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स्टेम सेल अनुसंधान समुदाय मानव भ्रूण के परीक्षण पर 14 दिन की सीमा के हक में नहीं

By भाषा | Updated: May 28, 2021 12:29 IST

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फ्रेंकाइस बायलिस, रिसर्च प्रोफेसर, फिलॉस्फी, डलहौजी यूनीवर्सिटी

हैलिफ़ैक्स (कनाडा), 28 मई (द कन्वरसेशन) खुद को ‘‘स्टेम सेल रिसर्च समुदाय की आवाज़’’ के तौर पर पेश करने वाले संगठन द इंटरनेशनल सोसाइटी फ़ॉर स्टेम सेल रिसर्च (आईएसएससीआर) ने घोषणा की है कि वह मानव भ्रूण के अनुसंधान को निषेचन के 14 दिन तक सीमित रखने वाले प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय मानक का अब समर्थन नहीं करता है।

मानव भ्रूण के अनुसंधान का मुद्दा लंबे समय से एक चुभने वाला विषय रहा है क्योंकि विकसित होते भ्रूण की नैतिक स्थिति के बारे में परस्पर विरोधी विचार व्यक्त किए जाते रहे हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि मानव भ्रूण में जीवन का नैतिक स्वरूप होता है और उन्हें संरक्षित करने योग्य मानव जीवन माना जाता है- कि भ्रूण का उपयोग अनुसंधान के लिए नहीं किया जाना चाहिए, खास तौर से ऐसा अनुसंधान, जिसमें उनका विनाश है।

अन्य लोग इस तरह के दावों को अस्वीकार करते हैं और मानव भ्रूण के अनुसंधान से जुड़े संभावित वैज्ञानिक और चिकित्सीय लाभों का जिक्र करते हैं। इन लाभों में मानव विकास की जांच, कैंसर कोशिका वृद्धि, जन्मजात रोग और गर्भपात के कारण शामिल हैं। इस अनुसंधानों के आधार पर गर्भ निरोधकों का विकास, आनुवंशिक रोगों का निदान, बांझपन और अन्य विकृतियों का इलाज आदि शामिल हैं।

2016 से पहले के आईएसएससीआर के दिशानिर्देश अनुसंधान के लिए 14 दिन से अधिक के भ्रूण को निकालने और इसके उपयोग पर रोक लगाते हैं। 26 मई को घोषित अद्यतन दिशानिर्देश इस प्रतिबंध को समाप्त करते हैं। इसके स्थान पर आईएसएससीआर यह अनुशंसा करता है कि ‘‘विज्ञान की राष्ट्रीय अकादमियाँ, शैक्षणिक समाज, धनप्रदाता और नियामक’’ जनता को 14-दिन की सीमा से जुड़े वैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक मुद्दों के बारे में चर्चा में शामिल करें, और क्या इस सीमा को अनुसंधान के उद्देश्यों के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए।

14 दिन के नियम का इतिहास

14 दिन का नियम, जिसे 14 दिन की सीमा के रूप में भी जाना जाता है, ‘‘दशकों में विभिन्न राष्ट्रीय समितियों के विचार-विमर्श के आधार पर भ्रूण-अनुसंधान निरीक्षण का एक मानक हिस्सा बना।

आज, विभिन्न देशों में मानव भ्रूण की नैतिक स्थिति को लेकर अलग अलग तरह की विचारधारा के चलते उनमें से किसी एक को सही मानते हुए कमोबेश अलग-अलग नियम हैं। कुछ देश - जैसे ऑस्ट्रिया, जर्मनी, इटली, रूस और तुर्की - मानव भ्रूण से जुड़े अनुसंधान की अनुमति नहीं देते हैं।

अन्य देश जिनमें कनाडा, चीन, भारत, जापान, स्पेन और ब्रिटेन शामिल हैं - 14 दिन तक (और उससे आगे नहीं) मानव भ्रूण के सीमित अनुसंधान की अनुमति देते हैं। कुछ ऐसे देश भी हैं जो किसी भी प्रकार की समय सीमा निर्धारित किए बिना इस तरह के शोध की अनुमति देते हैं, इनमें ब्राजील और फ्रांस शामिल हैं।

1979 में, व्यापक सार्वजनिक परामर्श के बाद, अमेरिका के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग के नैतिकता सलाहकार बोर्ड ने सीमित मानव भ्रूण अनुसंधान के समर्थन में एक रिपोर्ट जारी की। बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि मानव भ्रूण से जुड़े अनुसंधान की अनुमति दी जानी चाहिए, बशर्ते भ्रूण ‘‘विट्रो में उस चरण से परे न हो जो सामान्यत: आरोपण (निषेचन के 14 दिन बाद) के पूरा होने से जुड़ा है।’’

पांच साल बाद, व्यापक सार्वजनिक परामर्श के बाद, ब्रिटेन में मानव निषेचन और भ्रूणविज्ञान में जांच समिति की वार्नोक रिपोर्ट भी इसी तरह के निष्कर्ष पर पहुंची। हालांकि, इस रिपोर्ट में एक अलग जैविक प्रक्रिया को आधार बनाया गया था वह थी भ्रूण की संरचना में आदिम लकीर (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की रचना की सूचक) की उपस्थिति, जो निषेचन के 14 वें या 15 वें दिन दिखाई देती है।

14 दिन की प्रस्तावित नैतिक सीमा को मजबूत करने वाला पहला राष्ट्रीय कानून ब्रिटेन में 1990 के मानव निषेचन और भ्रूणविज्ञान अधिनियम में पेश किया गया था। तब से अन्य देशों (लेकिन अमेरिका नहीं) ने इसका पालन किया है और इसी तरह के कानून पेश किए हैं।

कनाडा में, 2004 का असिस्टेड ह्यूमन रिप्रोडक्शन एक्ट यह निर्धारित करता है कि कोई भी व्यक्ति ‘‘निषेचन या रचना के उपरांत उसके विकास के 14वें दिन के बाद जानबूझकर एक भ्रूण को एक महिला के शरीर से बाहर नहीं रखेगा, इसमें वह समय शामिल नहीं है, जिसमें भ्रूण के विकास को निलंबित कर दिया गया हो।’’

अब तक, आईएसएससीआर के दिशानिर्देश 14-दिन की सीमा का समर्थन करने वाले कानूनों, विनियमों और दिशानिर्देशों के अनुरूप ही थे, लेकिन अब और नहीं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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