5 जी ट्रॉयल में Huawei को लेकर विवाद, जानें चीनी कंपनी किन देशों में है बैन, क्या है आरोप
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 1, 2020 01:43 PM2020-01-01T13:43:26+5:302020-01-01T13:43:26+5:30
हुआवेई पर शक गहरा होने के पीछे एक कई कारणों में एक उसके संस्थापक का चीनी सेना का हिस्सा रहना और सरकार का करीबी रहना भी है। दरअसल हुआवेई के संस्थापक रेन झेंगफेई चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में इंजीनियर रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने चीनी कंपनी हुआवेई को 5जी मोबाइल नेटवर्क के परीक्षण में शामिल करने को लेकर सवाल खड़े किए हैं। मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अफसोस जताया और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करार देते हुए हुआवेई सहित दूसरी चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन का कहना है कि हुआवेई को 5जी परीक्षणों की अनुमति देना भारतीय ऑपरेटरों के लिए हतोत्साहित करने वाला है। भारत की दूरसंचार नेटवर्क में चीनी कंपनियों की मौजूदगी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करना होगा। महाजन ने कहा कि कई देशों ने हुआवेई पर प्रतिबंध लगाया है और ज्यादा से ज्यादा संचार नेटवर्क में हुआवेई और चीनी कंपनियों के दखल के प्रभावों को समझ रहे हैं। कई देशों को संदेह है कि चीनी कंपनियां विभिन्न देशों में साइबर हैकिंग करके सैन्य और तकनीकी जानकारियां चुराने में लिप्त है।
उन्होंने प्रधानमंत्री को आगाह किया कि चीनी कंपनियां अपनी सरकार के साथ खुफिया जानकारियां साझा करने को लेकर चीन के खुफिया कानून से बंधी हैं। महाजन ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को हुआवेई को लेकर कई बार सर्तक किया गया लेकिन उसे जानबूझकर दरकिनार किया गया। गौरतलब है कि हुआवेई पर अमेरिका में जासूसी करने के आरोप में प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद कई अन्य देशों में इस कंपनी का विरोध हुआ।
आपको बता दें कि हुआवेई वही कंपनी जिसे अमेरिका में जासूसी के आरोप में बैन कर दिया गया था। अमेरिका सहित कई अन्य देशों ने हुआवेई का बायकॉट किया है। इन सब के बाद अमेरिकी सरकार ने एक आदेश जारी किया जिसकी वजह से गूगल ने हुआवेई को दिया गया एंड्रॉयड का लाइसेंस भी कैंसिल कर दिया। इसके बाद हुआवेई के स्मार्टफोन की बिक्री में भी गिरावट देखी गई।
अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने हुआवेई के अमेरिका में बिजनेस बंद के बारे में कहा था, 'ये राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है। हुआवेई हमारी मिलिट्री और इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए चिंता का विषय है और हम हुआवेई के साथ कोई बिजनेस नहीं कर रहे हैं।' हुआवेई के अमेरिका में बैन होने की सबसे बड़ी वजह जासूसी की थी। अमेरिकी सरकार को शंका थी कि हुआवेई चीनी सरकार के लिए अमेरिका की जासूसी कर रही है।
साल 2012 में भी अमेरिका ने हुआवेई के नेटवर्किंग इक्विपमेंट्स को बैन कर दिया था। 2012 में ही हुआवेई ( Huawei) और ZTE Corp की जांच शुरू की गई। ये जांच इस बात को लेकर थी कि इन कंपनियों के इक्विप्मेंट्स अमेरिकी हितों के लिए खतरा हैं या नहीं। रिपोर्ट में अमेरिकी कांग्रेस ने ये पाया कि कंपनी ने जांच के दौरान पूरी तरह से एजेंसी का साथ नहीं दिया है और हुआवेई ने चीनी सरकार से अपने रिश्तों के बारे में भी एक्स्प्लेन नहीं किया है। रिपोर्ट में ये बताया गया कि इस बात के सबूत हैं कि हुआवेई ने अमेरिकी कानून का पालन भी नहीं किया है।
इसके बाद से अमेरिका ने अपने संवेदनशील इंफ्रास्ट्रक्चर से हुआवेई के उपकरण बैन करने शुरू किए और इसके साथ ही अपने साथी देशों से हुआवेई के प्रॉडक्ट्स यूज करने से मना किया। इन देशों में कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ग्रेट ब्रिटेन शामिल हैं। गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी इंटेलिजेंस चीफ ने ये माना कि हुआवेई पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और इस कंपनी के उपकरण नेशनल सिक्योरिटी के लिए खतरा हैं।
ये है डर-
लेटेस्ट 5G टेक्नोलॉजी को आधार बनाकर हेल्थ से लेकर डिफेंस तक तमाम क्षेत्रों में इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिए डेवलपमेंट की जो योजना बनाई जा रही है, अगर कोई उसी 5G नेटवर्क से ‘बैकडोर’ सॉफ्टवेयर के जरिए महत्वपूर्ण डेटा चोरी कर ले तो क्या होगा? अगर ऐसा होता है तो टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर, पॉवर सप्लाई सहित कई तरह की सर्विसेज को ठप्प किया जा सकता है। इसके साथ ही देश के सिक्योरिटी सिस्टम पर भी आंच आ सकती है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का आरोप है कि हुआवेई का संबंध चीन की सरकार से है और इसके उपकरणों में ‘बैकडोर’ हो सकते हैं, जिनके जरिए जासूसी की जा सकती है। हालांकि चीन की दिग्गज आईटी कंपनी हुआवेई ऐसे आरोपों का खंडन करती आई है।
जानें बैकडोर मामला-
बैकडोर सॉफ्टवेयर ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं जो किसी नेटवर्क के कंप्यूटर सिस्टम और उसमें रखे डेटा तक पहुंचने के दौरान बीच में आने वाले ऑथेंटिकेशन और दूसरे अन्य सिक्योरिटी फीचर्स को चकमा देकर डेटा चोरी को बहुत आसान बना देते हैं। अगर इन सॉफ्टवेयर को किसी एप्लिकेशन के सोर्स कोड में पहले से शामिल कर दिया गया हो तो उस एप्लिकेशन के बैकडोर से गुजरने वाला ट्रैफिक आम ट्रैफिक की तरह ही दिखेगा। ऐसे में नेटवर्क का प्रोटेक्शन फीचर उसे ऑथेंटिकेट (वैध) मानकर उसको डेटा तक आसानी से पहुंचने देता है।
विवादों की लिस्ट
कथित तौर पर तालिबान को मिलिट्री टेलीकम्युनिकेशंस उपकरण सप्लाई करने के आरोप में भारत की खुफिया एजेंसियों ने साल 2001 में हुआवेई को वॉच लिस्ट में डाल दिया था। हमेशा की तरह यहां भी हुआवेई ने तालिबान के साथ कारोबार की बात से इनकार किया था।
हुआवेई पर शक गहरा होने के पीछे एक कई कारणों में एक उसके संस्थापक का चीनी सेना का हिस्सा रहना और सरकार का करीबी रहना भी है। दरअसल हुआवेई के संस्थापक रेन झेंगफेई चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में इंजीनियर रहे हैं। उन्होंने ही 1987 में हुआवेई की स्थापना की थी।
हुआवेई पर सिस्को और टी मोबाइल सरीखी अमेरिकी कंपनियों ने सोर्स कोड और फोन टेस्टिंग रोबोट के राज जैसे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स चुराने का आरोप लगाया था। हालांकि, कोई आरोप साबित नहीं हो सका।
वोडाफोन की इतालवी इकाई को साल 2009 से 2011 के बीच मिले उपकरणों में टेलनेट जैसे बैकडोर होने की रिपोर्ट्स भी आई थी। इसके बाद इतालवी उपभोक्ताओं के डेटा चोरी होने का शक पैदा हो गया था। हालांकि वोडाफोन और हुआवेई दोनों ने ही इस बात से इनकार किया था कि हुआवेई द्वारा सप्लाई किए गए इन उपकरणों में ‘बैकडोर’ थे।
हुआवेई मालिक की बेटी गिरफ्तार
एक अमेरिकी अदालत में हाल में यह आरोप लगा कि हुआवेई ने हांगकांग की अपनी कथित सब्सिडियरी स्काईकॉम के जरिए अमेरिका से उत्पाद और सेवाएं लेकर ईरान को दिए जबकि ऐसा करने पर अमेरिकी रोक है। दिसंबर 2018 में हुआवेई कंपनी के मालिक की बेटी और कंपनी की चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (मुख्य वित्त अधिकारी) की बेटी मेंग वांग्चू को अमेरिकी अनुरोध पर कनाडा ने अरेस्ट किया था। फिलहाल उन्हें जमानत दे दी गई है।