coronavirus: ‘अगर विज्ञान के आगे आड़े आये आस्था, तो कोरोना वायरस से बचना होगा मुश्किल’
By भाषा | Published: April 16, 2020 04:54 PM2020-04-16T16:54:28+5:302020-04-16T16:54:28+5:30
कोरोना वायरस संकट के बीच दुनिया के कुछ देशों में राजनेताओं, धार्मिक विचारकों ने विज्ञान की जगह धर्म को तरजीह दी. भारत में भी एक धार्मिक जमात ने सभाएं आयोजित की जिससे वायरस के संक्रमण का प्रसार हुआ.
दुनियाभर में कहर बरपा रहे कोरोना वायरस से चिकित्सीय और वैज्ञानिक तरीके से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास किये जा रहे है लेकिन कुछ लोगों पर आस्था का जुनून है और उनका विश्वास है कि ईश्वर दुनिया को इस महामारी से निजात दिला देंगे। एक जगह ज्यादा लोगों के जमा होने पर रोक लगाकर महामारी से निपटने के सरकार के प्रयासों का हालांकि सभी प्रमुख धर्मों के ज्यादातर नेता समर्थन कर रहे हैं लेकिन धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष संस्थाओं के कुछ नेता ऐसा नहीं कर रहे है ।
कुछ लोगों का कहना है कि व्यक्तिगत रूप से आराधना करना जारी रखना चाहिए क्योंकि इससे राहत मिल सकती है। कुछ अन्य लोगों का कहना है कि आस्था विज्ञान से बढ़कर है और यह संक्रमण को दूर भगा सकता है। तंजानिया के राष्ट्रपति का दावा है कि कोरोना वायरस ‘‘ईसा मसीह के शरीर में नहीं बैठ सकता है।’’ इजरायल के स्वास्थ्य मंत्री ने कर्फ्यू की संभावना को खारिज करते हुए कहा था कि ‘‘मसीहा आयेंगे और हमें बचायेंगे।’’
एक वैश्विक मुस्लिम मिशनरी अभियान ने सभाएं आयोजित कीं और उस पर बीमारी फैलाने का आरोप लगा। ड्यूक विश्वविद्यालय के धर्म विज्ञान स्कूल के डीन एल ग्रेगरी जोन्स ने कहा, ‘‘जिन बातों पर ज्यादातर ज्यादा धार्मिक आस्थाएं जोर देती हैं, उनमें से एक समुदाय में सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करना और दूसरों की जान बचाने पर ध्यान केंद्रित करना प्रमुख है।’’
ईसाई बहुल तंजानिया के राष्ट्रपति जॉन मैगुफुली ने पिछले महीने एक गिरजाघर में आयोजित सभा में कहा था कि वह ‘‘यहां आने से भयभीत नहीं थे’’ क्योंकि आस्था के साथ वायरस का मुकाबला किया जा सकता है। इजरायल के स्वास्थ्य मंत्री याकोव लित्जमैन ने सिनेगॉग और अन्य धार्मिक संस्थानों को लोगों की भीड़ एकत्र होने पर लगाई गई पाबंदियों से छूट देने पर जोर दिया था। इजराइली मीडिया की खबरों के अनुसार सामाजिक दूरी की नसीहत का पालन नहीं करने पर बाद में वह खुद कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए।
इजरायली मीडिया खबरों के अनुसार उन्होंने पिछले महीने कर्फ्यू की संभावना को खारिज करते हुए कहा था कि ‘‘मसीहा आयेंगे और हमें बचायेंगे।’’ भारत में तबलीगी जमात को उस समय आलोचना का सामना करना पड़ा जब एक ऑडियो क्लिप में उसके प्रमुख मौलाना साद ने मस्जिदों में ही जाकर नमाज अदा करना जारी रखने का आग्रह किया था।
साद ने कहा था, ‘‘वे कहते हैं कि एक मस्जिद में यदि आप एकत्र होंगे तो संक्रमण फैल जायेगा, जोकि गलत है।’’उन्होंने कहा था, ‘‘यदि आप मस्जिद में आकर मर जाते हैं, तो यह मरने के लिए सबसे अच्छी जगह है।’’ दुनियाभर में हालांकि कई मौलवियों और धार्मिक नेताओं ने मस्जिद बंद करने या अन्य प्रतिबंधों को बढ़ावा देने के लिए काम किया है। लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने मस्जिदों को बंद करने के आदेश से इनकार कर दिया था। इसके बजाय पांच या इससे कम लोगों को मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करने के निर्देश दिये थे। फिर भी, कुछ कट्टरपंथी देश की इस्लामिक विचारधारा परिषद से घर पर रहने की सलाह के बावजूद उसकी अवज्ञा करते रहे। भारत में अधिकारियों ने कहा कि कोरोना वायरस के बड़ी संख्या में मामले तबलीगी जमात की गतिविधियों से जुड़े है और इसके लिए जमात के नेतृत्व पर लापरवाही का आरोप लगाया गया।