भगवान विष्णु का दूत है यह शाकाहारी मगरमच्छ, केवल मंदिर के प्रसाद पर है जीवित
By धीरज पाल | Published: March 10, 2018 01:34 PM2018-03-10T13:34:50+5:302018-03-10T13:34:50+5:30
1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावणकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था।
कहते हैं कि भक्ति में ही शक्ति होती है। ऐसी ही एक शक्ति का नजारा केरल के कसारागोड में स्थित मंदिर के एक तलाब में देखने को मिली है। यहां स्थित आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास तलाब में एक मगरमच्छ भक्ति के लिए सुर्खियों में बना हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मगरमच्छ पूरी तरह से सात्विक और शाकाहारी है जो धर्म का अनुसरण कर रहा है। इस मगरमच्छ का नाम 'बबिया' बताया जा रहा है।
यह खबर चौकाने वाली है कि एक मगरमच्छ कैसे बिना मांस-मछली खाए जीवित रह सकता है, लेकिन मीडिया रिपोट्स की माने तो यह बात बिल्कुल सच है। इतना ही नहीं मंदिर का दावा है कि बबिया को नॉनवेज का शौक नहीं है और वह केवल मंदिर का प्रसाद या वहां आए भक्तों द्वारा दिया गया चढ़ावा ही खाता है।
रोजाना दो बार दिया जाता है प्रसाद
शाकाहारी मगरमच्छ होने के नाते बबिया के भोजन का सारा बंदोबस्त मंदिर द्वारा किया जाता है। खाने से लेकर देखरेख की पूरी व्यवस्था व सुविधा दी जाती है। उसे दिन में दो बार गुड़ और चावल का प्रसाद दिया जाता है। हालांकि मगरमच्छ को सबसे खतरनाक जानवर कहा जाता है। जिस वक्त वह जल के अंदर चलती होगी सारे जीव-जंतु डर से रास्ता बदल देते होंगे। लेकिन इस तालाब के सभी मछली मजे से रहती होंगे। बबिया के वेजिटेरियन होने की वजह से अपने आप को महफूज महसूस करती होंगी। बताया जा रहा है कि बबिया 70 से ज्यादा सालों से इस तालाब में रह रहा है। इतना ही नहीं हिस्ट्री टीवी के मुताबिक मंदिर के तालाब में बबिया इकलौता मगरमच्छ है।
अन्य रिपोर्टस के मुताबिक मंदिर में हमेशा से एक ही मगरमच्छ रहता है। अगर एक मरता है तो उसकी जगह दूसरा मगरमच्छ आ जाता है। इतना ही नहीं यह मगरमच्छ कहां से आता है और कहां रहता है इसका भी पता नहीं चल पाया है। मगरमच्छ सिर्फ प्रसाद खाने के लिए ऊपर आता है और प्रसाद खाकर दोबारा गुम हो जाता है।
भगवान विष्णु को समर्पित है मंदिर
पद्मनाभस्वामी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह हिंदूओं के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर वैष्णव मंदिरों में शामिल है। इसके गर्भगृह में भगवान विष्णु की मूर्ति विराजित है। इनके दर्शन के लिए दिनों-रात भक्तों की भीड़ लगी रहती है। 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावणकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। इसी मंदिर के ठीक बगल में एक विशाल तालाब मौजूद है जहां यह बबिया रहता है। स्थानीय लोगों द्वारा बबिया को भगवान मद्मनाभ का दूत मानते है।
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मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए भीड़ तो लगती है लेकिन बबिया के वेजिटेरियन की वजह से लोग दूर-दराज से आते हैं। तालाब के किनारे आकर भक्त या पर्यटक मगरमच्छ को देखने का इंतजार भी करते है। बबिया के तालाब में रहते मंदिर के पुजारी उसमें बेखौफ होकर डुबकी लगा लेते हैं। मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर का परिसर बहुत विशाल है जो कि सात मंजिला ऊंचा है गोपुरम को कलाकृतियों से सुसज्जित किया गया है। मंदिर के पास ही सरोवर भी है जो 'पद्मतीर्थ कुलम' के नाम से जाना जाता है।