हिन्दू धर्म में भगवान शिव की अराधना का अत्यंत महत्व है। शिव के भक्त उन्हें 'भोले' कहकर पुकारते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान शिव अपने भक्त की मुराद जल्दी सुनते हैं। वे भक्त की थोड़ी बहे कोशिश से प्रसन्न होकर भोले की तरह उसे वरदान दे देते हैं।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त पाठ, पूजा और मंत्र जाप का मार्ग पकड़ते हैं। कुछ लोग रोजाना शिव मंदिर जाकर जलाभिषेक करते हैं तो कुछ घर पर ही बैठकर शिव की अराधना करते हैं। यदि आप भी रोजाना शिव अराधना करते हैं तो पूजा के बाद शिव स्तुति मंत्र का जाप अवश्य करें।
शिव स्तुति मंत्र का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव स्तुति मंत्र भगवान शिव के शक्तिशाली मंत्रों में से एक होते हैं। शास्त्रों में कई सारे शिव स्तुति मंत्र उल्लिखित हैं। इनमें से एक का भी जाप साधक को पूजा की सफलता की ओर ले जाता है। ऐसे में शिव जल्दी प्रसन्न होकर वरदान देते हैं।
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शिव स्तुति मंत्र का लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव स्तुति मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न करने का मार्ग है। इसके नियमित जाप से शिव कृपा होती है। शिव स्तुति मंत्र जीवन के कष्टों को कम करता है। भविष्य में आने वाले संकट से लेकर ग्रह क्लेश को भी कम करता है। शिव पूजा के बाद यदि पूरा परिवार एक साथ इस शिव स्तुति मंत्र का एक बार जाप कर ले तो चमत्कारी लाभ हासिल होते हैं।
11 शिव स्तुति मंत्र, करें किसी भी एक का जाप:
1) पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।
2) महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।
3) गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।
4) शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।
5) परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्। यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।
6) न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।
7) अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।
8) नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।
9) प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।
10) शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोसि।।
11) त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।