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हिमनद झीलों से विनाशकारी बाढ़ के जोखिम को कम करने में मददगार हो सकते हें ड्रोन

By भाषा | Updated: June 7, 2021 17:15 IST

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रॉड्रिगो नैरो पेरेज़, मैकमास्टर विश्वविद्यालय

हैमिल्टन (कनाडा), सात जून (द कन्वरसेशन) वह 13 दिसंबर, 1941 की अल सुबह थी, पेरू के हुआराज़ के नागरिकों ने घाटी में एक भयानक गड़गड़ाहट सुनी। कुछ ही क्षण में, शहर पर पानी, बर्फ और चट्टानों की एक धार बह गई, जिसमें एक तिहाई शहर नष्ट हो गया और कम से कम 2,000 लोग मारे गए।

इस आपदा का कारण यह था कि पाल्काकोचा झील के पानी को रोके रखने वाला चट्टानों और ढीले तलछट का प्राकृतिक बांध अचानक अपने बंधन खोल बैठा और झील का बेकाबू पानी इनसानी बस्ती पर तबाही मचाने उतर आया। त्रासदी को गुजरे अस्सी बरस बीत चुके हैं, लेकिन इसे आज भी पेरू की सबसे दुखद प्राकृतिक आपदाओं में से एक कहा जाता है।

इस प्रकार की विपत्तिपूर्ण घटना को ‘‘हिमनद झील प्रस्फोट बाढ़’’ के रूप में जाना जाता है। ग्लेशियल झीलें, जैसे कि एंडियन पर्वत श्रृंखला में कॉर्डिलेरा ब्लैंका में पाई जाती हैं। ये झीलें अक्सर ग्लेशियर से बहकर आने वाले मलबे के कारण क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जो कई बार 100 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकती हैं। यही मलबा ग्लेशियर के किनारों पर धीरे धीरे जमा होकर झील के लिए बांध का काम करता है।

भारी वर्षा और चट्टान, बर्फ अथवा हिमस्खलन हिमनद झीलों में जल स्तर बढ़ा सकते हैं, जिससे लहरें पैदा होती हैं जो झीलों के पानी को रोककर रखने वाले बांध पर दबाव बढ़ाती हैं या इसके ढहने का कारण बनती हैं, जिससे भारी मात्रा में पानी निकलता है। इन प्राकृतिक आपदाओं के केवल पेरू में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में अधिक आम होने की उम्मीद है, क्योंकि बढ़ते जलवायु ताप के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार ऐतिहासिक रूप से बढ़ रही है।

भविष्य की बाढ़ की भविष्यवाणी

आपदा के इस अंधेरे इतिहास ने पेरू की हिमनद झीलों को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों पर अंतर्राष्ट्रीय शोध को प्रेरित किया है। उत्तरी पेरू में कॉर्डिलेरा ब्लैंका में दुनिया के उष्णकटिबंधीय हिमनदों का सबसे बड़ा जमावड़ा है। यह भविष्यवाणी करना कि बाढ़ कब आएगी - और वह कितनी विनाशकारी होंगी - नीचे की ओर रहने वाले 320, 000 से अधिक लोगों के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है।

इस संबंध में उपलब्ध भूवैज्ञानिक इंजीनियरिंग मॉडल में ग्लेशियर से बहकर आने वाले कचरे से बनने वाले बांधों की संरचना के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।

मेरा शोध, मैकमास्टर यूनिवर्सिटी और पेरू के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन ग्लेशियर्स एंड माउंटेन इकोसिस्टम (आईएनएआईजीईएम) के बीच सहयोग का हिस्सा है और हिमनद मलबे से बनने वाले बांधों की उत्पत्ति और बांधों और झीलों की भौतिक विशेषताओं पर केंद्रित है। इन विशेषताओं का बांध की स्थिरता और इसके टूटने की आशंका पर काफी प्रभाव पड़ सकता है।

बांधों की संरचना को समझने के लिए यूएवी का उपयोग करना

ग्लेशियर घाटी के तल और आसन्न घाटी की दीवारों के साथ पत्थर, रेत, महीन दाने वाली गाद और मिट्टी की परत बनाते रहते हैं, जो समय के साथ बढ़ती रहती है और अक्सर एक अवरोध बनाती हैं। लेकिन इस तरह बनने वाला एक बांध दूसरे बांध के मुकाबले कितना मजबूत या कमजोर है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसमें कौन सी सामग्री है और यह कैसे बनता है।

ग्लेशियर से बहकर आने वाली सामग्री की खड़ी परतों में दरारों से पानी का रिसाव हो सकता है, और भूकंप अथवा हिमस्खलन होने पर ढीली चट्टानें गिर सकती हैं। इन दरारों के कारण मलबे से बने कच्चे बांध के ढह जाने की आशंका रहती है।

मैं और मेरे सहयोगी उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों को एकत्र करने के लिए बिना चालक दल वाले हवाई वाहनों (यूएवी या ड्रोन) का उपयोग करके दक्षिणी आइसलैंड में ग्लेशियरों की दीवारों के किनारों पर बनने वाले इन बांधों की वास्तुकला का विश्लेषण कर रहे हैं,। हम इन छवियों का उपयोग मोटे और महीन दाने वाले तलछट के क्षेत्रों को पहचानने और वर्गीकृत करने के लिए करते हैं। हमने 2022 की शुरुआत में कॉर्डिलेरा ब्लैंका में बनने वाले इसी तरह के बांधों के समान उच्च रिज़ॉल्यूशन वाले यूएवी सर्वेक्षण की योजना बनाई है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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