Yogini Ekadashi 2020: 17 जून को है योगिनी एकादशी, पढ़ें सम्पूर्ण व्रत कथा
By मेघना वर्मा | Published: June 9, 2020 12:55 PM2020-06-09T12:55:52+5:302020-06-09T12:55:52+5:30
योगिनी एकादशी करने से 88 हजार ब्राह्मणों के दान के बराबर फल मिलता है। इस व्रत के बाद आती है देवशयनी एकादशी। जिसमें भगवान विष्णु चार महीने के लिए शयन में चले जाते हैं।
इस साल 17 जून को योगिनी एकादशी पड़ रही है। आषाढ़ माह में पड़ने वाली इस योगिनी एकादशी को हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण बताया जाता है। एकादशी का हर व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल की पूजा का भी विधान है।
मान्यता है कि योगिनी एकादशी करने से 88 हजार ब्राह्मणों के दान के बराबर फल मिलता है। इस व्रत के बाद आती है देवशयनी एकादशी। जिसमें भगवान विष्णु चार महीने के लिए शयन में चले जाते हैं। आईए, जानते हैं कि योगिनी एकादशी का व्रत कब है, क्या है व्रत की कथा और व्रत कथा...
Yogini Ekadashi: कब है योगिनी एकादशी व्रत
इस बार योगिनी एकादशी का व्रत 17 जून को है। इस एकादशी को करने से एक दिन पहले जातकों को अपनी तैयारी शुरू कर देनी होती है। शास्त्रों के अनुसार व्रत से एक दिन पहले तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
योगिनी एकादशी तिथि - 17 जून 2020
एकादशी तिथि प्रारम्भ - जून 16, 2020 को 05:40 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त - जून 17, 2020 को 07:50 ए एम बजे
योगिनी एकादशी का व्रत करने से सारे पाप मिट जाते हैं और जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। यह माना जाता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करना अठ्यासी हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है।
Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी की व्रत कथा क्या है
पद्मपुराण में वर्णित योगिनी एकादशी की एक कथा के अनुसार स्वर्ग की अलकापुरी नगरी के राजा कुबेर भगवान शिव के भक्त थे। वह हर रोज पूरे मन से भगवान शिव की पूजा करते थे। उनके लिए पूजा के फूल हेम नाम का एक माली लेकर आया करता था। एक दिन हेम काम भाव में पड़ने के कारण अपनी सुंदर पत्नी विशालाक्षी के साथ आनंद की प्राप्ति में रम गया। इस वजह से वह राजा को समय पर फूल नहीं पहुंचा सका। इससे क्रोधित राजा कुबेर अपने सैनिकों को हेम माली के यहां भेजते हैं।
सैनिक हेम के घर से लौटकर राजा को पूरी बात बताते हैं। इससे राजा कुबेर बेहद क्रोधित हो गये और हेम को श्राप दिया वह कुष्ट रोग से पीड़ित होकर धरती पर चला जाएगा। कई सालों तक धरती पर विचरण के बाद एक दिन हेम की मुलाकात ऋषि मार्कण्डेय से हुई। ऋषि ने हेम से उसके दुख का कारण पूछा तो उसने पूरी बात बता दी।
यह सुनकर मार्कण्डेय ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। हेम ने ऐसा ही किया और पूरी निष्ठा से उसने योगिनी एकादशी का व्रत किया। बाद में इस व्रत के कारण हेम अपनी पुराने रूप में आ गया और पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन जीने लगा।