भारत में गंगा-जमुनी तहजीब की कई ऐसी मिसालें हैं, जो किसी को भी हैरान कर सकती हैं। इसी में एक दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर का दर्शन भी है। हाल के वर्षों में सबरीमाला मंदिर महिलाओं के यहां आने के विवाद को लेकर खूब चर्चा में रहा।
वैसे, क्या आपको मालूम है कि इस मंदिर में दर्शन करने आने से पहले इसी के पास मौजूद एक मस्जिद की परिक्रमा करने की भी परंपरा है। मान्यता है कि सबरीमाला मंदिर आने से पहले इस मस्जिद की परिक्रमा की जाती है और वहां से प्रसाद लेकर ही आगे बढ़ा जाता है। यह परंपरा पिछले करीब 500 सालों या उससे भी पहले से चली आ रही है।
सबरीमाला मंदिर जाने से पहले वावर मस्जिद की परिक्रमा की है परंपरा
दरअसल, इस मस्जिद के जरिये भगवान अयप्पा के उस भक्त वावर (बाबर का मलयालम शब्द, पर ये मुगल शासक नहीं) को पूजा जाता है जो मुसलमान होते हुए भी अयप्पा पर आस्था रखता था और उसकी भक्ति ऐसी रही कि भगवान के मंदिर से पहले 'वावरस्वामी' का मस्जिद बनाया गया। वावर को ही हिंदू वावरस्वामी नाम से पुकारते हैं।
इस मस्जिद में एक ओर जहां हिंदू भक्त परिक्रमा और पूजा करते हैं वहीं, दूसरी ओर नमाज भी चल रही होती है। हिंदू श्रद्धालुओं को मस्जिद की परिक्रमा के बाद प्रसाद दिया जाता है। इसके बाद ही श्रद्धालु आगे की यात्रा के लिए बढ़ते हैं।
बता दें कि सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा के भक्तों की आस्था का केंद्र है। केरल की राजधानी तिरुवंनतपुरम से करीब 180 किलोमीटर दूर पर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच सबरीमाला मंदिर स्थित है। भगवान अयप्पा के दक्षिण भारत में ऐसे तो कई मंदिर हैं लेकिन इनमें सबसे खास सबरीमाला मंदिर ही है।
सबरीमाला मंदिर: वावर कौन थे और क्यों लगाई जाती है मस्जिद की परिक्रमा
वावर कौन थे, इसे लेकर कई तरह की कहानी कही जाती है। एक लोककथा के कथा के अनुसार वावर एक मुस्लिम संत थे और इस्लाम के प्रचार के लिए इस इलाके में आये थे।
वहीं, एक दूसरी कहानी में उन्हें योद्धा बताया गया है। कहते हैं कि वावर युद्ध में अयप्पा के खिलाफ हार गये थे। इसके बाद दोनों में अटूट दोस्ती हो गई जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। यही वजह है कि वावर की मस्जिद की परिक्रमा के बिना सबरीमाला की पूजा को अधूरा माना जाता है।