जलवायु परिवर्तन : कैसे अर्थशास्त्रियों ने दशकों तक कार्रवाई के लाभ को कम करके आंका
By भाषा | Updated: October 31, 2021 14:39 IST2021-10-31T14:39:25+5:302021-10-31T14:39:25+5:30

जलवायु परिवर्तन : कैसे अर्थशास्त्रियों ने दशकों तक कार्रवाई के लाभ को कम करके आंका
(दिमित्री जेंघेलिस, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय)
कैम्ब्रिज (ब्रिटेन), 31 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) कुछ भी नहीं करने की कीमत वैश्विक अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज करने की लागत से काफी अधिक है, जो कि औद्योगिक क्रांति के बाद से जीवाश्म ईंधन द्वारा संचालित है। यह आज स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जब भयावह आग और बाढ़ की घटनाएं हमें रोज यह याद दिलाती हैं कि जलवायु परिवर्तन पर निरंतर निष्क्रियता कितनी महंगी साबित हो रही है। हालांकि, 15 साल पहले इस विचार को गति देना परिवर्तनकारी था।
कुछ भी नहीं करने की लागत वैश्विक अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ करने की लागत से काफी अधिक है
जलवायु परिवर्तन के अर्थशास्त्र पर 2006 की स्टर्न समीक्षा के वरिष्ठ अर्थशास्त्री दिमित्री जेंघेलिस ने कहा कि पहली बार जी-7 की एक सरकार ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तत्काल कम करने के मामले को बताने के लिए आर्थिक विश्लेषण का उपयोग किया था। डेढ़ दशक बाद इसके निष्कर्ष और सिफारिशें हमेशा की तरह मान्य हैं।
समीक्षा ने परिवर्तनकारी सवालों के जवाब देने के लिए पारंपरिक आर्थिक मॉडल के उपयोग की सीमाओं को भी उजागर किया। इसने विरोधाभासी परिणाम पाने के लिए अर्थशास्त्रियों को इस संबंध में अपने खुद के अनुमानों को शामिल करने के लिए प्रेरित किया।
यह अर्थशास्त्र में एक पुरानी समस्या की ओर इशारा करता है। पारंपरिक मॉडल के अनुसार अर्थशास्त्री पहले से जानते हैं कि भविष्य में नयी तकनीकों, वरीयताओं और व्यवहार की लागत क्या होगी। दूसरे शब्दों में जिन चीजों में हम सबसे अधिक रुचि रखते हैं, उनके बारे में हमारे अनुमान उन मान्यताओं से पूर्व निर्धारित होते हैं जो हो सकता है कि सटीक नहीं हों।
तथ्य यह है कि ‘‘स्थिर लागत लाभ विश्लेषण’’ के रूप में जानी जाने वाली तकनीक, जलवायु परिवर्तन से निपटने में शामिल बड़े जोखिमों और परिवर्तनों का मूल्यांकन करने के लिए डिजाइन नहीं की गई थी। यह इसलिए मायने रखता है क्योंकि पारंपरिक दृष्टिकोणों ने लगातार जलवायु परिवर्तन से होने वाले जोखिमों को कम करके आंका है जिससे नीतिगत कार्रवाई में देरी हुई है।
एक प्रणालीगत परिवर्तन की लागत का पूर्वानुमान लगाना बेहद जटिल है। नयी, स्वच्छ तकनीकों को जल्दी अपनाने से पूरी अर्थव्यवस्था में रचनात्मकता और नवीनता आती है और इस दिशा में आगे बढ़ते हुए नयी सीख और अनुभव मिलते हैं।
यह खोज और उत्पादन में अर्थव्यवस्थाओं के पैमाने को उजागर करता है क्योंकि उद्योग चीजों को अधिक चतुराई और कुशलता से बनाते और वितरित करते हैं तथा लागत कम करते हैं। यह बदले में नयी तकनीकों को और अधिक आकर्षक बनाता है, जिससे नवाचार, निवेश और गिरती लागत का एक चक्र उत्पन्न होता है।
सौर पैनलों से बिजली पैदा करने की लागत और लिथियम-आयन बैटरी में इसे स्टोर करने की लागत पिछले एक दशक में 80 प्रतिशत से अधिक कम हुई है। डीकार्बोनाइज करने की आवश्यकता पर ध्यान दिये बिना लोगों को अब सस्ती बिजली और बेहतर प्रदर्शन करने वाली कारों से लाभ मिलना तय है। अर्थशास्त्रियों ने कभी इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी और अकेले बाजार इसे कभी पूरा नहीं करते।
अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता किसी की अपेक्षा से तेजी से बढ़ी, क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित करने और चलाने की लागत में तेजी से कमी आयी। लागत में तेजी से गिरावट इसलिए आयी क्योंकि क्षमता किसी की अपेक्षा तेजी से बढ़ी।
वैश्विक समुदाय के पास स्वच्छ, अधिक सुरक्षित और टिकाऊ के साथ अधिक कुशल, नवीन और उत्पादक अर्थव्यवस्था बनाने की शक्ति है। ऐसे में जब विश्व के नेता संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के लिए ग्लासगो में एकत्रित होने वाले हैं, इसलिए कार्रवाई का आह्वान अब और भी जरूरी हो गया है।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।