लेकिन अब वह भी खत्म होता नजर आ रहा है। अफगानिस्तान में बच्चों के प्रति कई प्रकार की हिंसा होती रही है जिसमें यौन हिंसा, घरेलू और पारिवारिक हिंसा, स्कूलों तथा अन्य जगहों पर किये गए बम धमाके शामिल हैं।

युद्धग्रस्त देश में 2019 की शुरुआत से 2020 के अंत तक, 5700 लड़कियों और बच्चों की हत्या हुई है या वे घायल हुए हैं। लड़कियों को जहां शिक्षा से वंचित रखा गया वहीं, बच्चों को तालिबान जैसे समूहों ने लड़ाई के लिए भर्ती किया। अफगानिस्तान में लंबे समय तक चले युद्ध में कई बच्चों ने अपने माता पिता को खोया है इसलिए अनाथ बच्चों को सहारा देने में अनाथालयों ने बड़ी भूमिका निभाई है।

घरेलू और विदेशी आर्थिक सहायता में कमी के कारण अनाथालय अब उस तरह की सुविधा नहीं दे पा रहे हैं। कुछ अनाथालयों में तो अब बच्चों को खाना भी कम दिया जाने लगा है। हाल में हुए शोध में पता चला है कि बच्चों को घर पर अपने माता पिता की ओर से पहले के मुकाबले अधिक हिंसा झेलनी पड़ रही है। कई माता पिता का यह भी मानना है कि कुछ प्रकार के अहिंसक तरीकों के जरिये प्रभावी ढंग से अनुशासन लाया जा सकता है।

हमने 2018-19 से “सापर परियोजना” का मूल्यांकन किया जो स्विट्जरलैंड स्थित एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित है। यह संगठन बच्चों के अधिकार और कल्याण के लिए काम करता है। इस कार्य्रकम में बच्चों और महिलाओं को सामाजिक कार्य सेवा और रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जाता था। इस कार्यक्रम में शामिल होने के बाद बच्चों को तो उम्मीद जगी लेकिन महिलाओं के लिए औपचारिक रोजगार की कमी के कारण विकल्प नहीं बचे और वे समाज के हाशिये पर पहुंच गई।

तालिबान की वापसी बाद यह सब जारी रहने की आशंका है तथा महिलाओं की स्वतंत्रता, शिक्षा और रोजगार पर और अधिक पाबंदी लगने का अनुमान है।

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Web Title: Two and a half months after the change of power in Afghanistan, the question mark on the future of children remains

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