ब्राह्मणों की शक्ति है यज्ञोपवीत, जानें इसका महत्व और धारण करने के नियम

By गुणातीत ओझा | Published: September 13, 2020 03:25 PM2020-09-13T15:25:05+5:302020-09-13T15:25:05+5:30

यज्ञोपवीत जिसे हमें सामान्यतः जनेऊ के नाम से जानते हैं, यह कोई महज साधारण धागा नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म में इसके साथ कई विशेष मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।

Yagyopaveet is the power of Brahmins know its importance and rules of wearing it | ब्राह्मणों की शक्ति है यज्ञोपवीत, जानें इसका महत्व और धारण करने के नियम

जानें यज्ञोपवीत संस्कार के बारे में सबकुछ।

Highlightsयज्ञोपवीत जिसे हमें सामान्यतः जनेऊ के नाम से जानते हैंहिन्दू धर्म में इसके साथ कई विशेष मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।

यज्ञोपवीत जिसे हमें सामान्यतः जनेऊ के नाम से जानते हैं, यह कोई महज साधारण धागा नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म में इसके साथ कई विशेष मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं। ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि तपस्वियों, सप्त ऋषि तथा देवगणों ने कहा है कि यज्ञोपवीत ब्राह्मण की शक्ति है। ब्राह्मणों का यह आभूषण स्वर्ण या मोतियों का बना हुआ नहीं है। साधारण धागे से बने हुए इस पवित्र यज्ञोपवीत के माध्यम से ही देवता, ऋषियों और पितृ का ऋण चुकाया जाता है।

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि  हिन्दू धर्म में विभिन्न संस्कारों में से एक संस्कार यज्ञोपवीत धारण करना भी है। यज्ञोपवीत संस्कार का कार्यक्रम बेहद वृहद स्तर पर आयोजित किये जाते हैं क्योंकि इसे धारण करने के बाद व्यक्ति को शक्ति के साथ ही शुद्ध चरित्र मिलता है और वह कर्तव्य परायणता के बोध से विभोर हो जाता है। यज्ञोपवीत संस्कार के आयोजन के लिए भी शुभ मुहूर्त देखा जाता है, यज्ञोपवीत परम पवित्र है, प्रजापति ईश्वर ने इसे सबके लिए सहज ही बनाया है। यह आयुवर्धक, स्फूर्तिदायक, बंधन से छुड़ाने वाला और पवित्रता देने वाला है। यह बल और तेज भी देता है। इस यज्ञोपवीत के परम श्रेष्ठ तीन लक्ष्य हैं- सत्य व्यवहार की आकांक्षा, अग्नि के समान तेजस्विता और दिव्य गुणों की पवित्रता इसके द्वारा भली प्रकार प्राप्त होती है।

यज्ञोपवीत का महत्व
आज के युग में अकसर यह देखने को मिलता है कि माता-पिता के कहने पर युवा यज्ञोपवीत संस्कार तो करवा लेते हैं लेकिन उसे पहनते नहीं हैं या पहनते हैं तो इसे धारण करने संबंधी नियमों का पालन नहीं करते। यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि आपका यज्ञोपवीत संस्कार हो गया है तो सदा इसे धारण करें और शिखा में गांठ लगाएं, बिना शिखा और बिना यज्ञोपवीत वाला जो धार्मिक कर्म करता है, वह निष्फल हो जाते हैं। यज्ञोपवीत न होने पर द्विज को पानी तक नहीं पीना चाहिए। जब बच्चों का उपनयन संस्कार हो जाये तभी शास्त्र की आज्ञानुसार उसका अध्ययन शुरू करना चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य यह तीनों द्विज कहलाते हैं क्योंकि यज्ञोपवीत धारण करने से उनका दूसरा जन्म होता है। पहला जन्म माता के पेट से होता है, दूसरा जन्म यज्ञोपवीत संस्कार से होता है।

गायत्री मंत्र है जरूरी

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि यज्ञोपवीत धारण करते समय जो वेदारम्भ कराया जाता है, वह गायत्री मंत्र से कराया जाता है। प्रत्येक द्विज को गायत्री मंत्र जानना उसी प्रकार अनिवार्य है जैसे कि यज्ञोपवीत धारण करना। यह गायत्री यज्ञोपवीत का जोड़ा ऐसा ही है जैसा लक्ष्मी−नारायण, सीता−राम, राधे−श्याम, प्रकृति−ब्रह्मा, गौरी−शंकर, नर−मादा का जोड़ा है। दोनों के सम्मिश्रण से ही पूर्ण इकाई बनती है।

यज्ञोपवीत धारण करने संबंधी कुछ नियम

जन्म सूतक, मरण सूतक, मल−मूत्र त्यागते समय कान पर यज्ञोपवीत चढ़ाने में भूल होने के प्रायश्चित में उपाकर्म से, चार मास तक पुराना हो जाने पर, कहीं से टूट जाने पर जनेऊ उतार देना चाहिए। उतारने पर उसे जहां तहां नहीं फेंक देना चाहिए वरन किसी पवित्र स्थान पर नदी, तालाब या पीपल जैसे पवित्र वृक्ष पर विसर्जित करना चाहिए।बाएं कंधे पर इस प्रकार धारण करना चाहिए कि बाएं पार्श्व की ओर न रहे। लंबाई इतनी होनी चाहिए कि हाथ लंबा करने पर उसकी लंबाई बराबर बैठे। ब्राह्मण बालक का उपवीत 5 से 8 वर्ष तक की आयु में, क्षत्रिय का 6 से 11 तक, वैश्य का 8 से 12 वर्ष तक की आयु में यज्ञोपवीत करा देना चाहिए। ब्राह्मण का वसंत ऋतु में, क्षत्रिय का ग्रीष्म में और वैश्य का उपवीत शरद ऋतु में होना चाहिए। ब्रह्मचारी को एक तथा गृहस्थ को दो जनेऊ धारण करना चाहिए क्योंकि गृहस्थ पर अपना तथा धर्मपत्नी दोनों का उत्तरदायित्व होता है।

Web Title: Yagyopaveet is the power of Brahmins know its importance and rules of wearing it

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