नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद भंग की, 12 तथा 19 नवंबर में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की

By भाषा | Updated: May 22, 2021 10:17 IST2021-05-22T09:42:28+5:302021-05-22T10:17:15+5:30

Nepal's President dissolves parliament, announces midterm elections in November | नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद भंग की, 12 तथा 19 नवंबर में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की

नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद भंग की, 12 तथा 19 नवंबर में मध्यावधि चुनाव की घोषणा की

Highlights 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा कीमंत्रिमंडल की आपात बैठक के बाद 275 सदस्यीय सदन को भंग करने की सिफारिश की थीअनुच्छेद 76 (7) के आधार पर मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा

काठमांडू: नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने शुक्रवार आधी रात को संसद भंग कर दी और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की। इससे पहले उन्होंने माना कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और विपक्षी गठबंधन दोनों सरकार बनाने की स्थिति में नहीं हैं।

भंडारी की इस घोषणा से पहले प्रधानमंत्री ओली ने आधी रात को मंत्रिमंडल की आपात बैठक के बाद 275 सदस्यीय सदन को भंग करने की सिफारिश की थी।

राष्ट्रपति कार्यालय से प्रेस को जारी एक बयान में कहा गया है कि संसद को भंग कर दिया गया है और नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (7) के आधार पर मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा की गई है।

मंत्रिमंडल ने पहले चरण का चुनाव 12 नवंबर और दूसरे चरण का चुनाव 19 नवंबर को कराने की सिफारिश की।

यह कदम तब उठाया गया जब इससे पहले राष्ट्रपति कार्यालय के एक नोटिस में कहा गया कि वह न तो वह पदस्थ प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और न ही नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को नियुक्त कर सकता है। दोनों ने ही सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन होने का दावा किया था।

प्रतिनिधि सभा के 275 सदस्यों में से चार सांसदों के दूसरी पार्टी में जाने पर उनकी पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को नयी सरकार बनाने के लिए संसद में कम से कम 136 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है।

नेपाली मीडिया की खबरों के अनुसार, दिलचस्प है कि ओली और देउबा दोनों ने ऐसे कुछ सांसदों का समर्थन होने का दावा किया था जिनके नाम उन दोनों की सूची में शामिल थे।

यह दूसरी बार है जब राष्ट्रपति भंडारी ने राजनीतिक संकट के बाद प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर संसद भंग की है।

पिछले साल 20 दिसंबर को भी भंडारी ने संसद भंग की थी लेकिन बाद में फरवरी में उच्चतम न्यायालय ने इसे फिर से बहाल कर दिया था।

नेपाल के राजनीतिक संकट में शुक्रवार को उस वक्त नाटकीय मोड़ आ गया जब प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली और विपक्षी दलों दोनों ने ही राष्ट्रपति को सांसदों के हस्ताक्षर वाले पत्र सौंपकर नयी सरकार बनाने का दावा पेश किया।

प्रधानमंत्री ओली विपक्षी दलों के नेताओं से कुछ मिनट पहले राष्ट्रपति के कार्यालय शीतल निवास पहुंचे और अपनी सूची सौंपी।

उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के अनुसार पुन: प्रधानमंत्री बनने के लिए अपनी पार्टी सीपीएन-यूएमएल के 121 सदस्यों और जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपी-एन) के 32 सांसदों के समर्थन के दावे वाला पत्र सौंपा। ओली ने संसद में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए एक और बार शक्ति परीक्षण से गुजरने में बृहस्पतिवार को अनिच्छा व्यक्त की थी।

ओली ने जो पत्र सौंपा, उसमें जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल के अध्यक्ष महंत ठाकुर और पार्टी के संसदीय दल के नेता राजेंद्र महतो के हस्ताक्षर थे।

इसी तरह नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने 149 सांसदों का समर्थन होने का दावा किया। देउबा प्रधानमंत्री पद का दावा पेश करने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं के साथ राष्ट्रपति के कार्यालय पहुंचे।

‘द हिमालयन टाइम्स’ की खबर के अनुसार राष्ट्रपति ने विपक्षी नेताओं से कहा कि वह संवैधानिक विशेषज्ञों से परामर्श लेने के बाद इस पर फैसला लेंगी।

बहरहाल, एक नया विवाद तब खड़ा हो गया जब माधव नेपाल धड़े के कुछ सांसदों ने यह दावा करते हुए बयान दिया कि उनके हस्ताक्षरों का दुरुपयोग किया गया है और उन्होंने विपक्षी नेता देउबा को उनकी अपनी पार्टी के प्रमुख के खिलाफ प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त करने के किसी पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

मध्यावधि चुनाव की घोषणा होने के तुरंत बाद बड़े राजनीतिक दलों ने प्रधानमंत्री ओली और राष्ट्रपति भंडारी की उनके ‘‘असंवैधानिक’’ कदमों के लिए आलोचना की।

नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता विश्व प्रकाश शर्मा ने कहा, ‘‘लोग महामारी से लड़ रहे हैं और यह लोगों को तोहफा है? प्रधानमंत्री तानाशाही के अपने काल्पनिक रास्ते पर चल रहे हैं। सामूहिक रूप से संविधान का शोषण महंगा साबित होगा।’’

माओइस्ट सेंटर के नेता वर्षा मान पुन ने कहा, ‘‘यह आधी रात को हुई लूट है। ज्ञानेंद्र शाह ऐसे कदमों के लिए शुक्रवार और आधी रात को चुनते थे। के पी ओली उन लोगों के लिए कठपुतली हैं जो हमारे संविधान को पसंद नहीं करते और यह लोकतंत्र तथा हमारे संविधान पर हमला है।’’

वरिष्ठ नेपाली कांग्रेस नेता शेखर कोइराला ने इस कदम को असंवैधानिक बताया।

अन्य नेपाली कांग्रेस नेता रमेश लेखक ने ट्वीट किया कि राष्ट्रपति अपना कर्तव्य भूल गई हैं और उन्होंने संविधान को रौंद डाला। वह लोकतंत्र की रक्षा नहीं कर सकतीं।

देश में यह नया राजनीतिक संकट ऐसे समय में पैदा हुआ है जब कोरोना वायरस पैर पसार रहा है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Nepal's President dissolves parliament, announces midterm elections in November

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे

टॅग्स :nepalनेपाल